Holi 2020: होलिका दहन कब है, क्या है होलिका जलाने का शुभ मुहूर्त और इसकी पौराणिक कथा, जानिए सबकुछ
By विनीत कुमार | Published: February 24, 2020 01:20 PM2020-02-24T13:20:06+5:302020-02-24T16:38:35+5:30
Holika Dahan 2020: होली से ठीक एक दिन पहले होलिका दहन किया जाता है। होलिका असुरराज हिरण्यकश्यप की बहन थी और उसी के जलने के प्रतीक के तौर पर होलिका दहन किया जाता है।
Holi and Holika Dahan 2020: रंगों और मौज-मस्ती का त्योहार होली इस बार 10 मार्च को पूरे देश में मनाया जाएगा। इसे लेकर तमाम गांव-शहरों, गलियों, घरों आदि में तैयारी भी शुरू हो गई है।
होली से ठीक एक दिन पहले होलिका दहन भी किया जाता है, जिसका बहुत महत्व है। होलिक दहन के बाद ही होली का उत्सव शुरू होता है। कहते हैं कि होलिका असुरराज हिरण्यकश्यप की बहन थी और उसी के जलने के प्रतीक के तौर पर होलिका दहन किया जाता है।
Holika Dahan 2020: होलिका दहन कब है, होलिका दहन का शुभ मुहूर्त
होली से ठीक एक दिन पहले होलिका दहन किया जाता है। इसलिए इस बार होलिका दहन 9 मार्च को किा जाएगा। होलिका जलाने का शुभ मुहूर्त 9 मार्च की शाम 6 बजकर 26 मिनट से 8 बजकर 52 मिनट तक का होगा।
इस दिन भद्रा पुंछ सुबह 09 बजकर 50 मिनट से 10 बजकर 51 मिनट तक है। वहीं, भद्रा मुख सुबह 10 बजकर 51 मिनट से 12 बजकर 32 मिनट तक का होगा। इस दिन पूरे विधि विधान से होलिका दहन के बाद अगले दिन रंग खेला जाएगा।
Holika Dahan 2020: होलिका दहन की पौराणिक कथा और महत्व
यह कथा प्रह्लाद और उनके असुरराज पिता हिरण्यकश्यप से जुड़ी है। प्रह्लाद असुरराज के पुत्र थे लेकिन भगवान विष्णु में उनकी अटूट आस्था थी। हिरण्यकश्यप इस बात से हमेशा क्रोधित रहता था और प्रह्लाद को धर्म के रास्ते पर जाने से रोकने की कोशिश करता रहता था। प्रह्लाद पर जब हिरण्यकश्यप की नहीं चली तो उसने उन्हें मारने की भी बहुत कोशिश की।
हिरण्यकश्यप ने घोषणा करवा दी थी कोई भी विष्णु या दूसरे देवता की पूजा नहीं करेगा और केवल उसी की पूजा होगी। प्रह्लाद ने इस बात का विरोध किया। बहरहाल, हिरण्यकश्यप ने कई बार प्रह्लाद को मारने की कोशिश की। कभी उन्हें पहाड़ों से फेंकवाया, कभी हाथियों से कुचलवाया लेकिन इन सभी के बावजूद वह प्रह्लाद को मारने में कामयाब नहीं हो सका।
आखिरकार हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को अपनी बहन होलिका की मदद से जलाने की योजना बनाई। होलिका को वरदान था कि वह अग्नि से नहीं जलेगी। इसी योजना के तहत होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठ गई। हालांकि, हिरण्यकश्यप ने जो सोचा था उसके ठीक उलटा हुआ।
भक्त प्रह्लाद सही सलामत आग से बाहर गए और होलिका जल गई। कहते हैं कि उसके बाद से ही होलिका दहन की परंपरा चली आ रही है। होलिका दहन से सभी पापों और असत्य पर सत्य की जीत का संदेश भी दिया जाता है।