गुरु नानक जयंती: जन्म के समय नानक ने किया था कुछ ऐसा कि दाई भी रह गई थी हैरान, पढ़ें पूरी कहानी
By गुलनीत कौर | Published: November 23, 2018 07:44 AM2018-11-23T07:44:40+5:302018-11-23T07:44:40+5:30
गुरु नानक का जन्म 29 नवंबर 1469 ई. में पिता महता कालू के यहां माता तृप्ता की कोख से हुआ था। उस समय रावी नदी के किनारे बसे राय भोए की तलवंडी गांव में कार्तिक पूर्णिमा की अंधेरी रात में गुरु जी ने अवतार धारण किया था। गुरु जी का जन्म एक खत्री परिवार में हुआ था।
आज 23 नवंबर को सिख धर्म के संस्थापक श्री गुरु नानक देव जी का 550वां प्रकाश पर्व (जन्मोत्सव) है। गुरु नानक का जन्म कार्तिक महीने की पूर्णिमा को हुआ था। हर साल देश और दुनिया में बसे सिख श्रद्धालुओं द्वारा यह दिन गुरु पर्व के रूप में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। इस उपलक्ष्य में कीर्तन और लंगर का आयोजन किया जाता है। इतिहासिक गुरुद्वारों से लेकर आसपास के सभी छोटे गुरुद्वारों में भी गुरु पर्व मनाया जाता है।
गुरु नानक का जन्म
गुरु नानक का जन्म 29 नवंबर 1469 ई. में पिता महता कालू के यहां माता तृप्ता की कोख से हुआ था। उस समय रावी नदी के किनारे बसे राय भोए की तलवंडी गांव में कार्तिक पूर्णिमा की अंधेरी रात में गुरु जी ने अवतार धारण किया था। गुरु जी का जन्म एक खत्री परिवार में हुआ था।
भाई रविदास जी का कथन
गुरु नानक के जन्म से जुड़ा गुरुबाणी की एक कथन बेहद प्रचलित है जो भाई रविदास जी ने कुछ यूं लिखा है - सतिगुरु नानक प्रगतिया, मिट्टी धुंध जग चानन होआ'। यहां भाई रविदास गुरु नानक के प्रकट होने की खुशियाँ मना रहे हैं। वे इस बात से खुश हैं कि एक ऐसा महापुरुष इस दुनिया में आ चुका है जो धर्म, जाती, रंग रूप के भेदभाव में बंटे इस जगत के अँधेरे को साफ कर देगा और सभी में एकता को लाएगा।
जन्म के समय दाई रह गई हैरान
कहते हैं कि जब गुरु नानक ने जन्म लिया तो जन्म के समय वहां माता तृप्ता जी की मदद करने आई दाई भी हैरान रहा गई थी। गुरु नानक का जन्म हुआ, जन्म के कुछ समय के बाद महता कालू घर में पंडित को लेकर आए। पंडित ने महता कालू से पूछा कि ज़रा बताओ बच्चे ने जन्म के समय कैसी आवाज निकाली थी?
इसपर महता कालू ने कहा कि यह तो मुझे मालूम नहीं लेकिन मैं उस दाई को बुला सकता हूं जो जन्म के समय वहां मौजूद थी। उसे इस बारे में सब पता होगा। दाई को बुलाया गया। दाई से प्रश्न किया गया लेकिन जो जवाब हासिल हुआ उसे सुन सभी चौकन्ने रह गए।
दाई ने कहा कि आजतक मेरे हाथों अनेकों बच्चों ने जन्म लिया। मेरे इन हाथों ने अनेकों बच्चों का जन्म के बाद पहला स्पर्श किया और उनकी पहली आवाज भी मेरे कानों ने सूनी है। लेकिन महता अकालू के पुत्र को जन्म दिलाते समय मेरे ये हाथ धन्य हो गए।
दाई ने कहा कि जन्म लेते ही मेरे हाथ में एक ऐसा बच्चा आया जिसके चेहरे पर सूरज जितना चमकदार तेज था। बच्ची की खुशबू से पूरा घर सुगन्धित हो उठा। अक्सर बच्चे जन्म लेते ही रोते हैं लेकिन यह एक ऐसा बच्चा था जिसके मुख पर मुस्कराहट थी। एक ऐसी मुस्कराहट जो दिल को सुकून देती है।
यह सुन पंडित ने महता कालू से कहा कि भाई महता कालू, तुम्हारे घर किसी साधारण मनुष्य ने नहीं, बल्कि किसी अवतार ने जन्म लिया है। यह कोई महापुरुष है जो तुम्हारे परिवार का नाम रोशन करने आया है। पंडित की बात सुन महता कालू और माता तृप्ता जी की खुशी का ठिकाना ना रहा और उन्होंने हाथ जोड़कर ईश्वर का शुकराना अदा किया।
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गुरु नानक का जीवन
गुरु नानक बचपन से ही बेहद समझदार थे। उन्होंने हिंदी, संस्कृत और फारसी भाषा का ज्ञान लिया। चार उदासियों में यात्रा की। गुरु नानक का विवाह माता सुलखनी से हुआ। उनसे उन्हें दो पुत्रों की प्राप्ति हुई - श्री चंद और लक्ष्मी दास।
गुरु नानक ने स्वयं गुरुमुखी की रचना की। उन्होंने अपने जीवनकाल में गुरमुखी में जो भी उपदेश लिखे उनकी एक पोथी तैयार की और अकाल चलाना करने से पहले उसे अगले गुरु, गुरु अंगद देव को सौंप दिया। इस पोथी साहिब में धीरे धीरे एनी गुरुओं और ज्ञानियों के उपदेशों को भी जोड़ा गया और अंत में गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा इसे ग्रन्थ में परिवर्तित कर ग्याहरवें गुरु, गुरु ग्रन्थ साहिब की उपाधि दी गई।