स्वर्ण मंदिर की नींव रखने वाले सिखों के पांचवें गुरु अर्जुन देव जी का शहीदी दिवस, जाने उनसे जुड़ी कहानी
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: June 7, 2019 10:16 AM2019-06-07T10:16:25+5:302019-06-07T10:16:25+5:30
गुरु अर्जुन देव जी का सबसे बड़ा योगदान ये था कि उन्होंने सभी पहले के गुरुओं की लिखी हुई बातों को एक साथ संजोया जिसे आज हम 'गुरु ग्रंथ साहिब' कहते हैं।
सिख धर्म को आगे बढ़ाने में गुरु अर्जुन देव जी का योगदान बेहद अहम है। सिख धर्म के पांचवें गुरु अर्जुन देव जी ने ही सबसे पहले अमृतसर में स्वर्ण मंदिर की नींव रखी। साथ ही उन्होंने गुरुद्वारों में चार दरवाजों की भी रूपरेख तय की। इसके पीछे तर्क था, 'मेरा विश्वास हर जाति और धर्म के शख्स में है। भले ही वे किसी भी दिशा से आये हों और कहीं भी अपना सिर झुकाते हों।'
गुरु अर्जुन देव जी ने सभी सिखों को अपनी कमाई का एक दहाई भी दान देने का निर्देश दिया था। गुरु अर्जुन देव जी का सबसे बड़ा योगदान ये था कि उन्होंने सभी पहले के गुरुओं की लिखी हुई बातों को एक साथ संजोया जिसे आज हम 'गुरु ग्रंथ साहिब' कहते हैं। यह सिख धर्म से जुड़ा सबसे पवित्र ग्रंथ है। इस ग्रंथ के बाद कुछ शरारती तत्वों ने उनके खिलाफ शिकायत की। इसके बाद मुगल शासक जहांगीर के आदेश पर उन्हें शहीद कर दिया गया।
जानिए गुरु अर्जुन देव जी से जुड़ी कुछ रोचक बातें
- अर्जुन देव जी का जन्म 15 अप्रैल 1563 को गोइंदवाल साहिब में हुआ था। उनके पिता गुरू रामदास और माता बीवी भानी जी थीं। गुरु अर्जुन देव जी के नाना गुरू अमरदास सिखों के तीसरे और पिता गुरू रामदास चौथे गुरू थे। 1581 में अर्जुन देव जी को पांचवे गुरु के तौर पर नियुक्त किया गया।
- गुरु अर्जुन देव जी का विवाह जालंधर के कृष्णचंद की बेटी माता गंगा जी के साथ हुआ। यह साल 1579 था और तब अर्जुन देव जी की उम्र केवल 16 साल थी। इनके पुत्र का नाम हरगोविंद सिंह था। हरगोविंद सिंह जी आगे चलकर सिखों के छठे गुरू बने।
- अर्जुन देव जी ने साल 1588 में अमृतसर तालाब के मध्य हरमिंदर साहिब नाम से गुरुद्वारे की नींव रखवाई। इसे ही हम आज स्वर्ण मंदिर या गोल्डन टेंपल के नाम से जानते हैं। इसके नक्शे को खुद गुरु अर्जुन देव जी ने तैयार किया था।
'गुरु ग्रंथ साहिब' को लेकर जब गुरु अर्जुन देव जी के खिलाफ लामबंद हुए असमाजिक तत्व
पवित्र 'गुरु ग्रंथ साहिब' के तहत पिछले गुरुओं की बातों का संकलन 1603 में शुरु हुआ और 1604 में जाकर खत्म हुआ। इसके बाद प्रथम प्रकाश पर्व आयोजित किया गया। बाद में कुछ शरारती तत्व ने गुरु ग्रंथ साहिब के संपादन को लेकर मुगल शासक अकबर बादशाह के खिलाफ शिकायत की। कहा गया कि इस ग्रंथ में इस्लाम के खिलाफ लिखा गया है। हालांकि, जब अकबर ने असलियत जानी और उसे गुरुवाणी की महानता के बारे में पता चला तो उसने 51 मोहरें भेट करते हुए खेद प्रकट किया।
इसके बाद जहांगीर सत्ता पर काबिज हुआ। जहांगीर के आदेश पर 1606 में शहीद कर दिया गया। उस समय के 'यासा व सियासत' के कानून के अनुसार किसी व्यक्ति का रक्त धरती पर गिराये बिना उसे शहीद कर दिया जाता था।
गुरु अर्जुन देव जी को गर्म तवे पर बैठाया गया और उनके शरीर पर गर्म-गर्म रेत डाली गई। गुरु जी का शरीर जब बुरी तरह जल गया तो उन्हें रावी नदी में ठंडे पानी में नहाने के लिए भेजा गया। वहीं, गुरु जी का पवित्र शरीर विलुप्त हो गया। इसी जगह पर आज गुरुद्वारा डेरा साहिब है। यह जगह अब पाकिस्तान में है। गुरु अर्जुन देव जी सिख धर्म के पहले शहीद थे।