हर साल एक मुट्ठी कम हो रहा गोवर्धन पर्वत का आकार, कारण जान दंग रह जाएंगे आप

By गुलनीत कौर | Published: November 8, 2018 11:10 AM2018-11-08T11:10:53+5:302018-11-08T11:10:53+5:30

5000 वर्ष पूर्व इस पर्वत की ऊंचाई 30 हजार मीटर से भी अधिक हुआ करती थी, लेकिन अब यह पहले से काफी कम हो गई है जिसका कारण एक रहस्यमयी श्राप है। 

Govardhan Puja: Mystery of govardhan parvat, katha, history of govardhan parvat | हर साल एक मुट्ठी कम हो रहा गोवर्धन पर्वत का आकार, कारण जान दंग रह जाएंगे आप

हर साल एक मुट्ठी कम हो रहा गोवर्धन पर्वत का आकार, कारण जान दंग रह जाएंगे आप

हिन्दू धर्म में दिवाली से अगले दिन गोवर्धन पूजा की जाती है। गोवर्धन एक पर्वत है जिसकी कहानी भगवान विष्णु के 8वें मानवरूपी अवतार श्रीकृष्ण से जुड़ी है। इस पर्वत की हर साल हिन्दुओं द्वारा विधिवत पूजा की जाती है। इस साल 7 नवंबर को दिवाली और उससे अगले दिन 8 नवंबर को गोवर्धन पर्वत की पूजा की जाएगी। 

गोवर्धन पर्वत मथुरा से 22 किलोमीटर की दूर पर स्थित है। इसे भगवान कृष्ण के अन्य धार्मिक स्थलों की तरह ही पवित्र और पूजनीय माना जाता है। हर साल दीपावली से अगले दिन हिन्दू परिवारों में घर पर ही शास्त्रीय नियमानुसार विधिवत गोवर्धन पूजा की जाती है।

गोवर्धन पर्वत कथा

एक पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन समय में मथुरा वासियों द्वारा हर साल भगवान इंद्र को प्रसन्न करने के लिए पूजा की जाती थी, ताकि उनकी कृपा से वर्षा हो और अच्छी फसल हो सके। उस समय कृष्ण बालावस्था में थे, उन्होंने मथुरा वासियों से कहा कि आपको अन्न और जीवन देने वाले भगवान इंद्र नहीं बल्कि यह गोवर्धन पर्वत है। 

इस बात को सुन सभी मथुरा वासी गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे। इस बात से इंद्र काफी खफा हो गए थे। गुस्से में  उन्होंन भारी बारिश की और सबको डराने लगे। किन्तु कृष्ण ने अपनी उंगली पर्व गोवर्धन पर्वत को उठा लिया और सभी नगर वासी और पशु-पक्षी वर्षा से बचने के लिए उस पर्वत के नीच आ गए। यह देख इंद्र का अहंकार टूट गया। तभी से हर साल गोवर्धन पर्वत की पूजा की जाती है।

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गोवर्धन पर्वत को मिला था श्राप

हिन्दू धर्म में गोवर्धन पर्वत को पूजनीय माना जाता है लेकिन बहुत ही कम लोग यह जानते हैं कि यह पर्वत आज भी एक श्राप को झेल रहा है। कहते हैं कि एक बार इस पर्वत के पास से गुजरते हुए ऋषि पुलस्‍त्‍य की इसपर नजर पड़ी और वे इसे देख मोहित हो गए। उन्होंने इस पर्वत को अपने साथ ले जाने की ठान ली।

उनकी इस इच्छा पर गोवर्धन पर्वत ने उनसे कहा कि आप मुझे साथ ले जा सकते हैं किन्तु आप जहां भी पहली बार मुझे रखेंगे मैं वहीं स्थापित हो जाऊंगा। ऋषि ने गोवर्धन पर्वत की यह बात मानी और उसे उठाकर चल दिए। रास्ते में शाम होते ही उनकी साधना का समय हो गया जिसके लिए उन्होंने पर्वत को जमीन पर रख्का और साधना आरम्भ कर दी। पर्वत को रखते ही अपने कहे अनुसार वह वहीं पर स्थापित हो गया। 

जब साधना समाप्त होने पर ऋषि पुलस्‍त्‍य ने पर्वत को उठाने की कोशिश की तो वह एक इंच भी नहीं सरका। लाख कोशिश के बाद भी ऋषि पुलस्‍त्‍य पर्वत को हिला ना सके। क्रोध में आकर ऋषि ने पर्वत को श्राप दिया कि तुम हर साल अपने आकर से एक मुट्ठी कम होते जाओगे। 

मान्यता है कि इसी श्राप के कारण यह पर्वत दिन प्रतिदिन घटता चला जा रहा है। कहा जाता है कि 5000 वर्ष पूर्व इस पर्वत की ऊंचाई 30 हजार मीटर से भी अधिक हुआ करती थी, लेकिन अब यह पहले से काफी कम हो गई है जिसका कारण इस श्राप को बताया जाता है। 

Web Title: Govardhan Puja: Mystery of govardhan parvat, katha, history of govardhan parvat

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