गंगा दशहरा 2020: जब ब्रह्मा जी ने भगवान विष्णु के चरणों की कमण्डलु जल से की पूजा, हेमकूट पर्वत पर गिरा जल -पढ़ें गंगा मईया जन्म की कथा
By मेघना वर्मा | Published: May 31, 2020 09:59 AM2020-05-31T09:59:24+5:302020-05-31T09:59:24+5:30
गंगा दशहरा वाले दिन गंगा घाटों पर जैसे काशी, प्रयाग और हरिद्वार में श्रद्धालुओं की भीड़ जुटती है और लोग गंगा मईया का स्नान कर उनकी पूजा अर्चना करते हैं।
गंगा, गौमुख से निकलती है। अपनी वेग से चलती वो बहुत से शहरों से होती हुई बंगाल की खाड़ी में जा मिलती है। गंगा को देवों की नदी माना जाता है। किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले गंगा की पूजा करना शुभ माना जाता है। गंगा मईया के पर्व गंगा दशहरा को हर साल पूरे उत्साह और उमंग के साथ मनाया जाता है।
गंगा दशहरा वाले दिन गंगा घाटों पर जैसे काशी, प्रयाग और हरिद्वार में श्रद्धालुओं की भीड़ जुटती है और लोग गंगा मईया का स्नान कर उनकी पूजा अर्चना करते हैं। इस बार गंगा दशहरा का पावन पर्व एक जून को पड़ रहा है। मान्यता है गंगा दर्शन मात्र से आपकी चित्त तृप्त और स्नान से आपको सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है।
मान्यता है कि गंगा दशहरा वाले दिन ही गंगा मईया का धरती पर आगमन हुआ था। बहुत कम लोग ही ऐसे हैं जिन्हें मां गंगा के जन्म के विषय में ज्ञात है। आइए इस गंगा दशहरा हम आपको बताते हैं मां गंगा का जन्म किस प्रकार हुआ।
ब्रह्मा जी ने किया निवेदन
गंगा मईया के जन्म का श्रेय ब्रह्मा जी को माना जाता है। बताया जाता है कि आदिकाल में ब्रह्मा जी ने जब सृष्टि की मूलप्रकृति से निवेदन किया कि वह सम्पूर्ण लोगों का आदि कारण बनें और ब्रह्मा जी उन्हीं से सृष्टी का निर्माण करें। ब्रह्मा जी के निवेदन पर उन मूल प्रकृति ने गायत्री, सरस्वती, लक्ष्मी, ब्रह्मविद्या, उमा, शक्तिबीजा, तपस्विनी और धर्मद्रवा का रूप लिया। इनमें धर्मद्रवा को सभी ब्रह्मा जी ने अपने कमण्डल में धारम किया।
भगवान शिव के जटाओं में भ्रमण करती रहीं मां गंगा
वहीं वामन अवतार में जब बलि के यज्ञ के समय जब भगवान विष्णु का एक चरण पूजा आकाश को भेदकर ब्रह्मा जी के सामने स्थित हुआ तो ब्रह्मा जी ने अपने कमण्डल में स्थित जल से उनका पैर धुला। पांव धुलते वक्त वो जल हेमकूट के पर्वत पर गिरा। जहां से वह भगवान शंकर के पास पहुंचा तथा जले के रूप में उनकी जटा में स्थित हो गया। बहुत समय तक मां गंगा भगवान की जटाओं में ही भ्रमण करती रहीं।
भागीरथ ने की भगवान शिव की उपासना
बहुत सालों बाद सूर्यवंशी राजा दिलीप के पुत्र भागीरथ ने अपने पूर्वज राजा सागर की दूसरी पत्नी सुमित के साठ हजार पुत्रों का विष्णु के अंसावतार कपिल मुनि के श्राप से उद्धार करने के लिए शंकर भगवान की तपस्या की। प्रसन्न होकर भोले भंडारी ने गंगा को पृथ्वी पर उतारा।
गंगा दशहरा तिथि व मुहूर्त 2020
दशमी तिथि प्रारंभ - 31 मई 2020 को 05:36 बजे शाम
दशमी तिथि समाप्त - 01 जून को 02:57 बजे शाम
हस्त नक्षत्र प्रारंभ- 01 जून को 3 बजकर एक मिनट पर सुबह
हस्त नक्षत्र समाप्त- 02 जून को 01 बजकर 18 मिनट, सुबह
दस पापों का करती है नाश
ग्रंथों में दस प्रकार के पाप का वर्णन किया गया है जिसमें काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह, मत्सर, ईर्ष्या, ब्रह्महत्या, छल-कपट, परनिंदा है। इसके आलावा अवैध संबंध, बिना बात जीवों को कष्ट देना, असत्य बोलने और किसी को धोखा देने से जैसे पाप भी गंगा दशहरा के दिन गंगा स्नान करने से धुल जाता है।