गणेश चतुर्थी: अगले 10 दिन तक रोजाना पढ़ें यह गणपति पाठ, होगी धन, सुख-संपत्ति की प्राप्ति

By गुलनीत कौर | Published: September 13, 2018 12:05 PM2018-09-13T12:05:31+5:302018-09-13T12:05:31+5:30

गणेश जी के इस पाठ को करने से जीवन के कष्ट कम हो जाते हैं और आगामी जीवन में धन और सुख की प्राप्ति होती है।

Ganesh Chaturthi Special: Do Ganesh Sankatnashan, chalisa, aarti to attain health, wealth and prosperity in life | गणेश चतुर्थी: अगले 10 दिन तक रोजाना पढ़ें यह गणपति पाठ, होगी धन, सुख-संपत्ति की प्राप्ति

गणेश चतुर्थी: अगले 10 दिन तक रोजाना पढ़ें यह गणपति पाठ, होगी धन, सुख-संपत्ति की प्राप्ति

भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को भगवान शिव तथा माता पार्वती के छोटे पुत्र गणेश के अवतरण दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस साल गणेश चतुर्थी का अपर्व 13 सितंबर को है। इसी दिन से 10 दिन का गणेशोत्सव प्रारंभ होगा जो कि 23 सितंबर को गणपति विसर्जन के साथ समाप्त होगा। इस साल गणेश चतुर्थी बृहस्पतिवार के दिन है और साथ ही स्वाति नक्षत्र भी बना है। इस ज्योतिष संयोग के कारण गणेश उत्सव को बेहद शुभ माना जा रहा है।

गणेश चतुर्थी पर बप्पा की मूर्ति स्थापना से लेकर उनके पूजन, आरती, दान-पुण्य हर चीज का महत्व होता है। जीवन में शोध मुक्त होने और सुखद भविष्य पाने के लिए लोग शास्त्रीय उपाय भी करते हैं। इन्हीं उपायों में से एक है 'संकटनाशन गणेश स्तोत्र' का पाठ करना। यदि आप धन, संपत्ति और सुखी जीवन चाहते हैं तो इस गणेश चतुर्थी दिन में किसी भी समय संकटनाशन गणेश स्तोत्र का ग्यारह बार पाठ करें। 

संकटनाशन गणेश स्तोत्र

धार्मिक मान्यता अनुसार संकटनाशन गणेश स्तोत्र का पाठ करने से भक्त के जीवन के कष्ट कम हो जाते हैं और वह आगामी जीवन में धन और सुख पाता है। इस पाठ में भगवान गणेश के 12 नाम वर्णित हैं जिनके जाप मात्र से ही विघ्नहर्ता जीवन के कष्टों को कम करते हैं। संकटनाशन गणेश स्तोत्र का पाठ करने के लिए गणेश मूर्ति अथवा तस्वीर के सामने बैठ जाएं और फिर 11 बार पाठ करें: 

प्रणम्यं शिरसा देव गौरीपुत्रं विनायकम।
भक्तावासं: स्मरैनित्यंमायु:कामार्थसिद्धये।।1।।

प्रथमं वक्रतुंडंच एकदंतं द्वितीयकम।
तृतीयं कृष्णं पिङा्क्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम।।2।।

लम्बोदरं पंचमं च षष्ठं विकटमेव च।
सप्तमं विघ्नराजेन्द्रं धूम्रवर्ण तथाष्टकम् ।।3।।

नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु विनायकम।
एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम।।4।।

द्वादशैतानि नामानि त्रिसंध्य य: पठेन्नर:।
न च विघ्नभयं तस्य सर्वासिद्धिकरं प्रभो।।5।।

विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम्।
पुत्रार्थी लभते पुत्रान् मोक्षार्थी लभते गतिम् ।।6।।

जपेद्वगणपतिस्तोत्रं षड्भिर्मासै: फलं लभेत्।
संवत्सरेण सिद्धिं च लभते नात्र संशय: ।।7।।

अष्टभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वां य: समर्पयेत।
तस्य विद्या भवेत्सर्वा गणेशस्य प्रसादत:।।8।।

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गणेश चालीसा

यदि आपके हर कार्य में विघ्न आ रहा है, भाग्य साथ नहीं दी रहा है तो गणेश चतुर्थी के दिन और अगले 10 दिनों तक रोजाना गणेश चालीसा पढ़ें: 

दोहा
जय गणपति सदगुणसदन, कविवर बदन कृपाल।
विघ्न हरण मंगल करण, जय जय गिरिजालाल॥

चौपाई
जय जय जय गणपति गणराजू।
मंगल भरण करण शुभ काजू॥1॥

जय गजबदन सदन सुखदाता।
विश्व विनायक बुद्घि विधाता॥2॥

वक्र तुण्ड शुचि शुण्ड सुहावन।
तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन॥3॥

राजत मणि मुक्तन उर माला।
स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला॥4॥

पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं।
मोदक भोग सुगन्धित फूलं॥5॥

सुन्दर पीताम्बर तन साजित।
चरण पादुका मुनि मन राजित॥6॥

धनि शिवसुवन षडानन भ्राता।
गौरी ललन विश्व-विख्याता॥7॥

ऋद्घि-सिद्घि तव चंवर सुधारे।
मूषक वाहन सोहत द्घारे॥8॥

कहौ जन्म शुभ-कथा तुम्हारी।
अति शुचि पावन मंगलकारी॥9॥

एक समय गिरिराज कुमारी।
पुत्र हेतु तप कीन्हो भारी॥10॥

भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा।
तब पहुंच्यो तुम धरि द्घिज रुपा॥11॥

अतिथि जानि कै गौरि सुखारी।
बहुविधि सेवा करी तुम्हारी॥12॥

अति प्रसन्न है तुम वर दीन्हा।
मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा॥13॥

मिलहि पुत्र तुहि, बुद्धि विशाला।
बिना गर्भ धारण, यहि काला॥14॥

गणनायक, गुण ज्ञान निधाना।
पूजित प्रथम, रुप भगवाना॥15॥

अस कहि अन्तर्धान रुप है।
पलना पर बालक स्वरुप है॥16॥

बनि शिशु, रुदन जबहिं तुम ठाना।
लखि मुख सुख नहिं गौरि समाना॥17॥

सकल मगन, सुखमंगल गावहिं।
नभ ते सुरन, सुमन वर्षावहिं॥18॥

शम्भु, उमा, बहु दान लुटावहिं।
सुर मुनिजन, सुत देखन आवहिं॥19॥

लखि अति आनन्द मंगल साजा।
देखन भी आये शनि राजा॥20॥

निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं।
बालक, देखन चाहत नाहीं॥21॥

गिरिजा कछु मन भेद बढ़ायो।
उत्सव मोर, न शनि तुहि भायो॥22॥

कहन लगे शनि, मन सकुचाई।
का करिहौ, शिशु मोहि दिखाई॥23॥

नहिं विश्वास, उमा उर भयऊ।
शनि सों बालक देखन कहाऊ॥24॥

पडतहिं, शनि दृग कोण प्रकाशा।
बोलक सिर उड़ि गयो अकाशा॥25॥

गिरिजा गिरीं विकल हुए धरणी।
सो दुख दशा गयो नहीं वरणी॥26॥

हाहाकार मच्यो कैलाशा।
शनि कीन्हो लखि सुत को नाशा॥27॥

तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधायो।
काटि चक्र सो गज शिर लाये॥28॥

बालक के धड़ ऊपर धारयो।
प्राण, मंत्र पढ़ि शंकर डारयो॥29॥

नाम गणेश शम्भु तब कीन्हे।
प्रथम पूज्य बुद्घि निधि, वन दीन्हे॥30॥

बुद्धि परीक्षा जब शिव कीन्हा।
पृथ्वी कर प्रदक्षिणा लीन्हा॥31॥

चले षडानन, भरमि भुलाई।
रचे बैठ तुम बुद्घि उपाई॥32॥

धनि गणेश कहि शिव हिय हरषे।
नभ ते सुरन सुमन बहु बरसे॥33॥

चरण मातु-पितु के धर लीन्हें।
तिनके सात प्रदक्षिण कीन्हें॥34॥

तुम्हरी महिमा बुद्ध‍ि बड़ाई।
शेष सहसमुख सके न गाई॥35॥

मैं मतिहीन मलीन दुखारी।
करहुं कौन विधि विनय तुम्हारी॥36॥

भजत रामसुन्दर प्रभुदासा।
जग प्रयाग, ककरा, दुर्वासा॥37॥

अब प्रभु दया दीन पर कीजै।
अपनी भक्ति शक्ति कछु दीजै॥38॥

श्री गणेश यह चालीसा।
पाठ करै कर ध्यान॥39॥

नित नव मंगल गृह बसै।
लहे जगत सन्मान॥40॥

दोहा
सम्वत अपन सहस्त्र दश, ऋषि पंचमी दिनेश।
पूरण चालीसा भयो, मंगल मूर्ति गणेश॥

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गणेश आरती

गणेशोत्सव के हर दिन भगवान गणेश पूजा के बाद अंत में इस आरती से पूजा संपन्न करें:

जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा, माता जाकी पार्वती पिता महादेवा ॥  

एक दंत दयावंत चार भुजा धारी। माथे सिंदूर सोहे मूसे की सवारी ॥  

अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया। बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया ॥  

हार चढ़े, फूल चढ़े और चढ़े मेवा। लड्डुअन का भोग लगे संत करें सेवा ॥ 

दीनन की लाज रखो, शंभु सुतकारी। कामना को पूर्ण करो जाऊं बलिहारी॥

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