ईद 2018: यहां तोप के धमाके से खोलते हैं रोजा, नगर निगम भी देता है तोप दागने के पैसे

By मेघना वर्मा | Published: June 16, 2018 08:57 AM2018-06-16T08:57:54+5:302018-06-16T08:57:54+5:30

तोप को रोज एक माह तक चलाने की जिम्मेदारी सखावत उल्लाह की है।

eid 2018: know about special rituals of iftar and sehri in madhya pradesh | ईद 2018: यहां तोप के धमाके से खोलते हैं रोजा, नगर निगम भी देता है तोप दागने के पैसे

ईद 2018: यहां तोप के धमाके से खोलते हैं रोजा, नगर निगम भी देता है तोप दागने के पैसे

शुक्रवार देर रात चांद दिखने के बाद देश भर में ईद की धूम है। बाजारों में जहां एक ओर कपड़ों की दुकान पर भीड़ लगी है तो वहीं दूसरी ओर इफ्तारी के लिए लोग स्वादिष्ट व्यंजनों की खरीददारी करते दिखाई दे रहें हैं। इफ्तार पार्टी के लिए लोग अक्सर अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के घर जाते हैं और फिर अपना रोजा तोड़ते हैं लेकिन आज हम आपको जिस जगह के बारे में बताने जा रहे हैं वहां के लोग ना तो दोस्तों के घरजाकर रोजा तोड़ते हैं ना रिश्तेदारों के घर जाकर बल्कि रोजा तोड़ने के लिए उन्हें इंतजार रहता है एक तोप के धमाके का। जी हां हम मजाक नहीं कर रहें, भारत में एक ऐसा शहर भी है जहां के लोग रोजा तभी तोड़ते हैं जब उन्हें तोप से निकले गोले की तेज आवाज सुनाई देती है। 

एक अनूठी सी है परंपरा

मध्य प्रदेश के रायसेन जिले में रमजान के दौरान सालों से एक अनूठी परंपरा चली आ रही है। इस परंपरा के चलते रमजान में इफ्तार और सेहरी को तोप चलाकर शुरू और खत्म किया जाता है। इस तोप की तेज गूंज के बाद लोग इफ्तार पार्टी को शुरू करते हैं। जिले से 45 किलोमीटर दूर भोपाल और सीहोर में भी रमजान के चलते तोप चलाई जाती थी लेकिन समय के साथ ये परंपरा धीरे-धीरे कम होती चली गई।

18 वीं सदी में हुई थी इस परंपरा की शुरूआत

आपको बता दें इस परंपरा की शुरुआत 18वीं सदी में भोपाल की बेगमों ने मिलकर की थी। तब प्राचीन किलों से इस तोप को चलाया जाता था। पुराने समय में यह तोप बड़े भी हुआ करते थे लेकिन अब यह तोप छोटी होती जा रही है। पुराने समय में इसे आर्मी की तोप से दागा जाता था जिसकी गूंज पूरे शहर में खुशियां लेकर आती थी। ये सभी काम शहर की काजी के देखरेख में किया जाता था। 

तोप के लिए जारी किए जाते हैं लाइसेंस

आज के समय रायसेन में तोप चलाने के लिए तोप को लाइसेंस लेकर ही चलाया जाता है। कलेक्टर तोप और बारूद का लाइसेंस एक माह के लिए जारी करते हैं। इसे चलाने का एक माह का खर्च करीब 40,000 रुपए आता है। इसमें से तकरीबन 5000 हजार रुपए नगर निगम देता है। बाकी लोगों से चंदा कर इकट्ठा किया जाता है।

ये भी पढ़ें- ईद 2018: अल्लाह की इबादत जितनी ताकत होती है इस एक काम में

इशारा मिलने पर चल जाता है तोप

तोप को रोज एक माह तक चलाने की जिम्मेदारी सखावत उल्लाह की है। वे रोजा इफ्तार और सेहरी खत्म होने से आधा घंटे पहले उस पहाड़ में पहुंच जाते हैं, जहां तोप रखी है और उसमें बारूद भरने का काम करते हैं। सखावत उल्लाह को नीचे मस्जिद से जैसे ही इशारा मिलता है कि इफ्तार का वक्त हो गया, वैसे ही वह गोला दाग देते हैं।

Web Title: eid 2018: know about special rituals of iftar and sehri in madhya pradesh

पूजा पाठ से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे