Dussehra 2020: यहां रावण जलता है तो रोते हैं लोग, रोज करते हैं लंकेश की पूजा
By गुणातीत ओझा | Published: October 25, 2020 03:46 PM2020-10-25T15:46:26+5:302020-10-25T15:46:26+5:30
देश भर में जहां रावण दहन पर खुशी मनाई जाएगी, वहीं जोधपुर में श्रीमाली समाज के गोधा गौत्र के लोग रावण दहन पर शोक मनाते हैं।
देश भर में जहां रावण दहन पर खुशी मनाई जाएगी, वहीं जोधपुर में श्रीमाली समाज के गोधा गौत्र के लोग रावण दहन पर शोक मनाते हैं। ये लोग स्वयं को रावण का वंशज मानते है और इन्होंने जोधपुर के मेहरानगढ़ किला रोड़ पर रावण और कुलदेवी खरानना का मंदिर भी बना रखा है, जहां उसकी पूजा की जाती है।
पाल बालाजी ज्योतिष संस्थान जयपुर के निदेशक ज्योतिषाचार्य अनीष व्यास ने बताया कि जोधपुर के मंडोर में रावण का सुसराल है। मंदोदरी के साथ रावण का विवाह मंडोर में ही हुआ था। गोदा गौत्र के लोग रावण की बारात में आए और यहीं पर बस गए। जोधपुर के ऐतिहासिक मेहरानगढ़ फोर्ट की तलहटी में रावण और उसकी पत्नी मंदोदरी का मंदिर बना हुआ हैं। जहां हर रोज रावण और रावण की कुलदेवी खरानना देवी जो गदर्भ रुप में है उसकी पूजा की जाती है।
श्रीमाली ब्राह्मण समाज के गोधा गौत्र के लोगों ने यह मंदिर बनवाया है। इस मंदिर में रावण व मंदोदरी की अलग-अलग विशाल प्रतिमाएं स्थापित है। दोनों को शिव पूजन करते हुए दर्शाया गया है। पुजारी कमलेश कुमार दवे ने बताया कि उनके पूर्वज रावण के विवाह के समय यहां आकर बस गए थे। कुछ समाज के विद्वान पंडित श्राद पक्ष में दशमी के दिन अपने सैकड़ों साल पुराने बुजुर्ग वंशज रावण को श्रद्धा से याद करते है। इस दौरान समाज के लोग उनकी आत्मा की शांति के लिये सरोवर पर तर्पण कर पिण्डदान की रस्म अदा करते है। ये वंशज विभिन्न मन्त्र उच्चरणों से तर्पण करते हैं। हर साल रावण दहन के बाद गोधा परिवार के लोग लोकाचार स्नान करते हैं।
ये पहला रावण का मंदिर है जहां रावण के परिजनों व रावण की पूजा अर्चना की जाती है और लंकाधिपति को अपना वंशज मानते हुए पण्डितों को भोज कराया जाता है। अपने आप को रावण का परिजन बतानेवाले ये लोग खुशी महसूस करते हैं कि हम लंकाधिपति रावण के वंशज है। रावण को उसके कर्मों और ज्ञान से स्वर्ग मिला होगा लेकिन उनके वंशज कलयुग में भी सतयुगी रावण की आत्मा को राहत पहुंचाने का काम करते हुए सही रुप से उनके अंश होने का फर्ज भी अदा कर दिखलाते है।
वेदों का ज्ञाता
ज्योतिषाचार्य अनीष व्यास का कहना है कि रावण महान संगीतज्ञ होने के साथ ही वेदों के ज्ञाता थे। रावण ज्योतिष का प्रकांड विद्वान था। अपने पुत्र को अजेय बनाने के लिए इन्होंने नवग्रहों को आदेश दिया था कि वह उनके पुत्र मेघनाद की कुंडली में सही तरह से बैठें। शनि महाराज ने बात नहीं मानी तो उन्हें बंदी बना लिया।रावण के दरबार में सारे देवता और दिग्पाल हाथ जोड़कर खड़े रहते थे। ऐसे में कई संगीतज्ञ और वेद का अध्ययन करने वाले छात्र रावण का आशीर्वाद लेने मंदिर में आते हैं।
दर्शन करने आते हैं राजनेता
रावण एक कुशल राजनीतिज्ञ, सेनापति और वास्तुकला का मर्मज्ञ होने के साथ-साथ ब्रह्म ज्ञानी तथा बहु-विद्याओं का जानकार था। उसे मायावी इसलिए कहा जाता था कि वह इंद्रजाल, तंत्र, सम्मोहन और तरह-तरह के जादू जानता था। मंदिर में राजनेता भी रावण के दर्शन करने आते हैं। जैसा रावण ने लक्ष्मण को राजनीति की सीख दी थी। ऐसे में वह एक महान राजनीतिज्ञ भी थे।
दशहरा शोक का प्रतीक
पुजारी कमलेश दवे का कहना है दशहरा हमारे लिए शोक का प्रतीक है। इस दिन हमारे लोग रावण दहन देखने नहीं जाते है। शोक मनाते हुए स्नान कर जनेऊ को बदला जाता है और रावण के दर्शन करने के बाद ही भोजन करते हैं। ऐसे में रावण दहन के दिन लोग शोक मनाते हैं। इस दिन आस पास के लोग भी रावण के दर्शन करने के लिए मंदिर में पहुंचते हैं। रावण के मंदिर में दर्शन कर उनकी अच्छाई को ग्रहण करते हैं।
पौराणिक कथा
असुरों के राजा मयासुर का दिल हेमा नाम की एक अप्सरा पर आ गया था। हेमा को प्रसन्न करने के लिए उसने जोधपुर शहर के निकट मंडोर का निर्माण किया। मयासुर और हेमा की एक बहुत सुंदर पुत्री का जन्म हुआ। इसका नाम मंदोदरी रखा गया। एक बार मयासुर का देवताओं के राजा इन्द्र के साथ विवाद हो गया और उसे मंडोर छोड़ कर भागना पड़ा। मयासुर के जाने के बाद मंडूक ऋषि ने मंदोदरी की देखभाल की। अप्सरा की बेटी होने के कारण मंदोदरी बहुत सुंदर थी। ऐसी कन्या के लिए कोई योग्य वर नहीं मिल रहा था। आखिरकार उनकी खोज उस समय के सबसे बलशाली और पराक्रमी होने के साथ विद्वान राजा रावण पर जाकर पूरी हुई। उन्होंने रावण के समक्ष विवाह का प्रस्ताव रखा। मंदोदरी को देखते ही रावण उस पर मोहित हो गया और शादी के लिए तैयार हो गया। रावण अपनी बारात लेकर शादी करने के लिए मंडोर पहुंचा। मंडोर की पहाड़ी पर अभी भी एक स्थान को लोग रावण की चंवरी (ऐसा स्थान जहां वर-वधू फेरे लेते हैं) कहते हैं। बाद में मंडोर को राठौड़ राजवंश ने मारवाड़ की राजधानी बनाया और सदियों तक शासन किया। साल 1459 में राठौड़ राजवंश ने जोधपुर की स्थापना के बाद अपनी राजधानी को बदल दिया। आज भी मंडोर में विशाल गार्डन आकर्षण का केन्द्र है। वे भले ही दशहरे के दिन में बुराई पर अच्छाई की जीत के रुप में हर वर्ष प्रकाण्ड पण्डित रावण का दहन किया जाता है वही जोधपुर में रह रहे रावण के वंशज हर धार्मिक रस्म निभा कर रावण की अच्छाईयों को भी अनदेखा नही होने देते है।