झारखंड में महिषासुर की पूजा, असुर जनजाति के लोग मानते हैं अपना आराध्यदेव, जानें क्या है वजह

By एस पी सिन्हा | Published: September 22, 2021 07:53 PM2021-09-22T19:53:26+5:302021-09-22T19:54:52+5:30

झारखंड के गुमला जिले में बिशुनपुर, डुमरी, घाघरा, चैनपुर और लातेहार जिला के महुआडाड प्रखंड के इलाके में भैंसा की पूजा की जाती है.

dugra puja Jharkhand Mahishasur worshipped Asur tribe believe adorable god they do it with full devotion | झारखंड में महिषासुर की पूजा, असुर जनजाति के लोग मानते हैं अपना आराध्यदेव, जानें क्या है वजह

दीपावली पर्व की रात महिषासुर का मिट्टी का छोटा पिंड बनाकर पूजा करते हैं. (file photo)

Highlightsमहिषासुर को अपना पूर्वज माननेवाले असुर जनजाति जंगल व पहाड़ों में निवास करते हैं.दीपावली पर्व में महिषासुर की पूजा करने की परंपरा वर्षों से चली आ रही है. असुर जनजाति के लोग दुर्गा पूजा की समाप्ति के बाद महिषासुर की पूजा में जुट जाते हैं.

रांचीः दुर्गा पूजा में एक ओर जहां हमलोग मां दुर्गा की अराधना करते हैं. वहीं, ठीक इसके विपरीत झारखंड के गुमला जिले में असुर जनजाति के लोग महिषासुर की पूजा करते हैं. महिषासुर को अपना पूर्वज माननेवाले असुर जनजाति जंगल व पहाड़ों में निवास करते हैं.

 

दुर्गा की पूजा के बाद इस जनजाति के लोग अपनी प्राचीन परंपराओं के आधार पर महिषासुर की पूजा करते हैं. बताया जाता है कि असुर जनजाति के लोग अपने प्रिय आराध्य देव महिषासुर की पूजा ठीक उसी प्रकार करते हैं. जिस प्रकार हर धर्म व जाति के लोग अपने आराध्य देव की पूजा करते हैं. असुर जनजाति के लोग झारखंड के अन्य कई जिलों में निवास करते हैं.

जहां वे आज भी महिषासुर की पूजा करते हैं. दीपावली पर्व में महिषासुर की पूजा करने की परंपरा वर्षों से चली आ रही है. हालांकि इस जाति में महिषासुर की मूर्ति बनाने की परंपरा नहीं है. लेकिन जंगलों व पहाड़ों में निवास करने वाले असुर जनजाति के लोग दुर्गा पूजा की समाप्ति के बाद महिषासुर की पूजा में जुट जाते हैं.

दीपावली पर्व की रात महिषासुर का मिट्टी का छोटा पिंड बनाकर पूजा करते हैं. इस दौरान असुर जनजाति अपने पूर्वजों को भी याद करते हैं. दीपावली के दिन पहले लक्ष्मी, गणेश की पूजा करते हैं. इसके बाद देर शाम को दीया जलाने के बाद महिषासुर की पूजा की जाती है. दीपावली में गौशाला की पूजा असुर जनजाति के लोग बडे पैमाने पर करते हैं.

जिस कमरे में पशुओं को बांधकर रखा जाता है. उस कमरे की असुर लोग पूजा करते हैं. प्राप्त जानकारी के अनुसार हर 12 वर्ष में एक बार महिषासुर के सवारी भैंसा (काडा) की भी पूजा करने की परंपरा आज भी जीवित है. गुमला जिले के बिशुनपुर, डुमरी, घाघरा, चैनपुर और लातेहार जिला के महुआडाड प्रखंड के इलाके में भैंसा की पूजा की जाती है.

बिशुनपुर प्रखंड के पहाडी क्षेत्र में भव्य रूप से पूजा होती है. इस दौरान मेला भी लगता है. जानकार बताते हैं कि असुर जनजाति मूर्ति पूजक नहीं हैं. इसलिए महिषासुर की मूर्तियां नहीं बनाई जाती है. पर पूर्वजों के समय से पूजा करने की जो परंपरा चली आ रही है. आज भी वह परंपरा कायम है.

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