सूर्य और चन्द्र ग्रहण में होता है एक खास अंतर, क्या आप जानते हैं?
By गुलनीत कौर | Published: February 15, 2018 01:02 PM2018-02-15T13:02:44+5:302018-02-15T16:04:22+5:30
सूर्य हो या चन्द्र, कहा जाता है कि ग्रहण को हमें खुली आंखों से नहीं देखना चाहिए। इसके पीछे कई तरह के अंधविश्वास हैं।
सूर्य हो या चंद्र ग्रहण, इसके आरम्भ होने से पहले से लेकर ग्रहण काल और ग्रहण समाप्त हो जाने के बाद तक लोगों में उत्सुकता बनी रहती है। ग्रहण कब लगेगा, कहां लगेगा, इसका क्या प्रभाव होगा आदि जानकारी लोग जानना चाहते हैं। लेकिन इस सबके बीच बहुत कम लोग यह जानते हिं कि आखिरकार ग्रहण होता क्या है। सूर्य और चन्द्र ग्रहण में क्या अंतर है इस जानकारी से भी अनजान हैं लोग।
ग्रहण को लेकर धार्मिक पुराण और विज्ञान दोनों का अलग-अलग मत है। इसके अलावा ज्योतिष शास्त्र के पास भी अपने तर्क हैं। चलिए यहां पौराणिक एवं वैज्ञानिक दोनों मतों से जानते हैं आखिर ग्रहण क्या है, इसके लगने के पीछे का कारण क्या होता है और ये कैसे हमारा जीवन को प्रभावित करता है।
पौराणिक महत्व
एक पौराणिक कथा के अनुसार सभी देवताओं और दानवों को समुद्र मंथन के दौरान 'अमृत' की प्राप्ति हुई। अमृत देखते ही दैत्य उसे लेकर भाग गए। तभी मोहिनी रूप में सुन्दर कन्या बनकर भगवान विष्णु वहां आए और चालाकी से दैत्यों से अमृत लेकर चले गए। जिस समय भगवान विष्णु देवताओं को अमृत पान करा रहे थे तभी राहु नामक दैत्य भी देवताओं की कतार में आकर बैठ गया। भूल से भगवान विष्णु ने उसे भी देवताओं संग अमृत पान करा दिया।
इस बात की भनक जब सूर्य देव और चन्द्र देव को हुई तो उन्होंने फौरन भगवान विष्णु को बताया। क्रोध में आकर विष्णु जी ने अपने सुदर्शन चक्र से दैत्य का सिर धड़ से अलग कर दिया, यह सिर और धड़ राहु-केतु नाम के दो ग्रहों पर जाकर स्थापित हो गए। इसी पौराणिक कथा को आधार मानते हुए यह बताया जाता है कि दैत्य के अमृत पान करने की वजह से ही कुछ समय के लिए सूर्य और चन्द्र पर ग्रहण लगा और उनकी चमक चली गई।
ज्योतिष शास्त्र और ग्रहण
ज्योतिष शास्त्र की राय में ग्रहण के दौरान देवता बुरी शक्तियों के प्रकोप में आ जाते हैं। उनकी शक्ति कम हो जाती है और पापी ग्रहों का साया बढ़ जाता है। इसलिए ग्रहण काल से पहले, उसके दौरान और ग्रहण के बाद भी कुछ विशेष शास्त्रीय उपायों को करने की सलाह दी जाती है। ताकि ग्रहण का प्रभाव कम किया जा सके।
वैज्ञानिक महत्व
विज्ञान की मानें तो सूर्य और चन्द्र ग्रहण केवल एक खगोलीय घटना है। इस दौरान सूर्य, चन्द्रमा और पृथ्वी तीनों क्रम में एक सीधी रेखा में आ जाते हैं। चन्द्रमा सूर्य की उपछाया से होकर गुजरता है। विज्ञान के अनुसार ग्रहण काल में एक खास प्रकार की खगोलीय घटना घटती है इसलिए वातावरण के साथ लोगों पर भी इसकी असर जरूर होता है। ग्रहण के दौरान वायु में सामान्य समय से विपरीत किरणों और तत्वों का जन्म होता है, इसलिए इस समय में रोगियों और गर्भवती महिलाओं को अपना ख्याल रखना चाहिए।
सूर्य और चन्द्र ग्रहण में अन्तर
वैज्ञानिक तर्कों के अनुसार सूर्य, पृथ्वी और चन्द्रमा किसी ना किसी रूप में एक दुसरे से जुड़े हैं। पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमने के साथ साथ सौरमंडल के सूर्य के चारों ओर भी चक्कर लगाती है। दूसरी ओर चंद्रमा, पृथ्वी के चक्कर लगाता है। ऐसे में जब चन्द्रमा चक्कर लगाता हुआ सूर्य और पृथ्वी के बीच आ जाता है, तब सूर्य ग्रहण लगता है। लेकिन इसके ठीक विपरीत जब चन्द्रमा और सूर्य की किरणों के बीच में पृथ्वी आ जाती है, यानी जब चन्द्रमा पृथ्वी के चक्कर लगाते हुए उसकी प्रच्छाया में चला जाता है, तब लगता है चन्द्र ग्रहण।
ग्रहण को खुली आंखों से क्यों नहीं देखना चाहिए?
सूर्य हो या चन्द्र, कहा जाता है कि ग्रहण को हमें खुली आंखों से नहीं देखना चाहिए। इसके पीछे कई तरह के अंधविश्वास हैं लेकिन विज्ञान इस बात पर तथ्य सहित कारण बताता है। जिसके अनुसार ग्रहण के दौरान एक खास प्रकार की रेडिएशन का जन्म होता है और अगर खुली आंखों से ग्रहण को देख लिया जाए तो यह आंखों के रेटिना को डैमेज कर सकती है। लेकिन अगर ग्रहण देखने का मन हो तो किसी खास फिल्टर वाले चश्मे का प्रयोग कर लें। इससे आंखों पर बुरा प्रभाव नहीं होगा।