Devshayani Ekadashi 2022: कब है देवशयनी एकादशी? जानें तिथि, पूजा मुहूर्त, पारण का समय और महत्व
By रुस्तम राणा | Published: June 26, 2022 02:12 PM2022-06-26T14:12:54+5:302022-06-26T14:12:54+5:30
हिंदू पंचांग के अनुसार, आषाढ़ मास शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी कहते हैं। इस बार 10 जुलाई को देवशयनी एकादशी व्रत रखा जाएगा।
Devshayani Ekadashi 2022: हिंदू धर्म में देवशयनी एकदशी का बड़ा महत्व है। हिंदू पंचांग के अनुसार, आषाढ़ मास शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी कहते हैं। इस बार 10 जुलाई को देवशयनी एकादशी व्रत रखा जाएगा। देवशयनी एकादशी को हरिशयनी एकादशी भी कहा गया है। शास्त्रों में इस एकादशी को सौभाग्य प्रदान करने वाली एकादशी बताया गया है। इसी एकादशी से भगवान विष्णु अगले चार महीने (कार्तिक मास तक) के लिए शयन करने भी चले जाते हैं। इसी एकादशी से ही चतुर्मास प्रारंभ हो जाता है। शास्त्रों के अनुसार, इस दौरान कोई मांगलिक कार्य नहीं किये जाते हैं। कार्तिक मास में पड़ने देवउठनी एकादशी के बाद एक बार फिर मंगल कार्य शुरू कर दिए जाते हैं।
देवशयनी एकादशी का शुभ मुहूर्त
पंचांग के अनुसार, आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि की शुरूआत 09 जुलाई दिन शनिवार को शाम 04 बजकर 39 मिनट पर हो रहा है। यह तिथि अगले दिन 10 जुलाई रविवार को दोपहर 02 बजकर 13 मिनट तक मान्य रहेगी। 11 जुलाई सोमवार को प्रात: 05 बजकर 31 मिनट से लेकर सुबह 08 बजकर 17 मिनट के मध्य तक पारण कर सकते हैं।
देवशयनी एकादशी की पूजा विधि
देवशयनी एकादशी करने वाले साधक को एक दिन पहले से ही इसकी तैयारी शुरू कर देनी चाहिए। उसे एक दिन पहले सात्विक भोजन करना चाहिए। साथ ही ब्रह्मचर्य का भी पालन किया जाना चाहिए। इस दिन साधक को तड़के उठ जाना चाहिए और घर-मंदिर आदि की साफ-सफाई करनी चाहिए। इसके बाद स्नान आदि कर व्रत का संकल्प लेना चाहिए।
इस दिन साधक को पूजा ब्रह्म मुहूर्त में करना चाहिए। इस दिन भगवान विष्णु को स्नान कराये और नये वस्त्र पहनाएं। भगवान विष्णु की पूजा इस दिन शयन अवस्था में की जाती है। भगवान के सामने घी के दीपक जलाएं और सफेल फूल उन्हें अर्पित करें। इस दिन पूजा के दौरान विष्णु सहस्त्रनाम के पाठ का भी विशेष महत्व है।
देवशयनी एकादशी का महत्व
देवशयनी एकादशी से भगवान विष्णु योग निद्रा में चले जाते हैं। चार माह के लिए सृष्टि का संचालन भगवान शिव करते हैं। इन चार माह तक जगत के पालनहार की अनुपस्थिति में विवाह, सगाई, मुंडन आदि जैसे मांगलिक कार्य नहीं होते हैं।