बिहार में मुसलमान और किन्नर समुदाय भी मनाते हैं छठ पूजा, वजह बनी ये कहानी

By एस पी सिन्हा | Updated: November 12, 2018 14:45 IST2018-11-12T14:45:36+5:302018-11-12T14:45:36+5:30

मो. सल्लाउद्दिन की मानें तो जब वे नदी में डूब रहे थे तो उनकी मां नदी के किनारे रोते हुए छठी मईया से मनोकामना मांगी थी कि अगर उनका बेटा डूबने से बच गया तो वह छठ करेंगी।

chhath Puja untold story: Muslim and transgender celebrate chhath puja in Bihar | बिहार में मुसलमान और किन्नर समुदाय भी मनाते हैं छठ पूजा, वजह बनी ये कहानी

बिहार में मुसलमान और किन्नर समुदाय भी मनाते हैं छठ पूजा, वजह बनी ये कहानी

लोक आस्था का महापर्व छठ को लेकर बिहार में माहौल पुरा भक्तिमय हो गया है। लोक आस्था का पर्व छठ केवल हिंदू ही नहीं करते बल्कि बिहार में बडे पैमाने पर मुस्लिम परिवार भी आस्था से सूर्य उपासना का छठ हिंदुओं के साथ मिलकर करते दिख रहे हैं। इतना ही नहीं छठ घाटों पर व्रतियों की सेवा करने से भी वे कभी पीछे नहीं होते। यहां कई मुस्लिम परिवार शिद्दत के साथ छठ का त्यौहार मनाते हैं। यहां तक कि किन्नर समुदाय भी इस पर्व को बढचढकर करने में लगा है।

भक्तिमय माहौल को देख आपको एकबारगी यह अहसास होगा कि छठ पर्व सिर्फ जाति ही नहीं बल्कि मजहब की हदबंदियों को भी तोडती है, जो पूरे बिहार की स्वस्थ परंपरा की प्रतीक है। छठी मईया में मुस्लिम परिवारों में भी आस्था कूट-कूट कर भरी हुई हैं। बिहार की राजधानी पटना सहित सूबे के विभिन्न जिलों मुस्लिम समुदाय के कई ऐसे परिवार हैं जिनकी आस्था छठी मईया में है। शायद यही कारण है कि छठ पर्व पर यहां सांपद्रायिक सौहार्द की झलक मिलती है। 

छठी मईया की मनोकामना से डूबने से बचा था ये मुस्लिम शख्स

उदाहरणस्वरूप मधेपुरा जिले के मुरलीगंज प्रखंड के बेलो पंचायत समेत दर्जनों गांवों में मुस्लिम समुदाय के कई ऐसे परिवार हैं जो वर्षों से छठ पर्व मनाते आ रहे हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि सभी तरह के भेद भाव से ऊपर उठकर हिन्दू समुदाय के साथ एक ही घाट पर एक साथ मिलकर मुस्लिम समुदाय के लोग छठ मनाते हैं। मो। सल्लाउद्दिन की मानें तो जब वे नदी में डूब रहे थे तो उनकी मां नदी के किनारे रोते हुए छठी मईया से मनोकामना मांगी थी कि अगर उनका बेटा डूबने से बच गया तो वह छठ करेंगी। इसके बाद से उनका परिवार छठ मना रहा है। तरबिन खातून कहती है कि वह छठी मईया से पुत्र की प्राप्ति की कामना की थी। जो कि पूरी हो गई। इसलिए वह छठ मनाती हैं। इस तरह के सैकडों वाकया भरे पडे हैं, जिनकी मनोकामनाएं छठी मईया ने पूरी की है तब से वह हर्षोल्लास के साथ छठ मनाते आ रहे हैं। मुस्लिम महिलाएं पूरे विधिविधान से लोक आस्था का यह महापर्व मनाती हैं।

रेहाना ने रखा था छठी मईया का व्रत

उसी तरह गोपालगंज जिले की महिलाओं ने मन्नत पूर्ण होने पर हिन्दुओं के महान पर्व छठ को भक्ति भाव से शुरू किया। ये महिलाएं कई सालों से इस पर्व को करती आ रही हैं। जिला मुख्यालय से 22 किमी दूर बरौली प्रखंड के रामपुर पंचायत के सिकटिया गांव के रेहाना तबस्सुम 10 वर्षों से छठ पूजा कर रही है। रेहाना ने बताया कि शादी के काफी दिनों बाद मेरा कोई पुत्र नहीं हुआ, तब किसी ने बताया कि छठ मईया से मन्नत मांगने पर मनोकामना पूरी होती।

उसके बाद उसने भक्ति भाव से यह मन्नत मांगी कि अगर पुत्र की प्राप्ति होगी तो मैं भी छठ का पर्व करूंगी। इसके बाद पुत्र की प्राप्ति हुई। तब से लेकर आज तक यह महान पर्व कर रही हूं। इसके बाद बहु और बेटी भी छठ जैसे महान पर्व को करते हैं। रेहाना के जैसे ही इसी प्रखण्ड में कई ऐसी मुस्लिम महिला हैं। सरफरा बाजार की किताबों खातून का घर है, जो कि 5 वर्षों से  छठ व्रत करती है। उसने अपनी सास के द्वारा बडे पुत्र सोहेल के स्वस्थ होने के लिए मन्नत मांगी थी। जिसको लेकर उसने इस पर्व की शुरुआत करते हुए आज भी जारी रखा है। 

माता की कृपा से हुआ पुत्र

वहीं, जिला मुख्यालय से 20 किलोमीटर दूर कुचायकोट गांव के आस मोहम्मद मियां की पत्नी तेतरी खातून करीब 20 वर्ष से यह पर्व करती आ रही है। शादी के सात वर्ष तक कोई बच्चा नहीं होने के बाद उसकी सास द्वारा बताए गए मार्ग पर चलने के बाद उसने भी छठ पर्व की शुरुआत की। जिसके बाद उसे पुत्र की प्राप्ति हुई, जिसका नाम उसने भोला मियां रखा है। यह परिपाटी उसने ही नहीं बल्कि उसके सास ने ही शुरू की थी। उसके सास ने भी मन्नत मांगी थी, जिसके बाद तेतरी खातून के पति का जन्म हुआ था। ये महज कुछ उदाहरण मात्र हैं। लेकिन पूरे बिहार के विभिन्न जगहों पर मुस्लिम परिवार पूरे तनमन से इस पूजा को करता है।

वहीं, राज्यभर में उमंग और उल्लास का माहौल है। छठ पूजा को लेकर बाजारों में भी काफी रौनक नजर आ रही है। छठ की शुरुआत रविवार को नहाय-खाय से हो गई है। वहीं, दूसरे दिन खरना होता है। खरना को लेकर व्रतियां तैयारियों में जुटी हुई हैं। कार्तिक शुक्ल की पंचमी तिथि को खरना होता है। छठ पर्व का दूसरा दिन है 'खरना'। खरना का मतलब है शुद्धिकरण। यह नहाय-खाय के बाद मनाया जाता है। व्रति नहाय-खाय के दिन एक समय भोजन करके अपने शरीर और मन को शुद्ध करना आरंभ करते हैं, जिसकी पूर्णता अगले दिन होती है, इसीलिए इसे खरना कहा जाता है।

खरना के दिन सूर्य और छठी मईया को चढ़ाते हैं खीर और गुड 

खरना के दिन व्रती शुद्ध अंत:करण से कुलदेवता, सूर्य और छठी मईया की पूजा करके गुड से बनी खीर का प्रसाद चढाते हैं। देवताओं को चढाने वाले प्रसाद को व्रतियां खुद बनाती है। वहीं, प्रसाद को मिट्टी के नए चूल्हे पर बनाया जाता है। वहीं, जलावन के रूप में आम की लकडी का उपयोग किया जाता है। आम की लकडी को शुद्ध माना जाता है। प्रसाद तैयार होने के बाद गुड वाली खीर, फल और रोटी सहित अन्य चीजें देवता को चढाया जाता है। इसके बाद घर के सभी सदस्य पूजा करते हैं। पूजा के बाद सभी सबसे पहले प्रसाद खाते हैं, उसके बाद ही अन्य चीजें। खरना के दिन आसपास के लोगों को भी बुलाकार खाना खिलाया जाता है।

वहीं, व्रतियां दिनभर के उपवास के बाद शाम को देवताओं को भोग लगाकर खाती हैं। साथ ही उस दिन खाने के बाद वह पूजा की समाप्ति तक कुछ नहीं खाती हैं। उस दिन से छठ पूजा की समाप्ति तक व्रतियों का 36 घंटे का निर्जला उपवास होता है। व्रतियां सप्तमी के दिन सूबह में सूर्य को अर्घ्य देने के बाद ही अन्न ग्रहण करती हैं। वहीं, खरना के दिन जहां व्रतियां खा रही हैं, वहां कोई शोर-शराबा नहीं होना चाहिए। अगर, शोर-शराबा होता है तो व्रतियां वहीं खाना छोड देती हैं। खरना के बाद व्रती दो दिनों तक साधना में लीन होती हैं। उन्हें पूर्ण रूप से ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए भूमि पर ही सोना होता है। इसके पहले सोने वाली जगह को अच्छी तरह से साफ-सूथरा और पवित्र किया जाता है।

लोक आस्था के इस महान पर्व में हर वर्ग और जाति के लोग निस्वार्थ भाव से अपनी सेवा देते हैं। इस पर्व के प्रति लोगों में श्रद्धा और सम्मान का भाव कूट-कूटकर भरा होता है। धार्मिक एकता की एक ऐसी ही बानगी पटना सिटी के कंगन घाट पर देखने को मिली।

यहां मुस्लिम महिलाओं ने घाट पर विशेष साफ-सफाई अभियान चलाकर हिंदू मुस्लिम एकता की एक नजीर पेश की। इस दौरान पूर्व वार्ड पार्षद मुमताज जहां के नेतृत्व में दर्जनों महिलाओं ने हाथों में झाड़ू और बेलचा लेकर घाट की साफ सफाई की। इस मौके पर मुमताज जहां ने कहा कि अनेकता में एकता और आपसी प्रेम और भाईचारा ही भारतवर्ष की पहचान है। उनका कहना था कि छठ पर्व के दौरान छठ व्रतियों को किसी प्रकार का कोई कष्ट ना हो, इसे लेकर मुस्लिम महिलाओं का एक दल पिछले 17 सालों से छठ व्रतियों की निस्वार्थ भाव से सेवा करता आ रहा है। इस मौके पर पटना नगर निगम की महापौर सीता साहू भी मौजूद थी। मौके पर उन्होंने भी विशेष साफ सफाई अभियान में भाग लिया।

किन्नर समुदाय भी रखता है छठ पर व्रत

कहा जाता है कि छठ सामाजिक समरसता का पर्व है। यह भेदभाव और जात-पात को खत्म कर देता है। इस पर्व के प्रति गहरी आस्‍था का ही प्रभाव है कि इसकी तरफ किन्नर समुदाय (ट्रांसजेंडर्स) का झ़ुकाव भी किसी से कम नहीं है। राजधानी पटना में इस समुदाय के कई लोग छठ कर रहें हैं। पटना के बोरिंग रोड की रहने वाली सुमन मित्रा दूसरी बार छठ कर रही हैं। वे कहती हैं कि घर की सुख-शांति के लिए व्रत कर रही हैं। घर में उनके अलावा कभी किसी ने छठ नहीं किया। इस पर्व में उनकी गहरी आस्था थी। पिछले साल दोस्तों के साथ मिलकर छठ व्रत शुरू कर दिया। कहती हैं, ''मैं नहाए-खाए से लेकर पूजा का सारा काम खुद ही करती हूं। इस दौरान समुदाय के लोग मेरे साथ ही रहते हैं। पर्व में कई पुराने और नए लोगों से मिलने का मौका मिल जाता है।'' पटना के गाय घाट की रहने वाली गीता 26 सालों से छठ व्रत कर रहीं हैं। 

कामना हुई थी पूरी

वे बताती  हैं कि 16 साल की उम्र से छठ कर रही हैं। बताती हैं, ''मैं मां से यही कामना करती हूं कि मेरे अपने हमेशा खुश रहें और उनको कभी कोई गम या परेशानी न हो।'' वे कहती हैं कि छठ के दौरान उन्‍हें दूसरे समुदाय के लोगों से भी बहुत मदद मिलती है। गीता इस साल अपने समुदाय के लोगों के साथ मिलकर गंगा घाट पर जाने वाली हैं। पटना के बोरिंग रोड की रहने वाली अमरुता दूसरी बार छठ करेंगी। उन्होंने कहा कि दोस्तों को छठ करता देखकर छठ करने की इच्छा हुई।

वे अपनों की सुख शांति के लिए छठ का व्रत रखती हैं। समुदाय के लोग प्रसाद बनाने से लेकर पूजा करने में पूरा सहयोग करते हैं। पटना के हडताली मोड की रहने वाली मानसी अग्रवाल इस साल अपनों के खुशी के लिए छठ का व्रत करने वाली हैं। मानसी बताती हैं कि अपनों को देखकर इस व्रत को शुरू कर रही हैं। उनकी इस पर्व के प्रति गहरी आस्था रही है। समुदाय के लोगों की खुशहाली और समृद्धि के लिए पूजा शुरू कर रही हैं। बहरहाल, किन्‍नर समुदाय के लोग आस्‍था के साथ छठ पूजा में जुट गए हैं। उनकी कामना है कि छठ मैया सबको खुश रखें, सबों की इच्छाओं को पूरा करें। ये दुनिया फिर से रहने लायक बन जाए। 

खरना के बाद शुरू होता है 36 घंटों का निर्जला उपवास

ऐसे में गंगाघाट सहित सभी छठ घाटों पर व्रतियों की भारी भीड उमड पडी है। प्रसाद बनाने के लिए श्रद्धालु गंगाजल भी ले गए। गंगा घाट से लेकर नदी-तालाबों और घर की छतों पर व्रतियों के सूर्योपासना के गीत से वातावरण पावन हो गया है। व्रतियों ने गंगा में स्नान कर छठी मइया के गीत गाये। आज पूजा के बाद व्रती खरना का प्रसाद ग्रहण करेंगे।। इसके बाद अगले 36 घंटे का निर्जला उपवास शुरू हो जाएगा।

खरना का प्रसाद बनाने के लिए आम की लकडी और मिट्टी से बने चूल्हे की खरीद आज भी होती रही। फलों की मंडियों में भी उल्लास का वातावरण दिख रहा है और अर्घ्य के लिए फलों की खरीददारी जारी है। छठ ही एक ऐसा पर्व है, जिसकी पूरी सत्ता मातृप्रधान है। इस पर्व के केन्द्र में महिलाएं हैं। महिलाएं पूजा के सभी अनुष्ठान में स्वामिनी हैं, साधिका हैं और पुरुष सेवक भाव में खडा दिखता है।

महिलाएं अर्घ्य दान को गीत गाती घाटों की ओर जा रही हैं तो पुरुष अपने माथे पर पूजन सामग्रियों की टोकरी लिये हुए चलते दिखते हैं। इसके सारे गीत महिला प्रधान हैं। महिलाओं द्वारा गाए जाते हैं। घर से घाट तक पुरुष प्रकृति के सामने नतमस्तक है। कभी भारतीय समाज मातृसत्तात्मक था और पुत्र अपनी मां के नाम से जाना जाता था। आज इसे महिला सशक्तीकरण का उदाहरण माना जा सकता है।
 

Web Title: chhath Puja untold story: Muslim and transgender celebrate chhath puja in Bihar

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