चैत्र नवरात्रि 2018: नवरात्रि के सातवें दिन माता कालरात्रि के पूजन का क्या है महत्व, जानें पौराणिक कथा
By धीरज पाल | Published: March 23, 2018 06:14 PM2018-03-23T18:14:23+5:302018-03-23T18:14:23+5:30
जब देवी चण्डी दानवों से युद्ध के लिए गईं तो दानवों ने उनसे लड़ने के लिए चण्ड-मुण्ड को भेजा। तब देवी ने माँ कालरात्रि प्रकट हुईं।
नौ दिनों तक चलने वाले नवरात्रि का 24 मार्च को सातवां दिन है। इस दिन कालरात्रि माता के नाम का व्रत और पूजन किया जाता है, इन्हें माता पार्वती का ही रूप माना गया है। इस देवी के नाम का मतलब- काल यानी मृत्यु और समय और रात्रि का मतलब है कि रात अर्थात् अंधेर को खत्म करने वाली देवी। कह सकते हैं कि इस देवी की पूजा करने से हमेशा जीवन प्रकाशमय रहेगा। माता कालरात्रि गधे की सवारी करती हैं। इस देवी की चार भुजाएं, जिसकी दोनों दाहिने हाथ में अभय और वर मुद्रा में है, जबकि बाएं दोनों हाथ में क्रमश तलवार और अडग है।
जुड़ी है पौराणिक मान्यताएं
देवी कालरात्रि के पीछे एक पौराणिक कथा प्रचलित है जिसका वर्णन पुराणों में भी मिलता है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक शुंभ और निशुंभ नामक दो राक्षस थे जिन्होंने देवलोक में तबाही मचा रखी थी। इस युद्ध में देवताओं के राजा इंद्रदेव की हार हो गई और देवलोक पर दानवों का राज हो गया। तब सभी देव अपने लोक को वापस पाने के लिए माँ पार्वती के पास गए। जिस समय देवताओं ने देवी को अपनी व्यथा सुनाई उस समय देवी अपने घर में स्नान कर रहीं थीं, इसलिए उन्होंने उनकी मदद के लिए चण्डी को भेजा।
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जब देवी चण्डी दानवों से युद्ध के लिए गईं तो दानवों ने उनसे लड़ने के लिए चण्ड-मुण्ड को भेजा। तब देवी ने माँ कालरात्रि को उत्पन्न किया। तब देवी ने उनका वध किया जिसके कारण उनका नाम चामुण्डा पड़ा। इसके बाद उनसे लड़ने के लिए रक्तबीज नामक राक्षस आया। वह अपने शरीर को विशालकाय बनाने में सक्षम था और उसके रक्त (खून) के गिरने से भी एक नया दानव (रक्तबीज) पैदा हो रहा था। तब देवी ने उसे मारकर उसका रक्त पीने का विचार किया, ताकि न उसका खून जमीन पर गिरे और न ही कोई दूसरा पैदा हो।
पौराणिक किंवदंतियों में कहा जाता कि देवी पार्वती दुर्गा में परिवर्तित हो गई। मान्यताओं के मुताबिक दुर्गासुर नामक राक्षस शिव-पार्वती के निवास स्थान कैलाश पर्वति पर देवी पार्वती की अनुपस्थिति में हमला करने की लगातार कोशिश कर रहा था। इसलिए देवी पार्वती ने उससे निपटने के लिए कालरात्रि को भेजा, लेकिन वह लगातार विशालकाय होता जा रहा था। तब देवी ने अपने आप को भी और शक्तिशाली बनाया और शस्त्रों से सुसज्जित हुईं। उसके बाद जैसे ही दुर्गासुर ने दोबारा कैलाश पर हमला करने की कोशिश की, देवी ने उसको मार गिराया। इसी कारण उन्हें दुर्गा कहा गया।
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इस विधि से करें देवी को प्रसन्न
नवरात्रि के सातवां दिन यदि आप माता कालरात्रि के नाम का व्रत और पूजन कर रहे हैं तो सुबह स्नानादि करके लाल रंग के आसन पर विराजमान होकर देवी की मूर्ति या तस्वीर के सामने बैठ जाएं। हाथ में स्फटिक की माला लें और इस मंत्र का कम से कम एक माला यानि 108 बार जाप करें: ॐ देवी कालरात्र्यै नमः॥ ऐसी मान्यता है कि कालरात्रि माता को गहरा नीला रंग बेहद ही पसंद है। ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार देवी कालरात्रि शनि ग्रह को नियंत्रित करती हैं। देवी की पूजा से शनि के बुरे प्रभाव कम होते हैं।
मंत्र
ॐ देवी कालरात्र्यै नमः॥
प्रार्थना मंत्र
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्त शरीरिणी॥
वामपादोल्लसल्लोह लताकण्टकभूषणा।
वर्धन मूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी॥
स्तुति
या देवी सर्वभूतेषु माँ कालरात्रि रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥