Bhishma Ashtami: भीष्म पितामह को किसने दिया था इच्छा मृत्यु का वरदान और क्या है इसके पीछे की कहानी, जानिए
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: February 2, 2020 12:36 PM2020-02-02T12:36:48+5:302020-02-02T12:36:48+5:30
Bhishma Ashtami: महाभारत की कथा के अनुसार भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था। यह वरदान उन्हें पिता से मिला था।
Bhishma Ashtami: भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान हासिल था। यही कारण है कि महभारत के युद्ध में जब वे कौरवों के पहले सेनापति बने तो 10 दिनों तक पांडव की सेना को हर मोर्चे पर मुश्किल का सामना करना पड़ा। पांडव आखिर समझ नहीं पा रहे थे कि वे भीष्म पितामह को अपने रास्ते से कैसे हटाएं।
महाभारत की कथा के अनुसार आखिरकार श्रीकृष्ण के सुझाव पर अर्जुन ने खुद भीष्म पितामह से उन्हें रास्ते से हटाने का तरीका पूछा और शिखंडी की मदद से पांडव इस कार्य को अंजाम देने में कामयाब रहे।
Bhishma Ashtami: भीष्म पितामह को पिता से मिला था इच्छा मृत्यु का वरदान
महाभारत की कथा के अनुसार गंगा के लौटने के बाद शांतनु को निषाद कन्या सत्यवती से प्रेम हो गया। सत्यवती ने शांतनु से विवाह करने के लिए भीष्म के समक्ष अपने पुत्रों को ही हस्तिनापुर की गद्दी पर बैठेने की शर्त रखी।
इस शर्त को सुन भीष्म ने आजीवन ब्रह्मचारी रहने की प्रतिज्ञा की और अपने पिता से सत्यवती की शादी कराने में कामयाब रहे। शांतनु ने तब प्रसन्न होकर देवव्रत को इच्छा मृत्यु का वरदान दिया। इसके बाद ही देवव्रत अपनी प्रतिज्ञा के कारण 'भीष्म' कहलाए।
Bhishma Ashtami: कई दिन बाणों की सैय्या पर रहने के बाद भीष्म ने त्यागे प्राण
भीष्म पितामह को जब 10 दिनों तक पांडव हराने में नाकाम रहे तो अर्जुन के पूछने पर उन्होंने स्वयं बताया कि युद्ध में अगर उनके सामने कोई स्त्री या नपुंसक व्यक्ति आता है तो वे शस्त्र नहीं उठाएंगे।
इसके बाद अर्जुन अपनी रथ पर अगले दिन शिखंडी को लेकर आए। यह देख भीष्म पितामह ने अपने अस्त्र-शस्त्र रख दिए। भीष्म पर इसके बाद अर्जुन ने कई तीर चलाए और इस तरह पितामह बाणों की सैय्या के सहारे जमीन पर गिर गए।
मान्यता है कि कई दिनों तक बाणों की शैय्या पर पड़े रहने के बाद इसी दिन भीष्म पितामह ने सूर्य के उत्तरायण होने पर अपना देह त्यागा था। दरअसल, भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था। इसलिए अर्जुन के बाणों से बुरी तरह चोट खाने के बावजूद वे जीवित रहे थे। माघ मास के शुक्ल पक्ष अष्टमी को आखिरकार भीष्ण ने अपना प्राण त्यागा। इसलिए इस दिन को भीष्म अष्टमी कहा जाता है।