Bakrid 2019 Date in India: बकरीद कब है और ईद-उल-अजहा के मौके पर क्यों दी जाती है कुर्बानी, जानिए सबकुछ
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: August 2, 2019 09:37 AM2019-08-02T09:37:18+5:302019-08-02T09:37:18+5:30
ईद-उल-अजहा (बकरीद) के मौके पर कुर्बानी देने के पीछे एक कहानी है। इसके अनुसार इस्लाम धर्म के प्रमुख पैगंबरों में एक हजरत इब्राहिम से कुर्बानी देने की यह परंपरा शुरू हुई।
रमजान महीना खत्म होने के करीब 70 दिन बाद और इस्लामिक कैलेंडर जु अल-हज्जा महीने के 10वें दिन मनाया जाने वाले बकरीद के त्योहार का इस्लामिक मान्यताओं में बहुत महत्व है। इसे मुसलमानों के सबसे पवित्र त्योहारों में से एक माना जाता है। इस्लाम में इस दिन अल्लाह के नाम कुर्बानी देने की परंपरा है। मुसलमान इस दिन नामज पढ़ने के बाद खुदा की इबादत में चौपाया जानवरों की कुर्बानी देते हैं और तीन भाग में बांटकर इसे जरूरतमंदों और गरीबों को देते हैं। भारत में इस बार बकरीद 11 या 12 अगस्त को मनाई जाएगी। आईए जानते हैं आखिर ईद उल अजहा के मौके पर क्यों दी जाती है कुर्बानी और क्या है इसका इतिहास...
Bakrid 2019: बकरीद के मौके पर मुसलमान क्यों देते हैं कुर्बानी
ईद-उल-अजहा के मौके पर कुर्बानी देने के पीछे एक कहानी है। इसके अनुसार इस्लाम धर्म के प्रमुख पैगंबरों में एक हजरत इब्राहिम से कुर्बानी देने की यह परंपरा शुरू हुई। हजरत इब्राहित अलैय सलाम को कोई भी संतान नहीं थी। अल्लाह से औलाद की काफी ज्यादा मिन्नतों के बाद इब्राहित अलैय सलाम को बेटा पैदा हुआ जिसका नाम स्माइल रखा गया। इब्राहिम अपने बेटे स्माइल से बहुत प्यार करते थे।
कहते हैं कि एक रात अल्लाह ने हजरत इब्राहिम के ख्वाब में आकर उनसे उनकी सबसे प्यारी चीज की कुर्बानी मांगी। इब्राहिम को पूरी दुनिया में अपना बेटा ही प्यारा था। ऐसे में वह अल्लाह पर भरोसे के साथ बेटे स्माइल की कुर्बानी के लिए तैयार हो गए। इब्राहिम अपने बेटे को कुर्बानी के लिए ले ही जा रहे थे कि रास्ते में उन्हें एक शैतान मिला और उसने उन्हें ऐसा करने से मना किया। शैतान ने पूछा कि वह भला अपने बेटे की कुर्बानी देने क्यों जा रहे हैं? इसे सुन इब्राहिम का मन भी डगमगा गया लेकिन आखिरकार उन्हें अल्लाह की बात याद आई और कुर्बानी के लिए चल पड़े।
कहते हैं कि इब्राहिम ने बेटे की कुर्बानी देने के समय अपने आंखों पर पट्टी बांध ली ताकि उन्हें दुख न हो। कुर्बानी के बाद जैसे ही उन्होंने अपनी पट्टी खोली, अपने बेटे को उन्होंने सही-सलामत सामने खड़ा पाया। दरअसल, अल्लाह ने चमत्कार किया था। वह इब्राहिम के धैर्य और अल्लाह पर भरोसे की परीक्षा ले रहे थे। कुर्बानी का समय जैसे ही आया तो अचानक किसी फरिश्ते ने छुरी के नीचे स्माइल को हटाकर दुंबे (भेड़) को आगे कर दिया। ऐसे में दुंबे की कुर्बानी हो गई और बेटे की जान बच गई। इसी के बाद से कुर्बानी देने की परंपरा शुरू हो गई।