Adhik Maas Purnima Vrat: अधिक मास पूर्णिमा व्रत आज, जानें शुभ मुहूर्त और इसका महत्व, बन रहा यह विशेष योग
By गुणातीत ओझा | Published: October 1, 2020 08:19 AM2020-10-01T08:19:56+5:302020-10-01T08:19:56+5:30
पुरुषोत्तम मास की पूर्णिमा 1 अक्टूबर को है। धार्मिक रूप से यह पूर्णिमा तिथि बेहद ही महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस दिन लक्ष्मीनारायण व्रत किया जाता है।
पुरुषोत्तम मास की पूर्णिमा 1 अक्टूबर को है। धार्मिक रूप से यह पूर्णिमा तिथि बेहद ही महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस दिन लक्ष्मीनारायण व्रत किया जाता है। मान्यता के अनुसार यह व्रत सांसारिक इच्छा पूर्ति के लिए रखा जाता है। इस व्रत को रखने से जीवन में धन संपत्ति, सुख समृद्धि आदि का आगमन होता है। इस व्रत को स्त्री-पुरुष कोई भी रख सकता है। पाल बालाजी ज्योतिष संस्थान जयपुर के निदेशक ज्योतिषाचार्य अनीष व्यास ने बताया कि अधिक मास की पूर्णिमा का विशेष महत्व इसलिए है कि यह मास भगवान विष्णु को समर्पित है। मलमास में भगवान विष्णु की पूजा करना मंगलकारी होता है और पूर्णिमा के दिन उनके ही श्रीसत्यनारायण अवतार की पूजा की जाती है और व्रत रखा जाता है।
हिन्दी पंचाग के अनुसार, अधिक मास की पूर्णिमा इस वर्ष 01 अक्टूबर दिन गुरुवार को है। अधिक मास या मलमास की पूर्णिमा का विशेष महत्व होता है। इस दिन श्री लक्ष्मी नारायण की पूजा करने, स्नान और दान का विधान है। ज्योतिषाचार्य अनीष व्यास ने बताया कि पूर्णिमा के दिन या एक दिन पूर्व लोग श्रीसत्यनारायण व्रत करते हैं तथा उनकी कथा का श्रवण करते हैं। इस बार कोरोना महामारी के कारण लोग नदी या सरोवर में स्नान नहीं करेंगे। ऐसे में आप घर पर ही स्नान, दान आदि करें। फिर भगवान श्री लक्ष्मी नारायण की पूजा विधिपूर्वक करें।
पूर्णिमा पर बन रहा है योग
इस बार अधिकमास की पूर्णिमा के दिन सर्वार्थसिद्धि योग भी बन रहा है। हिन्दू पंचांग की गणना के अनुसार, 1 अक्टूबर को पूर्णिमा तिथि अर्धरात्रि के बाद तक रहेगी। उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में वृद्धि योग और सर्वार्थसिद्धि योग के साथ गुरुवार के दिन का संयोग बेहद प्रभावशाली है।
लक्ष्मीनारायण पूजा का मुहूर्त
अधिक मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि का प्रारंभ 30 सितंबर दिन बुधवार को देर रात में 12 बजकर 25 मिनट से हो रहा है, जो अगले दिन 01 अक्टूबर गुरुवार को देर रात 02 बजकर 34 मिनट तक रहेगी। इस तिथि को सर्वार्थ सिद्धि योग भी बन रहा है। लक्ष्मीनारायण व्रत का पूजन अभिजित मुहूर्त में करना सबसे शुभ होगा। यह मुहूर्त 1 अक्टूबर को प्रातः 11.52 से 12.40 बजे तक रहेगा। राहुकाल दोपहर 01 बजकर 39 मिनट से दोपहर 03 बजकर 09 मिनट तक रहेगा। उस दिन पंचक पूरे दिन रहेगा।
व्रत विधि
प्रातःकाल सुबह जल्दी उठकर स्नान-ध्यान करें। पूजा स्थल की साफ-सफाई करें। पूजा के लिए एक चौकी पर आधा लाल और आधा पीला कपड़े का आसन बिछाएं। ज्योतिषाचार्य अनीष व्यास ने बताया कि इसके बाद लाल कपड़े पर मां लक्ष्मी और पीले कपड़े पर भगवान विष्णु की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें। अब कुमकुम, हल्दी, अक्षत, रौली, चंदन, अष्टगंध से पूजन करें। सुगंधित पीले और लाल पुष्पों से बनी माला पहनाएं। मां लक्ष्मी को कमल का पुष्प अर्पित करें। सुहाग की समस्त सामग्री भेंट करें। मखाने की खीर और शुद्ध घी से बने मिष्ठान्न का नैवेद्य लगाएं। लक्ष्मीनारायण व्रत की कथा सुनें। इस पूरे दिन व्रत रखें।
व्रत के लाभ
धार्मिक शास्त्रों के अनुसार, अधिक मास के स्वामी भगवान विष्णु हैं और इस महीने उनकी आराधना करने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है। अधिकमास की पूर्णिमा का व्रत जीवन में समस्त प्रकार के सुख और सौभाग्य में वृद्धि करता है। यह व्रत यदि धन प्राप्ति की कामना से किया जाए तो यह अवश्य ही पूरा होता है। जबकि अविवाहित कन्या या युवक व्रत करें तो उन्हें योग्य जीवनसाथी प्राप्त होता है।
अधिक मास पूर्णिमा का महत्व
ज्योतिषाचार्य अनीष व्यास ने बताया कि अधिक मास की पूर्णिमा का विशेष महत्व इसलिए है कि यह मास भगवान विष्णु को समर्पित है। मलमास में भगवान विष्णु की पूजा करना मंगलकारी होता है और पूर्णिमा के दिन उनके ही श्रीसत्यनारायण अवतार की पूजा की जाती है और व्रत रखा जाता है। अधिक मास की पूर्णिमा के दिन स्नान, दान और पूजा का कई गुना लाभ प्राप्त होता है। आप व्रत नहीं रह सकते हैं तो अपने घर श्रीसत्यनारायण की कथा भी सुन सकते हैं, जिसका आपको लाभ हो सकता है।
श्रीसत्यनारायण व्रत
यदि आपको श्रीसत्यनारायण व्रत रखना है तो 01 अक्टूबर को रखें।उस दिन विधि पूर्वक श्रीसत्यनारायण की पूजा करें और श्रीसत्यनारायण की कथा सुनें। श्रीसत्यनारायण की पूजा करने से व्यक्ति को भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है। श्रीसत्यनारायण भगवान विष्णु के ही अवतार माने जाते हैं। श्रीसत्यनारायण की पूजा किसी भी दिन कर सकते हैं, लेकिन पूर्णिमा तिथि को विशेष तौर पर श्रीसत्यनारायण की पूजा होती है। संध्या के समय पूजा करें और प्रसाद वितरण करके स्वयं भी उसे ग्रहण करें तथा व्रत को पूर्ण कर लें।