डॉ. सुरेश कुमार केसवानी का ब्लॉग- निठल्लों का वेलेन्टाइनी प्रेम

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: February 14, 2020 09:16 AM2020-02-14T09:16:54+5:302020-02-14T09:16:54+5:30

blog by Suresh Kesarwani on valentine day | डॉ. सुरेश कुमार केसवानी का ब्लॉग- निठल्लों का वेलेन्टाइनी प्रेम

डॉ. सुरेश कुमार केसवानी का ब्लॉग- निठल्लों का वेलेन्टाइनी प्रेम

 

लेखक- डॉ. सुरेशकुमार केसवानी, हिंदी विभागाध्यक्ष, सीताबाई कला, वाणिज्य व विज्ञान महाविद्यालय, अकोला 

इतिहास गवाह रहा है कि प्रेम दो दिलों के बीच की अंतरंग व निजी अभिव्यक्ति रही है. सच्चे प्यार करने वालों ने कभी अपने प्रेम की मार्केटिंग नहीं की. लैला-मजनू, शीरी-फरहाद, सोहनी-महिवाल, सलीम-अनारकली, हीर-रांझा, रोमियो-जूलियट आदि सभी की दास्तानें दुनिया को इसीलिए याद हैं क्योंकि इनका प्यार सच्चा था तथा किसी चॉकलेट, गुलाब, कार्ड, गिफ्ट या टेडी बिअर का मोहताज नहीं था. प्रेम मन की गहराई से की गयी हृदय की मौन अभिव्यक्ति है जिसमें दो लोग आत्मिक रूप से एक दूसरे को चाहते हैं.

प्रेम की मौन और सच्ची अभिव्यक्ति शालीनता से की जाती है, तभी तो इस गीत में कहा गया है... मोहब्बत जो करते हैं वो, मोहब्बत जताते नहीं, धड़कनें अपने दिल की कभी, किसी को सुनाते नहीं, मजा क्या रहा जब कि, खुद कर दिया हो..... मोहब्बत का इजहार अपनी जुबाँ से.... वर्तमान समय में प्रेम जैसी पवित्र चीज का भी बाजारीकरण हो चुका है. इन अक्ल के मारों को कौन समझाए कि प्यार की अभिव्यक्ति जीवनभर हो सकती है, न कि किसी विशेष सप्ताह भर. हमारे देश में ऐसा शगल प्रेम करने वालों का नहीं बल्कि निठल्लों का है. आईए, जरा इन निठल्लों की खोज खबर लेते हैं.

यह सर्वविदित है कि हमारे देश की जनसंख्या में युवाओं की तादाद अधिक है. दुख की बात यह है कि देश के युवाओं में निठल्ले और कमअक्ल युवाओं की भरमार ज्यादा है. देश में बेरोजगारी सिर चढ़कर बोल रही है, साधारण व छोटे पदों के लिए भी बड़ी डिग्रियों वाले युवक लाइन में खड़े दिखाई देते हैं. जीवन की सही आवश्यकताओं की तरफ से मुंह फेरकर, फिजूल के कृत्यों में युवाओं की रुचि उनके दिमागी दिवालिएपन की निशानी है. किसी ने बड़ी रोचक लाइनें कही हैं- लैला अब नहीं थामती किसी बेरोजगार का हाथ, मजनूं को अगर इश्क हो तो...कमाने लग जाए.

वेलेन्टाइन सप्ताह एक खर्चिली प्रेम अभिव्यक्ति है जो कि भरे पेट वालों का काम है. ऐसी चीजों की मार्केटिंग करने अनेक दुकानें बाजारों में सज जाती हैं. पि›मी देशों के वैलेन्टाइन सप्ताह के चोंचलों के स्थान पर यदि सात दिनों तक अपनी नौकरियों के लिए कुछ हाथ, पांव चलाए होते, धरने-प्रदर्शन, संघर्ष किए होते तो सार्थक होता. वाट्सएप्प और फेसबुक की काल्पनिक दुनिया से निकलकर अपने युवा होने का फर्ज निभाना जरूरी है. स्वयं राजमलाई और मैंगो-मूड खरीदने की हैसियत रखने वाले अपनी लैलाओं को कैडबरी, डेअरी मिल्क चॉकलेट खिलाने का जुगाड़ लगाते हैं.

दस बाय बीस की खोली में कम साधनों में रह रहे युवा अपनी प्रेमिकाओं को टेडी बिअर पेश करते हैं. दरअसल वर्तमान अधिकांश युवा पीढ़ी के मन में पवित्र प्रेम के स्थान पर उच्छृंखलता भरी हवस रहती है. युवाओं के मन में प्रेम की पवित्रता व आदर होता तो हिंगनघाट जैसी भयावह घटनाएं नहीं होतीं, बलात्कार नहीं होते, एसिड अटैक नहीं होते. किसी से एक तरफा प्रेम करते हुए कल्पनाओं में उसे अपनी जायदाद मान लेना अनेक युवाओं की शर्मनाक फैन्टेसी है.

किसी के प्रेम में होश खो देना मुनासिब नहीं है, तभी तो कहा गया है- छोड़ दे सारी दुनिया किसी के लिए, ये मुनासिब नहीं आदमी के लिए, प्यार से भी जरूरी कई काम हैं, प्यार सब कुछ नहीं जिंदगी के लिए.

Web Title: blog by Suresh Kesarwani on valentine day

रिश्ते नाते से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे