सियासतः एकाधिकार की राजनीति के चलते राज्यों में हार रही है बीजेपी?

By प्रदीप द्विवेदी | Published: February 21, 2020 07:37 PM2020-02-21T19:37:10+5:302020-02-21T19:37:10+5:30

बीजेपी की दिल्ली चुनाव में करारी शिकस्त के बाद संघ ने सलाह दी है कि उसे दिल्ली में संगठन का पुनर्गठन करना चाहिए.

the BJP is losing in the States due to monopoly politics? | सियासतः एकाधिकार की राजनीति के चलते राज्यों में हार रही है बीजेपी?

सियासतः एकाधिकार की राजनीति के चलते राज्यों में हार रही है बीजेपी?

Highlights दिल्ली विधानसभा चुनाव डाॅ. हर्षवर्धन के सीएम फेस और मनोज तिवारी के उपमुख्यमंत्री के चेहरे के साथ लड़ा गया होता, तो नतीजे बीजेपी के लिए बेहतर होते.ऐसा नहीं हो पाने में सबसे बड़ी बाधा 2014 के बाद पनपी एकाधिकार की राजनीति ही है.

दिल्ली विधानसभा चुनाव में हार के बाद एक बार फिर यह सवाल गहरा रहा है कि विभिन्न राज्यों में बीजेपी को संगठन के प्रभाव के सापेक्ष सफलता क्यों नहीं मिल रही है? हालांकि, बीजेपी की दिल्ली चुनाव में करारी शिकस्त के बाद संघ ने सलाह दी है कि उसे दिल्ली में संगठन का पुनर्गठन करना चाहिए. यही नहीं, यह भी कहा गया है कि नरेद्र मोदी और अमित शाह विधानसभा स्तर के चुनावों में हमेशा जीत नहीं दिला सकते हैं.

संघ के अंग्रेजी मुखपत्र ऑर्गेनाइजर में प्रकाशित लेख में बीजेपी की हार के कारण भी बताए गए हैं. यह पहली बार है जब मोदी-शाह को देश की राजनीति में सर्वशक्तिमान राजनेता की तरह नहीं देखा गया है.

उल्लेखनीय है कि लोकसभा चुनाव 2019 को छोड़ कर पंजाब विधानसभा चुनाव और उसके बाद हुए किसी भी चुनाव-उपचुनाव में बीजेपी को कभी चमत्कारी कामयाबी नहीं मिली हैं. लोकसभा चुनाव 2019 में भी एमपी, राजस्थान, गुजरात आदि राज्यों में संघ का प्रभावी और सक्रिय सहयोग-समर्थन नहीं मिला होता तथा गैर-भाजपाई एक हो गए होते, तो नतीजे कुछ और ही होते.

एक के बाद एक- राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, महाराष्ट्र आदि राज्य बीजेपी के हाथ से निकलते गए तो इसकी खास वजह है- बीजेपी संगठन में मोदी-शाह के एकाधिकार की राजनीति! इसी राजनीति का नतीजा है कि बीजेपी में खास असर रखने वाले नेता या तो किनारे कर दिए गए या फिर उन्होंने बीजेपी छोड़ दी.

यह बात अलग है कि प्रदेश की राजनीति से वसुंधरा राजे जैसे नेताओं को मुख्यधारा से दूर तो कर दिया गया, लेकिन राज्यों में उतना प्रभावी नया नेतृत्व खड़ा नहीं हो पाया, लिहाजा विभिन्न चुनावों में बीजेपी को संगठन के सियासी आधार के सापेक्ष सफलता ही नहीं मिल रही है.

राजनीतिक जानकारों का मानना है कि यदि दिल्ली विधानसभा चुनाव डाॅ. हर्षवर्धन के सीएम फेस और मनोज तिवारी के उपमुख्यमंत्री के चेहरे के साथ लड़ा गया होता, तो नतीजे बीजेपी के लिए बेहतर होते.

याद रहे, वर्ष 2013 विधानसभा चुनाव में डॉ हर्षवर्धन के नेतृत्व में भाजपा दिल्ली में मजबूत स्थिति में थी और तब की कामयाबी के मुकाबले इस वक्त सीटों के लिहाज से बीजेपी को कुछ भी हांसिल नहीं हुआ है.

लेकिन, ऐसा नहीं हो पाने में सबसे बड़ी बाधा 2014 के बाद पनपी एकाधिकार की राजनीति ही है. यदि डॉ. हर्षवर्धन जैसा नेता दिल्ली का सीएम बन जाता तो उनका सियासी कद कई केन्द्रीय मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों से बड़ा हो जाता और वे देश में बीजेपी की पहली पंक्ति के पांच प्रमुख नेताओं में से एक होते. जाहिर है, ऐसी स्थिति में एकाधिकार की राजनीति को तो जोरदार सियासी झटका लगना तय था!

Web Title: the BJP is losing in the States due to monopoly politics?

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