लोकसभा चुनावः मधेपुरा में शरद यादव की प्रतिष्ठा दांव पर, तीनों प्रत्याशी एक ही बिरादरी के
By सतीश कुमार सिंह | Published: April 19, 2019 08:32 PM2019-04-19T20:32:43+5:302019-04-19T20:32:43+5:30
लोकसभा सीट मधेपुरा में इस बार मुकाबला तीन यादवों के बीच हैं। राजद प्रत्याशी और पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद यादव, पिछले लोकसभा चुनाव में यहाँ से राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के टिकट पर निर्वाचित सांसद राजेश रंजन उर्फ़ पप्पू यादव इस चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार हैं और कभी शरद यादव के ही शिष्य दिनेश चंद्र यादव में मुकाबला है।
लोकसभा में चुनावी सरगर्मियां तेज है। कहावत है, 'रोम है पोप का और मधेपुरा है गोप का'। इसका सीधा मतलब यह है कि मधेपुरा लोकसभा क्षेत्र में यादव जाति के वोटर सबसे ज्यादा हैं।
बिहार के यादव बहुल मधेपुरा संसदीय क्षेत्र में उभरे सियासी अवसरवाद ने इस बार जातीय गणित के कुछ आजमाए हुए सूत्र भी उलट-पलट दिए हैं।
इस बार मुकाबला तीन यादवों के बीच हैं। राजद प्रत्याशी और पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद यादव, पिछले लोकसभा चुनाव में यहाँ से राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के टिकट पर निर्वाचित सांसद राजेश रंजन उर्फ़ पप्पू यादव इस चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार हैं और कभी शरद यादव के ही शिष्य दिनेश चंद्र यादव में मुकाबला है।
बेशक मधेपुरा हाई-प्रोफ्राइल सीट है, लेकिन इस बार यहां न कोई मुद्दा है, न कोई दागी और न ही बागी। मसला सिर्फ मोदी या माद्दा है। यादव बहुल इस संसदीय क्षेत्र में वोटरों के रुख पर पर ही दिग्गजों का भाग्य टिका है। मुकाबला त्रिकोणीय है और तीनों दिग्गज एक ही बिरादरी के हैं। यहां देश के दिग्गज राजनीतिज्ञों में शुमार शरद यादव की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है।
छात्र राजनीति से लेकर राष्ट्रीय राजनीति में शरद का नाम
छात्र राजनीति से लेकर राष्ट्रीय राजनीति में एक अलग पहचान रखने वाले राजनेता का नाम शरद यादव है। बिहार की राजनीति में जब बात बड़े नाताओं की होती है तो यह मुकाम जिनको सबसे पहले हासिल होता है उनमें शरद यादव का नाम हैं। शरद यादव ने मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार में अपना राजनीतिक परचम लहराया और जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रहे। सात बार लोकसभा में पहुंचे।
राजनीतिक सफर
1 जुलाई 1947 को मध्य प्रदेश के होशंगाबाद में एक गांव में किसान परिवार में जन्म हुआ। पढ़ाई के समय से ही राजनीति में दिलचस्पी रही और 1971 में इंजीनियरिंग की पढ़ाई के दौरान जबलपुर इंजीनियरिंग कॉलेज, जबलपुर मध्य प्रदेश में छात्र संघ के अध्यक्ष चुने गए। छात्र राजनीति के साथ वह पढ़ाई में भी अव्वल रहे। डॉ. राम मनोहर लोहिया के विचारों से प्रेरित होकर राजनीति में कदम रखा। कई आंदोलनों में हिस्सा लिया। 1969-70. 1972 व 1975 में हिरासत में लिए गए। मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू करने वाले में अहम भूमिका भी निभाई।
1974 में पहली बार लोकसभा पहुंचे
साल 1974 में मध्य प्रदेश की जबलपुर सीट से चुनाव लड़कर शरद यादव पहली बार लोकसभा पहुंचे। इसके बाद साल 1977 में भी उन्होंने इसी सीट से लोकसभा चुनाव जीता। 1989 में उन्होंने यूपी के बदायूं सीट से लोकसभा का चुनाव जीता। इसके बाद शरद यादव ने बिहार का रुख किया। उन्होंने बिहार के मधेपुरा लोकसभा सीट से साल 1991, 96, 99 व 2009 में जीत दर्ज की। बता दे कि आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव के जेल जाने के बाद अब जो जगह एक वरिष्ठ नेता की पार्टी में खाली है उसको शरद यादव भर चुके हैं। मधेपुरा से जीतते हैं तो उनका कद पार्टी में और बढ़ेगा।
मधेपुरा लोकसभा सीट आरजेडी का गढ़
बता दें कि बिहार की मधेपुरा लोकसभा सीट आरजेडी का गढ़ मानी जाती है. आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद स्वयं यहां से 1998 व 2004 में सांसद निर्वाचित हो चुके हैं। इनसे पहले 1989 में जनता दल के टिकट पर रमेंद्र यादव रवि और 1991 और 1996 में जनता दल के टिकट पर ही पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद सांसद निर्वाचित हुए। जनता दल का विघटन होने के बाद से आरजेडी और जेडीयू मधेपुरा की राजनीति की दो धुरी बन गए। 1998 के चुनाव से मधेपुरा सीट पर आरजेडी और जेडीयू के बीच ही मुख्य मुकाबला होता आ रहा है। 1998 से 2014 के बीच हुए छह चुनावों में चार बार आरजेडी और दो बार डेजीयू के प्रत्याशी को जीत हासिल हुई है।