राजस्थान पाॅलिटिकल क्वारंटाइनः क्या हार्स ट्रेडिंग वायरस का कोई प्रभावी वैक्सीन कभी बनेगा?
By प्रदीप द्विवेदी | Published: August 3, 2020 01:50 PM2020-08-03T13:50:13+5:302020-08-03T13:50:13+5:30
दलबदल की नई सियासी तकनीक ने इस कानून का उद्देश्य और उपयोगिता समाप्त कर दी है, लिहाजा अब या तो यह रद्द हो जाना चाहिए या फिर इसमें जरूरी संशोधन होना चाहिए.
जयपुरः हार्स ट्रेडिंग वायरस के डर से राजस्थान में सीएम अशोक गहलोत खेमे के विधायक जयपुर से जैसलमेर शिफ्ट कर दिए गए हैं. देश में सातवें दशक से दलबदल की शुरूआत हुई जो बाद में बेशर्म आयाराम-गयाराम में बदल गई.
इस समस्या के मद्देनजर, विधायकों और सांसदों के भ्रष्ट आचरण पर लगाम लगाने के इरादे से 1 मार्च 1985 को अस्तित्व में तो आया दलबदल कानून, लेकिन अब वह भी बेअसर हो चुका है. दलबदल की नई सियासी तकनीक ने इस कानून का उद्देश्य और उपयोगिता समाप्त कर दी है, लिहाजा अब या तो यह रद्द हो जाना चाहिए या फिर इसमें जरूरी संशोधन होना चाहिए.
वर्ष 1985 से पहले दलबदल के खिलाफ कोई कानून नहीं था. वर्ष 1985 में राजीव गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार दलबदल के खिलाफ विधेयक लेकर आई थी. इसके तहत विधायकों और सांसदों के पार्टी बदलने पर लगाम लगाई गई थी. लेकिन, राजनीतिक पतन के चलते गुजरते समय के साथ इस कानून का भी सियासी तोड़ आ गया है, जिसके नतीजे में भ्रष्ट आचरण तो नहीं रूका, भ्रष्टाचार जरूर बहुत ज्यादा बढ़ गया है.
दलबदल करने पर उस जन प्रतिनिधि को कोई महत्वपूर्ण पद मिल सकता था
पहले दलबदल में केवल पद की भूमिका थी, कि दलबदल करने पर उस जन प्रतिनिधि को कोई महत्वपूर्ण पद मिल सकता था. अब दलबदल करने पर पद के अलावा भी बोनस में बहुत कुछ मिलने लगा है. यही नहीं, जरूरत और बदलते समय के साथ हार्स ट्रेडिंग के रेट भी बढ़ते जा रहे हैं.
दलबदल के लिए पहले लाखों रुपयों की चर्चा अब करोड़ों की होने लगी है. दलबदल का वर्तमान कानूनी तोड़ यह है कि वह जन प्रतिनिधि पहले इस्तीफा दे, जिसके दम पर सरकार गिराई जाए. फिर नई सरकार में दलबदल करने वाले को मंत्री बनाया जाए और उप-चुनाव लड़कर वह पुनः सदन में आ जाए.
आजकल दलबदल के लिए विभिन्न राज्यों में यह तरीका बेशर्मी के साथ उपयोग में लिया जा रहा है. आयाराम-गयाराम का दौर अब लियाराम-दियाराम में बदल गया है. वर्तमान में ऐसे दलबदलुओं को तो केवल जनता ही सबक दे सकती है. परन्तु, बड़ा सवाल यह है कि क्या जनता ऐसे दलबदलुओं को आईना दिखाएगी?
दलबदल कानून की भावना को बचाने के लिए अब इसमें संशोधन की जरूरत महसूस की जा रही है. कोई भी जनप्रतिनिधि यदि सदन से इस्तीफा दे देता है या उसकी सदस्यता समाप्त कर दी जाती है, तो उस पर अगले छह साल तक के लिए कोई भी चुनाव लड़ने पर पाबंदी होनी चाहिए.
इतना ही नहीं, अगले छह साल तक उसे मंत्री जैसा कोई भी महत्वपूर्ण पद नहीं दिया जाना चाहिए. क्योंकि, प्रभावी सत्ताधारी दल ही दलबदल को प्रोत्साहित करते हैं, लिहाजा दलबदल कानून में क्या ऐसा कोई संशोधन संभव हो पाएगा? महत्वपूर्ण प्रश्न यह भी है कि- क्या हार्स ट्रेडिंग वायरस का कोई प्रभावी वैक्सीन कभी बनेगा?