बिहारः महागठबंधन से बाहर तीसरे मोर्चे के रूप में सामने आ सकते हैं वामदल, कन्हैया के लिए सीट नहीं छोड़ना चाहती RJD
By एस पी सिन्हा | Published: March 15, 2019 07:56 PM2019-03-15T19:56:55+5:302019-03-15T19:56:55+5:30
महागठबंधन में शामिल होने से पहले ही सीपीआई के दावे ने महागठबंधन के घटक दलों की मुसीबत बढ़ा दी है. पेंच तब और भी फंस गया जब राजद ने भी बेगूसराय सीट से दावा ठोक दिया है. तनवीर हसन ने कहा है कि अगर पार्टी उन्हें टिकट देगी तो वो चुनाव जरूर लड़ेंगे.
लोकसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा के बाद बिहार में विपक्षी दलों के महागठबंधन के बीच सीट बंटवारे को लेकर अभी तक स्थिति स्पष्ट नहीं हुई है. ऐसे में वामपंथी दलों ने एक सीट के राजद के प्रस्ताव को नकार दिया है. बेगूसराय सीट ने सीपीआई के लिए महागठबंधन में राह मुश्किल कर दी है. सीपीआई नेताओं ने बेगूसराय की सीट से कन्हैया के चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है. बेगूसराय को बिहार का 'मिनी मास्को' कहा जाता है. माना जाता है यहां पर सीपीआई का अपना जनाधार भी है.
लेकिन, अब राजद के प्रदेश उपाध्यक्ष तनवीर हसन ने बेगूसराय की सीट पर दावा ठोंक कर सीपीआई की लिए मुश्किलें बढ़ा दी हैं. आलम यह है कि एक सीट को लेकर सीपीआई के महागठबंधन में शामिल होने का रास्ता बंद होता नजर आ रहा है. दरअसल, सीपीआई ने बेगूसराय सीट पर दावा ठोक दिया है. सीपीआई की ओर से कन्हैया बेगूसराय सीट पर चुनाव लड़ेंगे और पार्टी ने इसकी तैयारी भी शुरू कर दी है. लेकिन, बेगूसराय सीट और भी दिलचस्प इसलिए भी हो गया है क्योंकि सीपीआई अभी महागठबंधन में शामिल नहीं हुई है.
महागठबंधन में शामिल होने से पहले ही सीपीआई के दावे ने महागठबंधन के घटक दलों की मुसीबत बढ़ा दी है. पेंच तब और भी फंस गया जब राजद ने भी बेगूसराय सीट से दावा ठोक दिया है. तनवीर हसन ने कहा है कि अगर पार्टी उन्हें टिकट देगी तो वो चुनाव जरूर लड़ेंगे. वहीं, तनवीर हसन ने सीपीआई की ओर से कन्हैया को बेगूसराय की सीट पर चुनाव लड़ाने के दावे पर जमकर भड़ास निकाली है. तनवीर हसन ने कहा है कि सीपीआई अभी महागठबंधन का हिस्सा नहीं है. इसलिए महागठबंधन में शामिल होने से पहले इस तरह का दावा गलत है. तनवीर हसन ने यह भी कहा है कि कन्हैया कहां से चुनाव लड़ते हैं यह उनकी पार्टी और उनका मामला है.
वहीण, सीपीआई के शर्तों को लेकर राजद के प्रदेश अध्यक्ष रामचन्द्र पूर्वे सीपीआई के महागठबंधन में शामिल होने से जुड़े सवालों पर बचते नजर आए. हालांकि पूर्वे ने इतना जरूर कहा है कि इस मामले पर पार्टी के शीर्ष नेता फैसला लेंगे. कन्हैया के नाम से उनके सहयोगी भी परेशान हैं. इसके पीछे सबसे बड़ी वजह है कन्हैया का तेवर और उनकी उम्र.
दरअसल, लालू परिवार के वारिस तेजस्वी यादव हों या पासवान परिवार के दीपक चिराग पासवान. तीनों की उम्र लगभग समान है. कन्हैया के तेवर और राष्ट्रीय पहचान को देखते हुए लालू नहीं चाहते कि कन्हैया कुमार को बेगूसराय से महागठबंधन का उम्मीदवार बनाया जाए, जो आने वाले समय में उन्हीं के लिए खतरा बन जाएं.
कन्हैया कुमार राष्ट्रीय स्तर की राजनीति करने के लिए जिस जमीन की तलाश में हैं, वह बेगूसराय से बेहतर कोई और हो ही नहीं सकती. लेकिन, अब तक कन्हैया को अपना बताने वाले विरोधी हो गए हैं. इसके पीछे सिर्फ और सिर्फ एक ही वजह है वो है सियासी अदावत. दरअसल, कन्हैया हों या तेजस्वी, दोनों की सियासत आरएसएस, भाजपा और पीएम मोदी के विरोध पर ही अब तक टिकी हुई है. दोनों ने ही खुलकर संघ और संघ की विचार-धारा का विरोध किया और अपनी पहचान बनाई है.
इधर, लालू का कहना बिहार में भाकपा का कोई जनाधार नहीं है. लालू के तर्क में कितना दम है ये तो भविष्य पर निर्भर करता है. लेकिन 2014 लोकसभा चुनाव की बात की जाए तो यहां भाकपा को लगभग एक लाख 92 हजार वोट मिले थे और भाकपा प्रत्याशी तीसरे नंबर पर थे. ऐसे में लालू के तर्क के संकेत को समझा जा सकता है. इस बीच, दिल्ली में महागठबंधन के नेताओं की बैठक में भी वामपंथी दलों को नहीं बुलाया गया. ऐसे में यह कयास लगाया जाने लगा है कि महागठबंधन में सम्मानजनक सीटें न मिलने पर वामपंथी दल यहां 'तीसरे मोर्चे' की भूमिका में नजर आ सकते हैं.