राजद नेता रघुवंश प्रसाद ने पार्टी से तोड़ा नाता, जदयू सांसद ललन सिंह ने कहा-धनोपार्जन, धन की उगाही, पार्टी का टिकट बेचने वाली पार्टी किसी धरोहर का सम्मान कर भी नहीं सकती
By एस पी सिन्हा | Published: September 10, 2020 07:37 PM2020-09-10T19:37:16+5:302020-09-10T19:37:16+5:30
जदयू सांसद राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह ने कहा कि बिहार के सम्मान की बात करने वाला राजद रघुवंश बाबू जैसे धरोहर का भी सम्मान नहीं कर सका.
पटना। राजद से पूर्व केन्द्रीय मंत्री डा. रघुवंश प्रसाद सिंह के इस्तीफा के बाद अब जदयू ने एक बार फिर से राजद पर हमला किया है. उनके इस्तीफे पर प्रतिक्रया देते हुए जदयू सांसद राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह ने कहा कि बिहार के सम्मान की बात करने वाला राजद रघुवंश बाबू जैसे धरोहर का भी सम्मान नहीं कर सका. रघुवंश बाबू बिहार के एक सम्मानित समाजवादी नेता हैं. उन्होंने कहा कि धनोपार्जन, धन की उगाही, पार्टी का टिकट बेचने वाली पार्टी किसी धरोहर का सम्मान कर भी नहीं सकती. वैसी पार्टी में किसी को सम्मान मिलेगा यह सोचना भी बेमानी है.
ललन सिंह ने कहा कि आकंठ भ्रष्टाचार में डूबी पार्टी को त्यागने के लिए रघुवंश बाबू को सलाम. वैसी पार्टी में किसी को सम्मान मिलेगा यह सोचना भी बेमानी है. रघुवंश प्रसाद सिंह लोजपा के पूर्व सांसद रामा सिंह के राजद में लाने के प्रयास से खफा थे. पहली बार जब रामा सिंह ने खुद राजद की सदस्यता ग्रहण करने की घोषणा की तो रघुवंश प्रसाद ने राजद के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया था. तब उन्होंने कहा था कि अस्पताल से बाहर निकलने के बाद राजनीति पर चर्चा होगी. लेकिन बाहर आने के बाद एक बार फिर वह बीमार हो गये और उन्हें दिल्ली के एम्स में भर्ती करना पडा.
वहीं, राजद का कोई भी नेता रघुवंश बाबू के इस्तीफे पर बोलने को तैयार नहीं है. वरीय नेताओं के मोबाइल ऑफ हो गये तो प्रवक्ताओं ने भी किसी प्रकार की टिप्पणी से इनकार कर दिया. इससे लगता है कि पार्टी रघुवंश बाबू को मनाने में अभी लगी हुई है. बताया जाता है कि रघुवंश प्रसाद सिंह लालू प्रसाद यादव के बडे पुत्र विधायक तेजप्रताप यादव की उस टिप्पणी से भी नाराज थे, जिसमें उन्होंने राजद को समुद्र और रघुवंश बाबू को उसका एक लोटा पानी बताया था. हालांकि, लालू प्रसाद यादव की फटकार के बाद तुरंत तेज प्रताप संभल गये और दूसरे दिन उन्होंने रघुवंश प्रसाद को अपना अभिभावक बताया था.
यहां उल्लेखनीय है लालू प्रसाद यादव और डा. रघुवंश प्रसाद सिंह दोनों लोकदल में रहते हुए कर्पूरी ठाकुर के बेहद करीबियों में शामिल थे. जब कर्पूरी ठाकुर का निधन हुआ तो रघुवंश ने लालू को आगे बढाने में काफी मदद की. 1988 में नेता प्रतिपक्ष बनने में भी खुलकर साथ दिया. बाद में जब जनता दल बना तो भी रघुवंश ने लालू का साथ नहीं छोडा. भरोसे का रिश्ता तब और मजबूत हुआ जब 1997 में लालू ने जनता दल से अलग हटकर राष्ट्रीय जनता दल (राजद) बनाया. रघुवंश उसके संस्थापक सदस्यों में से थे. यहां तक कि पार्टी का संविधान भी लालू ने उनकी सहमति से ही फाइनल किया था.
रघुवंश बाबू ठेठ गंवई अंदाज में हमेशा लालू के मन की भाषा ही बोलते आए हैं. माना जाता था कि लालू जो सोचते हैं, वहीं रघुवंश बोलते हैं. करीब पांच दशकों की राजनीति में सिर्फ एक बार को छोडकर दोनों की विचारधारा में कभी मतभेद नहीं दिखा. करीब दो साल पहले जब केंद्र ने गरीब सवर्णों के लिए 10 फीसद आरक्षण की व्यवस्था की थी तो राजद ने उसका विरोध किया था. राज्यसभा में राजद सांसद मनोज झा ने झुनझुना बजाकर प्रस्ताव का विरोध किया था, जो रघुवंश को रास नहीं आया. लालू तब जेल में थे. रघुवंश ने मीडिया में अपनी व्यथा साझा करते हुए राजद को रास्ते पर लाने की कोशिश की थी, किंतु तब उनकी नहीं सुनी गई थी. हालांकि बाद में राजद ने इस मुद्दे पर मौन साध लिया.
कोरोना पॉजिटिव होने के बाद रघुवंश प्रसाद पटना एम्स में भर्ती हुए थे. इस दौरान पता चला कि उनके प्रबल प्रतिद्वंद्वी रामा सिंह को राजद में लाने की तैयारी कर ली गई है. इससे बुरी तरह आहत रघुवंश प्रसाद ने अस्पताल से ही अपने पद से लालू को इस्तीफा भेज दिया. बाद में पटना एम्स से निकलकर दिल्ली एम्स पहुंचे और पिछले करीब महीने भर से वहीं इलाज करा रहे हैं. बुधवार को तबीयत बिगडने के बाद उन्हें आइसीयू में भर्ती कराया गया था. इसबार भी उन्होंने अस्पताल से ही पार्टी को भी अलविदा कह दिया.