बिहार में भाकपा की डूबती नैया को कन्हैया के सहारे की उम्मीद, पार्टी ने चुनावी मैदान में उतारने की तैयारियां शुरू की
By एस पी सिन्हा | Published: July 12, 2020 06:09 PM2020-07-12T18:09:38+5:302020-07-12T18:09:38+5:30
बिहार में राजद के नेतृत्व वाले महागठबंधन में शामिल होने की ख्वाहिश रखने वाली भाकपा को कन्हैया कुमार से बड़ी उम्मीद है. लेकिन, सबसे बड़ा सवाल तो ये है कि क्या लालू यादव का कुनबा कन्हैया को स्वीकार करेगा?
पटना,12 जुलाई। बिहार की राजनीति में हासिये पर आ चुकी भाकपा को अब जेएनयू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार से उम्मीदें बंधी हैं, कारण कि कन्हैया कुमार के अलावे अब भाकपा का और कोई नाव खेवैया नजर नही आ रहा है.
शायद यही कारण है कि बिहार में होने जा रहे विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुटी भाकपा ने कन्हैया कुमार को मैदान में उतारने की तैयारियां शुरू कर दी है. भाकपा बडी उम्मीद तो यही है कि कन्हैया कुमार को मैदान में उतार कर भाकपा महागठबंधन में ज्यादा सीटें हासिल कर सकती है.
बिहार में राजद के नेतृत्व वाले महागठबंधन में शामिल होने की ख्वाहिश रखने वाली भाकपा को कन्हैया कुमार से बडी उम्मीद है. लेकिन सबसे बडा सवाल तो ये है कि क्या लालू यादव और उनका कुनबा कन्हैया कुमार को स्वीकार करेगा?
विधानसभा चुनाव प्रचार में कन्हैया कुमार भाकपा के होंगे स्टार प्रचारक-
भाकपा के बिहार प्रदेश सचिव सत्यनारायण सिंह ने कहा है कि कन्हैया कुमार विधानसभा चुनाव प्रचार में अहम रोल निभायेंगे. उन्होंने कहा कि कन्हैया कुमार युवाओं के बीच सबसे लोकप्रिय नेता हैं.
बिहार में महागठबंधन को ये हकीकत समझनी होगी. सत्यनारायण सिंह ने कहा कि कन्हैया कुमार युवाओं में सबसे ज्यादा लोकप्रिय हैं और वे बड़ी तादाद में वोटरों को गोलबंद कर सकते हैं.
ऐसे में हम मानते हैं कि सिर्फ भाकपा ही नहीं बल्कि जिस भी पार्टी से हमारा गठबंधन होगा, उसे कन्हैया कुमार से बडा फायदा होने जा रहा है. कन्हैया कुमार को चुनावी मैदान में उतारने की तैयारी पूरी हो चुकी है. अगस्त में बिहार आ रहे हैं.
कन्हैया कुमार ने नागरिकता संशोधन कानून सीएए के खिलाफ पूरे बिहार में यात्रा निकाली-
यहां उल्लेखनीय है कि इससे पहले कन्हैया कुमार ने नागरिकता संशोधन कानून सीएए के खिलाफ इसी साल फरवरी में पूरे बिहार में यात्रा निकाली थी. कन्हैया कुमार ने सीएए के खिलाफ गांधी मैदान में रैली भी की थी. उसके बाद से वे बिहार के राजनीतिक परिदृश्य से गायब हैं. लेकिन अब उनकी पार्टी ने कन्हैया को आगे कर विधानसभा चुनाव लडने का फैसला लिया है.
ऐसे में अब यह सवाल ये उठ रहा है कि कन्हैया कुमार अपनी पार्टी भाकपा की नैया किस हद तक पार लगा पायेंगे? कन्हैया ने पिछला लोकसभा चुनाव बेगूसराय से लड़ा था, जिसमें उन्हें बीजेपी के गिरिराज सिंह से करारी हार का सामना करना पडा था.
दो दशक पहले तक बिहार के बडे इलाके में मजबूत आधार रखने वाली पार्टी भाकपा फिलहाल खस्ताहाल हो चुकी है. पिछले विधानसभा चुनाव में भाकपा ने 81 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे. लेकिन एक भी प्रत्याशी जीत हासिल नहीं कर पाया. लोकसभा चुनाव में भी भाकपा का प्रदर्शन बेहद खराब रहा.
पार्टी का संगठन छिन्न-भिन्न हो चुका है. ऐसे में सवाल अब उठने लगा है कि क्या कन्हैया अकेले अपने दम पर उसे खडा कर पायेंगे?
वहीं, यहां यह भी सवाल उठने लगा है कि तेजस्वी यादव और लालू परिवार कन्हैया कुमार को क्या स्वीकार करेगा? कारण कि यह जगजाहिर है कि लालू यादव और उनका कुनबा कन्हैया कुमार को तेजस्वी यादव के लिए खतरा मानता है. तभी लोकसभा चुनाव में तमाम कोशिशों के बावजूद राजद ने कन्हैया कुमार का समर्थन नहीं किया.
यही नही कन्हैया के खिलाफ अपना मजबूत उम्मीदवार खडा कर दिया. फिर कैसे कहा जा सकता है कि विधानसभा चुनाव में लालू यादव का कुनबा कन्हैया को स्वीकार कर पायेगा.
जानकारों की मानें तो लालू परिवार किसी सूरत में कन्हैया कुमार के साथ तालमेल को तैयार नही है. ये विधानसभा चुनाव तेजस्वी यादव के लिए अस्तित्व की लडाई है.
कन्हैया को आगे कर लालू परिवार तेजस्वी के लिए नया सिरदर्द तैयार करने को कतई तैयार नहीं होने वाला. हालांकि कांग्रेस भाकपा से तालमेल की कोशिशों में लगी है. लेकिन राजद ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है.
हालांकि, भाकपा बिहार में राजद-कांग्रेस के महागठबंधन का हिस्सा बनने की कोशिश कर रही है. कुछ दिन पहले ही भाकपा नेताओं ने कांग्रेस के बिहार प्रभारी शक्ति सिंह गोहिल से महागठबंधन में शामिल होने की बात की थी.
भाकपा ने महागठबंधन में 40 सीटों की मांग की है-
भाकपा के प्रदेश सचिव सत्यानारायण सिंह के मुताबिक उनकी पार्टी महागठबंधन का हिस्सा बनने को उत्सुक है, लेकिन हम सम्मानजनक सीट चाहते हैं. भाकपा सूत्रों के मुताबिक शक्ति सिंह गोहिल से बातचीत के दौरान पार्टी ने महागठबंधन में 40 सीटों की मांग रखी.
ऐसे में लोकसभा चुनाव का परिणाम बताता है कि कन्हैया कुमार से किसी जादू की उम्मीद नहीं की जा सकती है. बेगूसराय सीट पर देश भर के मोदी विरोधी जमात की कोशिशों के बावजूद कन्हैया कुमार सवा चार लाख वोटों से चुनाव हारे. वे जैसे तैसे अपनी जमानत बचा पाये.
खास बात यह भी रही कि कन्हैया कुमार राजग विरोधी मतों में ही सेंध लगा पाये. ऐसे में अगर वे बिहार विधानसभा चुनाव में भी मैदान में उतरते हैं तो राजग समर्थक वोट में बिखराव की संभावना कम ही नजर आ रही है. इसतरह से बिहार में कन्हैया का जादू कितना चल पायेगा? यह कहना अभी बहुत ही कठिन है.