कांग्रेस ने कहा-समिति के चारों सदस्य ‘काले कानूनों के पक्षधर’, किसानों के विवाद निपटान के लिए बनी कमेटी विवादों के घेरे में
By शीलेष शर्मा | Published: January 12, 2021 06:59 PM2021-01-12T18:59:24+5:302021-01-12T19:01:51+5:30
उच्चतम न्यायालय ने तीन नये कृषि कानूनों को लेकर सरकार और दिल्ली की सीमाओं पर धरना दे रहे रहे किसान संगठनों के बीच व्याप्त गतिरोध खत्म करने के इरादे से इन कानूनों के अमल पर अगले आदेश तक रोक लगाने के साथ ही किसानों की समस्याओं पर विचार के लिये चार सदस्यीय समिति गठित कर दी।
नई दिल्लीः किसानों के आंदोलन से जुड़े विवाद को सुलझाने के लिये सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित 4 सदस्यीय कमेटी को लेकर अब परोक्ष रूप से सर्वोच्च न्यायालय ही विवादों से घिरता नज़र आ रहा है।
प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमणियन की पीठ ने सभी पक्षों को सुनने के बाद समिति के लिये भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष भूपिन्दर सिंह मान, शेतकारी संगठन के अध्यक्ष अनिल घन्वत, दक्षिण एशिया के अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति एवं अनुसंधान संस्थान के निदेशक डॉ प्रमोद जोशी और कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी के नामों की घोषणा की।
आंदोलनकारी किसानों के साथ-साथ कांग्रेस का आरोप है कि कमेटी में शामिल किये गये चारों सदस्य पहले ही कह चुके हैं कि वह तीनों कृषि क़ानूनों के पक्ष में हैं फिर यह कमेटी न्याय कैसे करेगी। कांग्रेस इन चारों नामों को लेकर सर्वोच्च न्यायालय पर ही सवाल खड़ा कर दिया।
कांग्रेस ने कृषि कानूनों को लेकर चल रहे गतिरोध को खत्म करने के मकसद से मंगलवार को उच्चतम न्यायालय द्वारा गठित की गई समिति के चारों सदस्यों को ‘काले कृषि कानूनों का पक्षधर’ करार दिया और दावा किया कि इन लोगों की मौजूदगी वाली समिति से किसानों को न्याय नहीं मिल सकता।
पार्टी के महासचिव रणदीप सुरजेवाला ने पूछा कि सर्वोच्च न्यायालय ने इन नामों को कमेटी में रखने से पहले इनकी पड़ताल क्यों नहीं की। उन्होंने यह सवाल भी उठाया कि यह चारों नाम सर्वोच्च न्यायालय को किसने दिये। उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार कांग्रेस को इस बात की जानकारी मिली कि यह चारों नाम सरकार द्वारा सुझाये गये।
रणदीप सुरजेवाला ने फोटोग्राफ़ और दूसरे दस्तावेजी सबूत सार्वजनिक करते हुये साबित किया कि कमेटी में शामिल चारों सदस्य सरकार से मिले हुये हैं ,इतना ही नहीं भूपेंद्र सिंह मान जिनका संबंध बीकेयू से है ने ही सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की है ,फिर याचिकाकर्ता कैसे कमेटी का सदस्य हो सकता है।
पार्टी का मानना था कि किसानों के आंदोलन को तोड़ने के लिये ही सरकार सर्वोच्च न्यायालय का सहारा ले रही है ,यही कारण था कि कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर किसानों को सर्वोच्च न्यायालय जाने के लिये दबाव बना रहे थे। सुरजेवाला ने सवाल किया, ‘‘जब समिति के चारों सदस्य पहले से ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और खेत-खलिहान को बेचने की उनकी साजिश के साथ खड़े हैं तो फिर ऐसी समिति किसानों के साथ कैसे न्याय करेगी?’’
सुरजेवाला ने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को जब सरकार को फटकार लगाई तो उम्मीद पैदा हुई कि किसानों के साथ न्याय होगा, लेकिन इस समिति को देखकर ऐसी कोई उम्मीद नहीं जगती। उन्होंने यह भी कहा, ‘‘हमें नहीं मालूम कि उच्चतम न्यायालय को इन लोगों के बारे में पहले बताया गया था या नहीं?
वैसे, किसान इन कानूनों को लेकर उच्चतम न्यायालय नहीं गए थे। इनमें से एक सदस्य भूपिन्दर सिंह इस कानूनों के संदर्भ में उच्चतम न्यायालय गए थे। फिर मामला दायर करने वाला ही समिति में कैसे हो सकता है? इन चारों व्यक्तियों की पृष्ठभूमि की जांच क्यों नहीं की गई? कांग्रेस नेता ने दावा किया, ‘‘ये चारों लोग काले कानूनों के पक्षधर हैं। इनकी मौजूदगी वाली समिति से किसानों को न्याय नहीं मिल सकता। इस पर अब पूरे देश को मंथन करने की जरूरत है।’’