छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव 2018: आदिवासियों का साथ पाने को बेकरार राजनीतिक दल
By भाषा | Published: June 24, 2018 02:01 PM2018-06-24T14:01:00+5:302018-06-24T14:01:00+5:30
छत्तीसगढ़ में सरकार बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए राजनीतिक दलों ने आदिवासियों को साधने की कोशिश शुरू कर दी है और इसके लिए उनके अपने अपने तर्क हैं। छत्तीसगढ़ में इस वर्ष के अंत में 90 सदस्यीय विधानसभा के लिए चुनाव होना है।
रायपुर, 24 जून। छत्तीसगढ़ में सरकार बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए राजनीतिक दलों ने आदिवासियों को साधने की कोशिश शुरू कर दी है और इसके लिए उनके अपने अपने तर्क हैं। छत्तीसगढ़ में इस वर्ष के अंत में 90 सदस्यीय विधानसभा के लिए चुनाव होना है। इस चुनाव में किसकी जीत होगी, यह भविष्य तय करेगा, लेकिन 32 फीसदी आबादी वाले आदिवासियों के आशीर्वाद के बगैर किसी भी दल के लिए सरकार बनाना आसान नहीं होगा।
वर्ष 2000 में छत्तीसगढ़ राज्य का गठन होने के बाद यहां पहला विधानसभा चुनाव वर्ष 2003 में हुआ था। तब 90 विधानसभा सीटों में से 46 सीटें अनारक्षित थी जबकि 10 सीटें अनुसूचित जाति के लिए तथा 34 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित थी।
इस चुनाव में भाजपा ने 50 सीटें जीतकर सरकार बनाई थी और 37 सीटें जीतकर कांग्रेस विपक्ष में बैठी थी। भाजपा की जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी को एक और बहुजन समाज पार्टी को दो सीटें मिली थी। इस चुनाव में भाजपा को आदिवासियों का साथ मिला था। अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित 34 सीटों में से 25 सीटों पर भाजपा ने विजय हासिल की थी।
जब वर्ष 2008 में विधानसभा के चुनाव हुए तब परिसीमन के कारण अनारक्षित सीटों की संख्या बढ़कर 51 हो गई और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीटों की संख्या घटकर 29 रह गई। हालांकि अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीटों की सख्या में कोई बदलाव नहीं हुआ।
इस चुनाव में भाजपा को 90 में से 50 सीटें मिली और कांग्रेस को 38 सीटों से संतोष करना पड़ा। राज्य में बसपा ने दो सीटों पर जीत हासिल की थी।
इस चुनाव में भी भाजपा ने आदिवासियों के आशीर्वाद से सरकार बनाई थी। आरक्षित 29 में से 19 सीटें भाजपा को मिली थी। वर्ष 2013 के विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस को आदिवासियों का साथ मिला और उसने 29 में से 18 सीटों पर जीत दर्ज की। हालांकि भाजपा इसके बावजूद अपनी सरकार बचाने में कामयाब रही। लेकिन यह संदेश भी गया कि भाजपा पर आदिवासियों का भरोसा कम हो रहा है।
इस वर्ष होने वाले चुनाव के लिए एक बार फिर दोनों दलों ने कमर कस ली है। पिछले दिनों सत्ताधारी दल भाजपा की ओर से जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बस्तर इलाके का दौरा किया था वहीं कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी सरगुजा क्षेत्र में सभाएं लेकर अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित सीटों पर जीत सुनिश्चित करने का प्रयास किया है।
आदिवासियों का भरोसा जीतने को लेकर भाजपा की राज्य इकाई के अध्यक्ष धरमलाल कौशिक कहते हैं कि छत्तीसगढ़ में चौथी बार भाजपा की सरकार बनाने में आदिवासियों की महत्वपूर्ण भूमिका रहेगी।
कौशिक कहते हैं कि आज आदिवासी वर्ग की सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक स्थिति में जो परिवर्तन आया है, वह भाजपा की नीतियों के कारण ही है। पिछले चुनाव में भाजपा को अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित कम सीटें मिली लेकिन आदिवासी वर्ग लगातार भाजपा के साथ है। आने वाले समय में भी पूरी उम्मीद है कि वह साथ ही रहेगा।
प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष भूपेश बघेल भी अनुसूचित जनजाति वर्ग के साथ को लेकर निश्चिंत हैं। बघेल कहते हैं कि आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा के लिए कांग्रेस की सरकारों ने कानून बनाया है। कानून बना लेकिन राज्य की भाजपा सरकार उसका पालन नहीं कर रही है। आदिवासियों को उनके अधिकारों से वंचित रखा जा रहा है और अपने उद्योगपति साथियों को फायदा पहुंचाने के लिए इन कानूनों को तोड़ा मरोड़ा जा रहा है। कांग्रेस हमेशा से आदिवासियों के साथ रही है और उनके अधिकारों के लिए लड़ती रही है।
बघेल ने कहा कि पिछले चुनाव में हमें आदिवासी सीटों पर सफलता मिली क्योंकि आदिवासियों को भाजपा सरकार का छल समझ आ गया है। हमारी सरकार बनेगी तब हम आदिवासियों के लिए बनाए गए कानूनों का पालन कर उनके हितों की रक्षा करेंगे।
इस वर्ष चुनाव मैदान में हमेशा की तरह भाजपा और कांग्रेस आमने सामने हैं। लेकिन कांग्रेस से टूट कर बनी पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की पार्टी ‘जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़’ ने दोनों दलों को परेशानी में डाल रखा है। जोगी की पार्टी भी आदिवासी सीटों के माध्यम से सत्ता तक पहुंचने की कोशिश कर रही है।
जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ नेता और विधायक तथा पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के पुत्र अमित जोगी कहते हैं कि उनकी पार्टी ने तो आदिवासी मुख्यमंत्री की घोषणा कर दी है। आदिवासी हमेशा से उनके साथ हैं।
राज्य के तीनों मुख्य दल आदिवासियों को साथ लेने की कोशिश कर रहे हैं और इसे लेकर उनके अपने अपने तर्क हैं। लेकिन यहां के आदिवासी इसे लेकर क्या सोच रहे हैं, यह भी महत्वपूर्ण है।
राज्य के सर्व आदिवासी समाज के अध्यक्ष सोहन पोटाई कहते हैं कि राज्य में 32 फीसदी आबादी आदिवासियों की है और सरकार बनाने में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। लेकिन राजनीतिक दलों आदिवासियों का हित करने के बजाय उन्हें वोट बैंक की तरह इस्तेमाल किया है।