लोकसभा चुनाव-2019 के लिए बने नए समीकरण, महागठबंधन के सामने बौनी साबित होगी BJP?

By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Published: June 27, 2018 05:21 PM2018-06-27T17:21:14+5:302018-06-27T17:21:14+5:30

राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) की प्रत्याशी तबस्सुम हसन को एक दो नहीं बल्कि कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और आम आदमी पार्टी तक का समर्थन मिला।

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लोकसभा चुनाव-2019 के लिए बने नए समीकरण, महागठबंधन के सामने बौनी साबित होगी BJP?

नई दिल्ली, 27 जूनः लोकसभा 2019 चुनाव के चुनावी समर में एक साल से भी कम समय रह गया है। ऐसे में राजनीति की जमीन पर तमाम समीकरणों ने जगह लेना शुरू कर दिया है। समीकरणों की कड़ी में सबसे पहला नाम आता है 'महागठबंधन' का। यूपीए से जुड़ा लगभग हर दल एंटी मोदी एजेंडे पर काम कर रहा है, कैराना उपचुनाव जिसका सबसे नया उदाहरण है। 

राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) की प्रत्याशी तबस्सुम हसन को एक दो नहीं बल्कि कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और आम आदमी पार्टी तक का समर्थन मिला। नतीजतन तबस्सुम हसन ने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की प्रत्याशी और कैराना सीट से पूर्व सांसद स्व. हुकुम सिंह की बेटी मृगांका सिंह को 44 हजार वोटों से हरा दिया। 

2014 के आम चुनावों में बीजेपी कैराना सीट का 70 प्रतिशत यादव, मुस्लिम, जाट और दलित समीकरण साधने में कामयाब रही थी, लेकिन उपचुनावों में ऐसा नहीं हो पाया क्योंकि उपचुनाव की लड़ाई महागठबंधन ने एक साथ लड़ी। अगर महागठबंधन 2019 तक ऐसे ही बना रहता है तो राजग के सबसे बड़े दल बीजेपी के लिए बड़ी समस्या बन सकता है। 

दूसरी बड़ी चुनौती रही कर्नाटक विधानसभा चुनाव में जेडीएस (जनता दल सेकुलर) और कांग्रेस का गठबंधन। भले कर्नाटक चुनाव में बीजेपी को सबसे अधिक सीटें मिली हों और येदियुरप्पा ने शपथ भी ली, लेकिन सरकार नहीं बना पाए। बेशक कर्नाटक विधानसभा चुनावों को कांग्रेस ने 2019 के राजनीतिक चश्मे से देखा और बीजेपी को सरकार बनाने से रोका। इस गठबंधन की जमीन तैयार करने में सबसे बड़ा नाम कांग्रेस के सबसे अमीर प्रत्याशी डीके शिवकुमार का रहा। 

कर्नाटक में संगठन को युवाओं से जोड़ने और उसके बाद जेडीएस व कांग्रेस के बीच हुए चुनावी गठबंधन का श्रेय शिवकुमार को ही जाता है। चुनाव के अंतिम समय में कांग्रेस का यह दांव सटीक साबित हुआ। भले मुख्मंत्री जेडीएस से हैं, लेकिन फिलहाल के लिए कांग्रेस को बड़ी राहत मिली। 

इसके अलावा एक और ऐसी चुनावी घटना हुई थी जिसका जिक्र राजनीति में भले ही कम हो, लेकिन वह घटना बीजेपी की चिंता का बड़ा कारण बन कर सामने आई। गुजरात कांग्रेस का एक बड़ा चेहरा माने जाने वाले अहमद पटेल ने अपनी राज्यसभा सीट पीएम नरेंद्र मोदी-शाह का गढ़ माने जाने वाले गुजरात में भी बचा ली। यह आश्चर्यजनक दो कारणों से था, पहला अहमद पटेल पर संगठन के तमाम लोगों को भरोसा नहीं था और दूसरा कारण खुद गुजरात ही है। जिस प्रदेश में बीजेपी इतने सालों से सत्ता में है ऐसे प्रदेश में अहमद पटेल की जीत हैरान करने वाली ही है।    

बीजेपी के लिए महागठबंधन सबसे बड़ी चुनौती है, साथ ही साथ सबसे फायदे का सौदा भी है। चुनौती इसलिए क्योंकि बीते कुछ चुनावों में जितने बीजेपी विरोधी दलों ने साथ चुनाव लड़ा है वहां महागठबंधन को फायदा ही हुआ है। वह चाहे कैराना उपचुनाव रहे हों या कर्नाटक व बिहार विधानसभा चुनाव, लेकिन जब इतने क्षेत्रीय दल साथ आते हैं तो सीटों का बंटवारा और मुख्य पदों के लिए चेहरा जैसे मुद्दों पर एक राय नहीं बन पाती। यहां मुख्य मुद्दों से सीधा मतलब प्रधानमंत्री के चेहरे से है।  2019 के आम चुनावों में यह देखना दिलचस्प होगा कि महागठबंधन और राजग एक दूसरे के लिए क्या-क्या चुनौतियां लेकर आते हैं?
(विभव देव शुक्ला की रिपोर्ट)

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