Kabirdas Jayanti 2022: कबीर दास जयंती के अवसर पर पढ़ें उनके ये अनमोल दोहे

By हर्ष वर्धन मिश्रा | Published: June 13, 2022 03:28 PM2022-06-13T15:28:14+5:302022-06-13T15:31:18+5:30

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हर साल ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा तिथि को संत कबीर दास जी की जयंती मनाई जाती है। इस वर्ष कबीरदास जयंती 14 जून 2022 को मनाई जाएगी। कबीरदास जी न सिर्फ एक संत थे बल्कि वे एक विचारक और समाज सुधारक भी थे। उन्होंने अपने दोहों के माध्यम से जीवन जीने की कई सीख दी हैं।

जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान, मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान (अर्थ- सज्जन की जाति न पूछ कर उसके ज्ञान को समझना चाहिए. तलवार की कीमत होती है मयान की नहीं)

बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय, जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय (अर्थ - दूसरों में बुराई मत ढूंढो, खुद की खामियों पर काम करों)

साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय, सार-सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय (अर्थ- ज्ञानी वही है जो बात के महत्व को समझे, बेकार की बातों में न उलझे)

बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर, पंछी को छाया नहीं फल लागे अति दूर। (अर्थ- खजूर के पेड़ के समान बड़ा होने का क्या लाभ, जो ना ठीक से किसी को छाँव दे पाता है। और न ही उसके फल सुलभ होते हैं।)

गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागूं पांय, बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो बताय। (अर्थ- गुरु और गोविंद यानी भगवान दोनों एक साथ खड़े हैं। पहले किसके चरण-स्पर्श करें। कबीरदास जी कहते हैं, पहले गुरु को प्रणाम करूंगा, क्योंकि उन्होंने ही गोविंद तक पहुंचने का मार्ग बताया है।)

पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय, ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय। (अर्थ- बड़ी-बड़ी पुस्तकें पढ़ कर संसार में कितने ही लोग मृत्यु के द्वार पहुंच गए, लेकिन सभी विद्वान न हो सके। कबीर मानते हैं कि यदि कोई प्रेम या प्यार के केवल ढाई अक्षर ही अच्छी तरह पढ़ ले, अर्थात प्यार का वास्तविक रूप पहचान ले तो वही सच्चा ज्ञानी होगा।)

बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि, हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि (अर्थ- वाणी अमूल्य रत्न है. हमेशा तोल-मोल कर बोलना चाहिए)