शिकागो धर्म सम्मेलन के 125 साल: अमेरिका में स्वामी विवेकानंद को माँगनी पड़ी थी भीख, समझा गया चोर

By गुलनीत कौर | Published: September 11, 2018 08:14 AM2018-09-11T08:14:05+5:302018-09-11T08:14:05+5:30

एक राजा ने स्वामी विवेकानंद की इस शिकागो यात्रा के लिए आर्थिक रूप से पूरी मदद करने की ठानी थी लेकिन आखिरी क्षण में वो अपनी बात से पलट गया और उसने स्वामी जी की मदद नहीं की।

125 years of Chicago speech: Struggles Swami Vivekananda faced before and after his speech in Chicago in 1983 | शिकागो धर्म सम्मेलन के 125 साल: अमेरिका में स्वामी विवेकानंद को माँगनी पड़ी थी भीख, समझा गया चोर

शिकागो धर्म सम्मेलन के 125 साल: अमेरिका में स्वामी विवेकानंद को माँगनी पड़ी थी भीख, समझा गया चोर

11 सितंबर 1983 को अमेरिका के शिकागो में स्वामी विवेकानंद ने ऐसा भाषण दिया जिसके बाद पूरी दुनिया में उनकी चर्चा होने लगी। इस भाषण की शुरुआत उन्होंने 'मेरे अमेरिकी भाईयों बहनों' से की थी जिसके बाद ही पूरा हॉल तालियों की गूंज से भर गया था। स्वामी विवेकानंद के इस भाषण की चर्चा तो सभी जगह हुई लेकिन इस भाषण और इसकी सफलता को पाने से पहले उनके साथ क्या-क्या हुआ, यह बहुत कम लोग जानते हैं। शिकागो तक पहुंचने और उसके बाद स्वामी विवेकानंद के साथ क्या हुआ, उन्हें किन-किन परिस्थितियों का सामना करना पड़ा, आइए आपको बताते हैं:

एक अमेरिकी वेबसाइट पर छपी रिपोर्ट के अनुसार स्वामी विवेकानंद विश्व धर्म सम्मलेन के शुरू होने से पांच सप्ताह पहले ही शिकागो पहुंच गए थे। लेकिन जब उन्हें वहां जाना था, तभी से उनका संघर्ष शुरू हो गया था।

कहा यह भी जाता है कि शुरुआत में स्वामी विवेकानंद अमेरिका जाना ही नहीं चाहते थे। वे शिकागो जाकर भाषण देने के बिलकुल भी इच्छुक नहीं थे, लेकिन फिर बाद में आखिरकार उन्होंने शिकागो जाने का मन बना ही लिया। 

एक राजा ने स्वामी विवेकानंद की इस शिकागो यात्रा के लिए आर्थिक रूप से पूरी मदद करने की ठानी थी लेकिन आखिरी क्षण में वो अपनी बात से पलट गया और उसने स्वामी जी की मदद नहीं की। 

उस समय स्वामी विवेकानंद के पास शिकागो जाने के लिए तो क्या, कपड़े खरीदने तक के पैसे नैन थे। जैसे-तैसे करके उन्होंने सभी इंतजाम किए। दोस्तों ने कुछ कपड़े डाई लेकिन जैसे ही उनका जहाज शिकागो पहुंचा, दोस्तों की यह कोशिश भी नाकाम हुई।

शिकागो की उस कड़ाके की ठंड में दोस्तों द्वारा डाई हुए पतले कपड़े किसी काम ना आए। कुछ ही दिनों में स्वामी विवेकानंद की आर्थिक स्थिति बद से बदतर हो गई। वे भीख मांगने की कगार पर आ गए। शिकागो के लेक शोर में स्वामी विवेकानंद ने खाने के लिए भीख भी माँगी लेकिन वहां के लोगों ने उन्हें चोर-डाकू समझकर कई बार भगाया और मारा भी। 

जब वे शिकागो की सड़कों पर अपनी पारंपरिक वेशभूषा पहन निकलते तो लोग उन्हें अजीब निगाहों से देखते, उनपर हंसते और कई बार तो लड़के उनके पीछे दौड़ते भी थे। शिकागो की उस ठंड में जब वे गलती से अपना पता भूल गए थे तो उन्हें एक रात मालगाड़ी के डिब्बे में भी गुजारनी पड़ी थी। 

इतने संघर्षों के बाद जब उन्होंने शिकागो के विश्व धर्म सम्मलेन में भाषण दिया, तब लोगों ने उनकी बुद्धिमानी का लोहा माना। इसके बाद स्वामी विवेकानंद ने अमेरिका में अलग-अलग जगह जाकर भाषण दिए। दूर-दूर से लोग उन्हने बुलाते और उनसे ज्ञान पाते थे।

शिकागो के अपने उस घर में भी उनसे कई लोग मिलने आते, उनका ज्ञान सुनते। लेकिन इतनी प्रसिद्धि के बावजूद भी लोगों ने जो थोड़ी बहुत मदद मिलती थी उससे स्वामी विवेकानंद अपने शिकागो के घर का किराया तक निकाल नहीं पाते थे। 

यह कम नहीं था कि वहां उनसे ईर्ह्स्या करने वाले लोगों ने उनके बारे में बुरी बातें फैलाना शुरू कर दिया। इन अफवाहों का जोर इतना बढ़ गया कि ना केवल अमेरिका में बल्कि भारत में भी लोग स्वामी विवेकानंद पर शक करने लगे। जव बे भारत लौटे तो अपार सफलता पाने के बावजूद भी कई लोगों ने उनसे घृणा की जिनमें उनके करीबी रिश्तेदार भी शामिल थे। 

लेकिन इस सब के बावजूद स्वामी विवेकानंद ने हार न अमानी और अपने सन्देश और उपदेशों को कायम रखा। 

Web Title: 125 years of Chicago speech: Struggles Swami Vivekananda faced before and after his speech in Chicago in 1983

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