सूखाग्रस्त गांवों में पूरक आहार योजना उधार पर: दो महीनों से नहीं मिला अनुदान, मुख्याध्यापकों की जेब पर बोझ
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: September 18, 2019 02:17 PM2019-09-18T14:17:22+5:302019-09-18T14:17:22+5:30
सुखाग्रस्त गावों की शालाओं में शालेय पोषण आहार योजना के तहत दिए जाने वाले पूरक आहार का अनुदान दो महीने से नहीं मिल पाया है. इसके चलते योजना का खर्च मुख्याध्यापकों को अपनी जेब से अदा करना पड़ रहा है.
शासन द्वारा घोषित सूखाग्रस्त गावों की शालाओं में पहली से आठवीं कक्षा तक के विद्यार्थियों को गर्मियों की छुट्टी में शालेय पोषण आहार देने का फैसला लिया गया था लेकिन छुट्टी के दौरान विद्यार्थी शाला में उपस्थित नहीं रहे. इसलिए बाद में तय किया गया है कि शाला शुरू होने पर नियमित पोषण आहार के साथ सप्ताह में तीन दिन पूरक आहार भी दिया जाएगा.
इसके अंतर्गत तीन दिन दूध, फल व अंडे दिए जाते हैं. इसके लिए प्रतिदिन हर विद्यार्थी के लिए पांच रुपए अनुदान दिया जाता है. नागपुर जिले के हिंगणा, उमरेड, कलमेश्वर व काटोल के कुछ गांवों के लिए ये योजना लागू है.
स्कूलों को शुरू हुए दो माह से अधिक का अरसा बीत रहा है लेकिन योजना में अनुदान का एक रुपया भी अब तक हासिल नहीं हुआ है. नियमित पोषण आहार का भी अनुदान नहीं इस योजना से पहले की नियमित शालेय पोषण आहार योजना के ईंधन व सब्जी-भाजी के लिए भी अब तक अनुदान उपलब्ध नहीं कराया गया है. इस वजह से मुख्याध्यापकों पर खर्च का दोहरा भार पड़ रहा है.
स्तर पर निधि कुछ दिन पहले ही उपलब्ध कराई जा चुकी है लेकिन जिप. स्तर से निधि अब तक शालाओं के खाते में जमा नहीं कराई गई है. मुख्याध्यापकों की पगार, कोषागार नहीं दोहरे खर्च की मार झेल रहे मुख्याध्यापकों के संबंध में कहा जा रहा है कि इनका वेतन कोई कोषागार नहीं है.
महाराष्ट्र राज्य प्राथमिक शिक्षक समिति के जिलाध्यक्ष लीलाधर ठाकरे, महासचिव अनिल नासरे सहित दिनकर उरकांदे, विलास कालमेघ, सुरेश श्रीखंडे, नीलकंठ लोहकरे, प्रकाश सव्वालाखे, अंकुश कडू, कमलाकर काले आदि ने बताया कि अनुदान शालाओं को त्वरित रूप से उपलब्ध कराए जाने की मांग की गई है.