किसानों की समस्याओं की हो रही है अनदेखी, चुनावी बिगुल बजने के बाद से महाराष्ट्र में 174 किसान मौत को लगा चुके हैं गले

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: April 17, 2019 08:21 AM2019-04-17T08:21:41+5:302019-04-17T09:00:59+5:30

सभी राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि घर-घर जाकर मतदाताओं से वोट अपील कर रहे हैं लेकिन फसल नहीं होने, फसल को कम भाव मिलने, कर्ज के बोझ के कारण हो रही किसान आत्महत्याओं की किसी को परवाह नहीं है. सूखे की मार झेल रहे मराठवाड़ा में महीने भर में 91 किसानों ने जान दी है. इसके बाद विदर्भ में 49, खानदेश में 15 तथा नासिक में 9 किसानों ने आत्महत्या की है.

lok sabha elections: 174 farmers commits suicide this year in maharashtra | किसानों की समस्याओं की हो रही है अनदेखी, चुनावी बिगुल बजने के बाद से महाराष्ट्र में 174 किसान मौत को लगा चुके हैं गले

किसानों की समस्याओं की हो रही है अनदेखी, चुनावी बिगुल बजने के बाद से महाराष्ट्र में 174 किसान मौत को लगा चुके हैं गले

चुनाव के दौरान प्रचार रैलियों में मतदाताओं के लिए आश्वासनों की बौछार की जा रही है लेकिन फसल नहीं होने और कर्ज के बोझ से दबे किसानों को कोई दिलासा नहीं दी गई है. चुनावी बिगुल बजने के बाद से राज्य में 174 किसानों ने आत्महत्या कर ली है इसके बावजूद चुनाव प्रचार की भागदौड़ की वजह से इस ओर किसी को भी ध्यान देने का समय नहीं मिल पाया है.

सभी राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि घर-घर जाकर मतदाताओं से वोट अपील कर रहे हैं लेकिन फसल नहीं होने, फसल को कम भाव मिलने, कर्ज के बोझ के कारण हो रही किसान आत्महत्याओं की किसी को परवाह नहीं है. सूखे की मार झेल रहे मराठवाड़ा में महीने भर में 91 किसानों ने जान दी है. इसके बाद विदर्भ में 49, खानदेश में 15 तथा नासिक में 9 किसानों ने आत्महत्या की है.

मराठवाड़ा में एक जनवरी से 14 अप्रैल के बीच 220 किसानों ने खुदकुशी की है. इनमें से 148 किसानों को सरकारी मदद मिली है, 54 मामले अपात्र ठहराए गए हैं जबकि 18 मामले जांच के लिए लंबित हैं. एक से 31 मार्च तक 69 किसानों ने आत्महत्या की है और पिछले पखवाड़े में लगभग 22 किसानों ने जान दी है. राज्य सरकार ने नियम-शर्तों के साथ किसानों को डेढ़ लाख रुपए तक का कर्ज माफ किया है तथा केंद्र सरकार ने इस वर्ष से लाभार्थी किसानों को सालाना 6000 रुपए देने की घोषणा की है. इसके बावजूद किसान को राहत नहीं मिली है.

इस वर्ष सूखे के कारण किसानों को काफी नुकसान हुआ है. मवेशियों को चारा की किल्लत हो रही है. पश्चिम वर्‍हाड में अकोला, बुलढाणा और वाशिम जिले में महीनेभर में 16 किसानों ने आत्महत्या की है. जनवरी से अहमदनगर जिले में 40 किसानों ने जान दी है.

किसानों को भूल गए

वसंतराव नाईक कृषि स्वावलंबन मिशन के अध्यक्ष किशोर तिवारी का कहना है कि नेताओं के 95 फीसदी भाषण एक -दूसरे पर आरोप मढ़ने वाले रहते हैं. वे चुनावी रैलियों के दौरान किसानों की समस्याओं को भूल गए हैं. नेताओं को किसानों की आत्महत्या तथा उनकी आर्थिक समस्याओं की अनदेखी की जा रही है.

किसान पुत्र आंदोलन से जुड़े  अमर हबीब का कहना है कि रोज ही पुलवामा राज्य में दिन पर दिन किसान आत्महत्या कर रहे हैं इसलिए यहां रोज ही पुलवामा हो रहा है. कांग्रेस की ओर से किए गए किसान विरोधी कानून को भाजपा ने रद्द नहीं किया है. दोनों दल किसान आत्महत्याओं के लिए जिम्मेदार हैं इसलिए वे मुंह छिपा रहे हैं.

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