कोरेगांव-भीमा : उच्च न्यायालय ने नवलखा के खिलाफ मामला खारिज करने से किया मना
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: September 13, 2019 06:36 PM2019-09-13T18:36:06+5:302019-09-13T18:36:06+5:30
पीठ ने कहा कि यह बिना आधार और सबूत वाला मामला नहीं है। पीठ ने नवलखा की ओर से दायर याचिका खारिज कर दी, जिन्होंने जनवरी 2018 में पुणे पुलिस द्वारा उनके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को खारिज करने की मांग की थी।
बंबई उच्च न्यायालय ने कोरेगांव-भीमा हिंसा और माओवादियों के साथ कथित जुड़ाव के लिए नागरिक अधिकार कार्यकर्ता गौतम नवलखा के खिलाफ दर्ज मामले को खारिज करने से इनकार करते हुए शुक्रवार को कहा कि मामले में प्रथम दृष्टया तथ्य दिखता है।
न्यायमूर्ति रंजीत मोरे और न्यायमूर्ति भारती डांगरे की पीठ ने कहा, ‘‘मामले की व्यापकता को देखते हुए हमें लगता है कि पूरी छानबीन जरूरी है।’’ पीठ ने कहा कि यह बिना आधार और सबूत वाला मामला नहीं है। पीठ ने नवलखा की ओर से दायर याचिका खारिज कर दी, जिन्होंने जनवरी 2018 में पुणे पुलिस द्वारा उनके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को खारिज करने की मांग की थी।
Bhima Koregaon Case: Bombay High Court rejected the petition filed by activist Gautam Navlakha seeking to quash FIR lodged against him by Pune Police. pic.twitter.com/ojgkKIzncc
— ANI (@ANI) September 13, 2019
एल्गार परिषद द्वारा 31 दिसंबर 2017 को पुणे जिले के कोरेगांव भीमा में कार्यक्रम के एक दिन बाद कथित रूप से हिंसा भड़क गयी थी। पुलिस का आरोप है कि मामले में नवलखा और अन्य आरोपियों का माओवादियों से जुड़ाव था और वे सरकार को उखाड़ फेंकने की दिशा में काम कर रहे थे।
अदालत ने कहा, ‘‘अपराध कोरेगांव-भीमा हिंसा तक सीमित नहीं है। इसमें कई पहलू हैं। इसलिए हमें जांच की जरूरत लगती है।’’ पीठ ने जब अपना आदेश सुनाया तो नवलखा के वकील युग चौधरी ने उच्च न्यायालय द्वारा नवलखा को गिरफ्तारी से दी गयी अंतरिम जमानत को बढाने की मांग की।
अदालत ने इस पर सहमति जतायी और तीन सप्ताह के लिए नवलखा को गिरफ्तारी से संरक्षण प्रदान किया ताकि वह उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ अपील में उच्चतम न्यायालय का रुख कर सकें। नवलखा और अन्य आरोपियों के विरुद्ध गैर कानूनी गतिविधि रोकथाम कानून (यूएपीए) और भारतीय दंड संहिता के विभिन्न प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया गया था।
नवलखा के वकील युग चौधरी ने दलील दी कि उनके मुवक्किल एक लेखक और शांति के लिए काम करने कार्यकर्ता हैं। वह संघर्षरत क्षेत्रों के अच्छे जानकार हैं। चौधरी ने कहा, ‘‘पूर्व में नक्सलियों ने जब छह पुलिसकर्मियों को अगवा कर लिया था तो भारत सरकार ने उन्हें मध्यस्थ नियुक्त किया था। वह नक्सलियों से संपर्क में थे, लेकिन केवल अपने किताब और तथ्यान्वेषी शोध के लिए।
इस तरह के संपर्क के लिए यूएपीए के तहत कैसे मामला दर्ज किया जा सकता है।’’ उन्होंने दलील दी,‘‘नवलखा ने हाशिये पर रहने वालों के लिए लोकतंत्र को संभव बनाया। ऐसे व्यक्ति का सममान होना चाहिए। लेकिन सरकार देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने जैसे आरोपों के साथ उन्हें सता रही है। ’’ मामले में नवलखा के अलावा चार अन्य- वरवर राव, अरूण फरेरा, वर्नन गोंजाल्विस और सुधा भारद्वाज आरोपी हैं।