मोदी सरकार में रोज़गार के आंकड़ों पर किसका दावा सही है?

By विकास कुमार | Published: April 21, 2019 02:25 PM2019-04-21T14:25:13+5:302019-04-21T14:29:24+5:30

बैंगलोर स्थित अज़ीम प्रेम जी यूनिवर्सिटी द्वारा हाल ही में एक रिपोर्ट पेश किया गया है जिसमें बताया गया कि नोटबंदी के बाद 50 लाख लोगों की नौकरी चली गई.

modi government jobs crisis was a reality but now it has been tackled by economy | मोदी सरकार में रोज़गार के आंकड़ों पर किसका दावा सही है?

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Highlightsएक आंकड़ा कर्मचारी भविष्य निधि संगठन(EPFO) का भी है जिसमें कहा गया है कि पिछले 16 महीने में 70 लाख लोगों को रोज़गार मिला है. NSSO की एक रिपोर्ट जो बिज़नेस स्टैण्डर्ड अखबार में छपी जिसमें कहा गया कि बीते 45 वर्ष में बेरोज़गारी दर सबसे ज्यादा है.

पिछले 5 वर्षों में मोदी सरकार तमाम मोर्चों पर अपने सरकार की उपलब्धियां गिनाती है लेकिन बात जैसे ही रोज़गार की होती है तो पार्टी के प्रवक्ता और मंत्री सहित खुद प्रधानमंत्री भी सतर्क हो जाते हैं.

दरअसल 2014 के चुनावी भाषणों में नरेन्द्र मोदी ने हर साल 2 करोड़ रोज़गार देने का वादा किया था लेकिन बात अगर इस दौरान आये आंकड़ों की करें तो सरकार के वादे और दावे कहीं नहीं ठहरते. लेकिन कई संस्थानों के अलग-अलग आंकड़ों के कारण भी एक भ्रम की स्थिति बनती हुई दिख रही है. 

सभी आंकड़ों में एक परिदृश्य साफ उभर कर सामने आती है जिसमें नोटबंदी विलन के रूप में खड़ा दिखता है. मोदी सरकार में बेरोज़गारी की मार और नोटबंदी का होना एक दूसरे के पूरक के रूप में दिखते हैं.

रोज़गार के आंकड़ों पर डेटा देने वाली संस्था CMIE के मुताबिक, 2017-18 में देश में 1 करोड़ 10 लाख लोगों को अपनी नौकरी से हांथ धोना पड़ा. और इसी संस्था की एक और रिपोर्ट के मुताबिक, नोटबंदी के तुरंत बाद 15 लाख लोगों को अपनी नौकरी गवानी पड़ी. 

इस रिपोर्ट को सही साबित करती हुई एक और रिपोर्ट हाल ही में आई. बैंगलोर स्थित अज़ीम प्रेम जी यूनिवर्सिटी द्वारा हाल ही में एक रिपोर्ट पेश किया गया है जिसमें बताया गया कि नोटबंदी के बाद 50 लाख लोगों की नौकरी नोटबंदी के बाद चली गई. हालांकि, इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि इस बात को प्रमाणित तरीके से नहीं कहा जा सकता कि नौकरियां जाने का कारण नोटबंदी ही था.

EPFO की रिपोर्ट 

एक आंकड़ा भविष्य निधि कर्मचारी संगठन(EPFO) का भी है जिसमें कहा गया है कि पिछले 16 महीने में 70 लाख लोगों को रोज़गार मिला है. 

मोदी सरकार अपनी मुद्रा योजना के जरिये बड़े पैमाने पर रोज़गार पैदा होने का दावा करती है. इस योजना के तहत 15 करोड़ 50 लाख लोगों को लोन दिया गया है. हाल ही में आई इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, सरकार ने मुद्रा योजना से रोज़गार पैदा होने को लेकर जो सर्वे श्रम मंत्रालय द्वारा करवाया था वह रिपोर्ट जानबूझकर दबा लिया गया. क्योंकि आंकड़ें सरकार के दावों के अनुरूप नहीं थे. 

NSSO की रिपोर्ट 

NSSO की एक रिपोर्ट जो बिज़नेस स्टैण्डर्ड अखबार में छपी जिसमें कहा गया कि बीते 45 वर्ष में बेरोज़गारी दर सबसे ज्यादा है. सरकार ने इस आंकड़ों को ख़ारिज कर दिया था. कर्मचारी भविष्य निधि संगठन के मुताबिक जनवरी 2019 में 8 लाख 94 हज़ार लोगों को नौकरी मिली तो फरवरी में 8 लाख 61 हज़ार लोग रोज़गार तंत्र से जुड़े. पिछले वित्त वर्ष फरवरी में यह आंकड़ा 2 लाख 61 हज़ार था. 

नोटबंदी के बाद इनफॉर्मल सेक्टर पर सबसे ज्यादा असर पड़ा था जिससे रोज़गार के आंकड़ों में अप्रत्याशित रूप से कमी देखने को मिली थी लेकिन अब जब अर्थव्यवस्था धीरे-धीरे पटरी पर आ रही है और नोटबंदी का असर धूमिल हो रहा है तो रोज़गार के अवसर एक बार फिर पैदा होने लगे हैं.

Web Title: modi government jobs crisis was a reality but now it has been tackled by economy

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