विश्व पर्यावरण दिवस 2020: लॉकडाउन ने कर दिखाया, पर्यावरण में कई बड़े बदलाव, इंसान से 'गंगा निर्मल' नहीं
By अजीत कुमार सिंह | Published: June 4, 2020 06:40 PM2020-06-04T18:40:39+5:302020-06-04T18:40:39+5:30
2020 में विश्व पर्यावरण दिवस की थीम जैव विविधता है - एक ऐसी चिंता, जो तत्काल और अस्तित्व दोनों के लिए महत्वपूर्ण है. हाल ही में ब्राजील, संयुक्त राज्य अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में जंगलों में लगी आग, टिड्डी दल के हमले से लेकर अब कोरोना महामारी. इसे देख कर तो यही लगता है कि प्रकृति हमें संदेश भेज रही है.
नई दिल्लीः दुनिया के लिए चुनौती बनी कोविड 19 महामारी, आखिर किसकी उपज हैं. क्या इसे इंसान ने पैदा किया है या ये प्राकृतिक आपदा है. इस सवाल का जवाब इतना आसान नहीं है लेकिन इसने इंसानों को कई और बातों पर सोचने के लिए मजबूर ज़रूर कर दिया है.
कोरोना माहामारी फैलने के बाद दुनिया के सामने इसे रोकने के लिए सबसे पहला उपाय जो नज़र आया वो लॉकडाउन था. लॉकडाउन को पूरी दुनिया ने अपनाया, जिसके लगभग दो महीने से भी ज्यादा वक्त तक लोग घरों में कैद हैं, दुकानें, फैक्ट्रियां कारोबार बंद कर रहे. बीते दो महीने में इस लॉकडाउन की मदद से कोरोना वायरस महामारी को फैलने से रोकने के अलावा हमें क्या हासिल हुआ हैं. ये एक सवाल है जिस पर विश्व पर्यावरण दिवस के मौके विचार करने का एक बेहतरीन मौका है.
1974 में इसकी शुरुआत के बाद से, विश्व पर्यावरण दिवस, जागरूकता बढ़ाने, समुद्री प्रदूषण और ग्लोबल वार्मिंग से लेकर सस्टेनेबल उपभोग और वन्यजीव अपराध जैसे मुद्दों पर कार्रवाई करने के लिए एक वैश्विक मंच के रूप में विकसित हुआ है. बीते साल 2019 में इसकी थीम वायु प्रदूषण थी, जो हर साल लगभग 70 लाख लोगों की अकाल मृत्यु का कारण बनता है.
2020 में विश्व पर्यावरण दिवस की थीम जैव विविधता है - एक ऐसी चिंता, जो तत्काल और अस्तित्व दोनों के लिए महत्वपूर्ण है. हाल ही में ब्राजील, संयुक्त राज्य अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में जंगलों में लगी आग, टिड्डी दल के हमले से लेकर अब कोरोना महामारी. इसे देख कर तो यही लगता है कि प्रकृति हमें संदेश भेज रही है.
लॉकडाउन से पहले हांफती देश की राजधानी
कोरोना वायरस के फैलने से पहले हमने दिल्ली सहित देश के कई हिस्सों में स्मॉग देखा. इस स्मॉग की वजह से हमारा सांस लेना तक मुश्किल हो गया था. इंसानी गतिविधियों की वजह से हवा, पानी और मिट्टी को हुए नुकसान की वजह से पर्यावरण को तेज़ी से नुकसान पहुंचा है लेकिन लॉकडाउन ने थोड़े ही वक्त के लिए ही सही इसकी रफ्तार कम कर दी है.
लॉकडाउन की वजह से एयर क्वालिटी पर क्या असर पड़ा
जब से लॉकडाउन लागू हुआ, इंसानी गतिविधियां थम सी गईं. सड़कें खाली थी, ट्रेनें बंद थीं और हवाई जहाज भी नहीं उड़े. इतना ही नहीं सभी कंपनियां-फैक्ट्रियां तक बंद थी. इसकी वजह से भारत के कई शहरों में वायु प्रदूषण के स्तर में 30-60 प्रतिशत की कमी आई है. खासतौर पर ऑफिस के समय के दौरान प्रदूषण में काफी गिरावट देखने को मिली. स्मॉग से जूझती दिल्ली की ही बात करें तो 25 मार्च को लागू हुए लॉकडाउन के शुरूआती दो हफ्तों के दौरान पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) 2.5 और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (एनओ 2) का स्तर काफी गिर गया था. दिल्ली में बीते दो सालों 2018 और 2019 में पीएम 2.5 का लेवल 300 के पार जा चुका था जो कि लॉकडाउन के बाद 100 तक आ गया.
लॉकडाउन में पानी की गुणवत्ता
लॉकडाउन के दौरान फैक्ट्रियां बंद थी जिससे निकलने वाला गंदा पानी नदियों में नहीं जा रहा है. राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के अनुसार कोरोना वायरस के मद्देनजर लागू देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान गंगा नदी भी पहले के मुकाबले अधिक 'निर्मल' हो गयी है. गंगा के पानी में घुलनशील ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ी है. मिशन की माने तो गंगा नदी के जल में कई जगहों पर जैविक ऑक्सीजन मांग (बीओडी) का लेवल पहले कम हुआ है. इसका मतलब है कि गंगा के पानी की क्वलिटी पहले से बहतर हुई हैं. गंगा मिशन के अनुसार जल में घुलनशील ऑक्सीजन का स्तर 5 मिलीग्राम / लीटर से अधिक होना चाहिए और बीओडी का स्तर 3 मिलीग्राम / लीटर से कम होना चाहिए. इन दोनों मानकों पर गंगा नदी के जल की गुणवत्ता पहले से बेहतर हुई है.
नहाने लायक हुई गंगा
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आंकड़ों के अनुसार, ज्यादातर निगरानी केद्रों में गंगा नदी का पानी नहाने लायक मिला है. सीपीसीबी के रियल टाइम डेटा के अनुसार, गंगा नदी के अलग प्वाइंट पर 36 मॉनिटरिंग यूनिट में करीब 27 प्वाइंट पर पानी की क्ववालिटी नहाने, वन्यजीव और मछली पालन के ठीक पाई गई.
क्या है यमुना का हाल
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) और दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण कमेटी (डीपीसीसी) के अनुसार लॉकडाउन के दौरान ताज़े पानी की उपलब्धता में वृद्धि और औद्योगिक कचरा नहीं होने के कारण यमुना के पानी की गुणवत्ता में काफी सुधार हुआ है. कमेटी ने कहा कि अप्रैल के दौरान वजीराबाद में ताज़े पानी की उपलब्धता में 5-6 गुना की बढ़ोतरी हुई है जिसके कारण नजफगढ़ और शाहदरा जैसे प्रमुख नालों से गंदे पानी के चलते होने वाले प्रदूषण में कमी आयी है. दिल्ली के आवासीय क्षेत्रों में स्थित 28 औद्योगिक क्लस्टर और उद्योगों से औद्योगिक कचरा भी लॉकडाउन के दौरान बंद रहा. आवासीय क्षेत्रों में 51,000 से अधिक उद्योग हैं. लॉकडाउन के दौरान पूजा सामग्री, ठोस कचरा नहीं डाले जाने, नहाने और कपड़े नहीं धोने के वजह से पानी की क्वालिटी सुधारी है.
पेड़ पौधों पर क्या रहा असर
लॉकडाउन में इंसान घर में थे और इससे हर तरह का प्रदूषण लगभग बंद था. इस निर्मल माहौल में पेड़-पौधों को अपनी गति से बढ़ने का मौका मिला. इंसानी दखल से दूर इन पौधों के हिस्से में पहले से ज्यादा ऑक्सीज़न थी. लोगों के घरों रहने के कराण बाहर कम कूड़ा था जिससे नदियों नालों में कम प्रदूषण गिरा.
क्या है ध्वनि प्रदूषण का हाल
लॉकडाउन के दौरान हवा-पानी की तरह ध्वनि प्रदूषण भी कम हुआ है. सीपीसीबी की रिपोर्ट के हिसाब से ध्वनि प्रदूषण में 10 डेसीबल तक की गिरावट देखने को मिली है. लॉकडाउन के दौरान ट्रैफिक बंद हो जाने की वजह से ही ये सुधार देखने को मिला.
लॉकडाउन में आदमी अंदर वन्यजीव बाहर
कोविड -19 लॉकडाउन के इस समय में, जहां हम इंसान घरों के अंदर बंद हैं, वन्यजीवों के इंसानी बस्तियों में भी घूमते देखे गये. अगर हम मछली पकड़ने की ही बात लें तो लॉकडाउन के दौरान मछलियों पकड़ने में गिरावट देखी गई. इसकी सीधा मतलब हैं कि मछलियों का बायोमास बढ़ गया जो ज्यादा मछलियां पकड़ने से कम हो रहा रहा था.
इसके अलावा, जानवरों को स्वतंत्र रूप से सड़कों, इंसानी बस्तियों में घूमते हुए देखा गया है, जहां पहले वो जाने की हिम्मत नहीं करते थे. समुद्री कछुओं ने अंडे देने के लिए उन जगहों पर लौटने का फैसला किया जहां लॉकडाउन से पहले जाने से वो बचते थे. लॉकडाइन की वजह से भले ही इन दो महीनों के दौरान हवा पानी पहले से बेहतर है लेकिन जैसे ही इंसान अपनी रफ्तार पकड़ेगा इन दो महीनों में हासिल इस 'निर्मल पर्यावरण' के गायब होने का खतरा तो बना ही रहेगा.