दुश्मन का सीना छलनी करने की बजाए अपनी जान क्यों ले रहे हैं देश के जांबाज जवान

By भाषा | Published: May 13, 2018 12:46 PM2018-05-13T12:46:21+5:302018-05-13T12:46:21+5:30

ऐसी कई घटनाएं हुईं जिनमें जवानों ने अपनी सर्विस रायफल या पिस्टल का इस्तेमाल दुश्मनों पर करने की बजाय खुद को खत्म करने में किया है।

Why Suicide incidents increasing in security personnels ITBP, CRPF, Police | दुश्मन का सीना छलनी करने की बजाए अपनी जान क्यों ले रहे हैं देश के जांबाज जवान

दुश्मन का सीना छलनी करने की बजाए अपनी जान क्यों ले रहे हैं देश के जांबाज जवान

रायपुर, 13 मई: नक्सल प्रभावित छत्तीसगढ़ में तैनात सुरक्षा बल के जवान नक्सलियों के साथ साथ मानसिक तनाव का भी सामना कर रहे हैं और चिंता की बात यह है देश के लिए जान की बाजी लगाने को तैयार ये जवान हालात की दुश्वारियों से इस कदर परेशान हो जाते हैं कि अपना ही अंत कर लेते हैं। पिछले साल राज्य में 36 जवानों ने आत्महत्या की। छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले में तैनात केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के सहायक उप निरीक्षक पुष्पेंद्र बहादुर सिंह (50 वर्ष) ने पिछले महीने अपनी सर्विस रिवाल्वर से खुद को गोली मार ली। मध्यप्रदेश के कटनी के निवासी सिंह को अस्पताल ले जाया गया जहां चिकित्सकों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। सिंह के आत्महत्या के कारणों की जांच की जा रही है। 

सिंह की आत्महत्या के अगले ही दिन नक्सल प्रभावित राजनांदगांव जिले में भारत तिब्बत सीमा पुलिस के जवान ने अपनी सर्विस रायफल से अपनी जान ले ली। आईटीबीपी के 44 वीं वाहिनी के 31 वर्षीय जवान गगन सिंह की आत्महत्या के मामले की भी जांच की जा रही है। कांकेर जिले में पिछले वर्ष नवंबर में सीमा सुरक्षा बल के जवान पवार प्रसाद दिनकर ने अपनी सर्विस रायफल से अपने पेट में गोली मारकर जान दे दी थी।

छत्तीसगढ़ में ऐसी कई घटनाएं हुईं जिनमें जवानों ने अपनी सर्विस रायफल या पिस्टल का इस्तेमाल दुश्मनों पर करने की बजाय खुद को खत्म करने में किया है। राज्य के पुलिस विभाग से मिली जानकारी के मुताबिक वर्ष 2007 से अक्टूबर वर्ष 2017 तक की स्थिति के अनुसार, सुरक्षा बलों के 115 जवानों ने आत्महत्या की। इनमें राज्य पुलिस के 76 तथा अर्धसैनिक बलों के 39 जवान शामिल हैं। 

इन आंकड़ों के मुताबिक व्यक्तिगत और पारिवारिक कारणों से 58 सुरक्षा कर्मियों ने, बीमारी के कारण 12 सुरक्षा कर्मियों ने, काम से संबंधित: अवकाश नहीं मिलनेः जैसे कारणों से नौ सुरक्षा कर्मियों ने तथा अन्य कारणों से 15 सुरक्षा कर्मियों ने आत्महत्या की है। वहीं 21 सुरक्षा कर्मियों के आत्महत्या के कारणों की जांच की जा रही है। आंकड़ों के मुताबिक राज्य में वर्ष 2017 में सबसे अधिक 36 जवानों ने आत्महत्या की। वहीं वर्ष 2009 में 13 जवानों ने, 2016 में 12 जवानों ने तथा वर्ष 2011 में 11 जवानों ने आत्महत्या की घटना को अंजाम दिया है।

सुरक्षा बलों के जवानों के आत्महत्या की बढ़ती घटनाओं को लेकर नक्सल इंटेलीजेंस के पुलिस अधीक्षक डी रविशंकर कहते हैं कि जवानों की आत्महत्या के आंकड़े परेशान करने वाले हैं लेकिन इनके कारणों पर भी हमें विचार करना चाहिए। रविशंकर कहते हैं कि जवानों की आत्महत्या का मुख्य कारण तनाव ही है। राज्य में खासकर नक्सल मोर्चे में तैनात जवान घर से दूर रहते हैं। अर्धसैनिक बलों के जवान तो परिजनों से सैकड़ों किलोमीटर की दूरी पर हैं। इनकी पूरी सर्विस घर से दूरी और तबादला में ही तय होती है। ऐसे में इन्हें आम लोगों के मुकाबले ज्यादा तनाव का सामना करना पड़ता है। घर से दूर होने के कारण यह परिवार में भागीदारी नहीं कर पाते और अगर परिवार में किसी तरह की परेशानी हो तब समस्या गंभीर हो जाती है। 

पुलिस अधिकारी कहते हैं कि राज्य के संवेदनशीन क्षेत्रों में तैनात जवानों में तनाव का स्तर ज्यादा होता है। इन इलाकों में परिवार से बात करना भी मुश्किल होता है। फोन लग नहीं पाता है, महीने बीत जाते हैं घर वालों का हाल जाने। जवानों को जब परिजन के परेशानी में होने की खबर मिलती है तब यह छुट्टी लेकर घर जाना चाहते हैं लेकिन परिस्थितिवश छुटटी नहीं मिल पाती। कई मामलों में यह भी देखा गया है कि प्रभारी अधिकारी से अच्छे संबंध न होने पर भी जवान को परेशानी का सामना करना पड़ता है।

रविशंकर कहते हैं कि नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में तैनात जवानों को काम के तनाव तथा पारिवारिक परेशानी को साथ लेकर चलना होता है। तनाव जब हद से गुजर जाता है तब वह आत्महत्या जैसे कदम उठा लेते हैं। मानसिक तनाव समेत अन्य मनोरोगों पर पिछले कुछ दशक से काम रहे राज्य के प्रसिद्ध मनोचिकित्सक अरूणांशु परियल सुरक्षा कर्मियों की आत्महत्या को लेकर कहते हैं कि पुलिस विभाग कुछ ऐसे विभागों में से एक है जहां तनाव अधिक होता है। 

परियल कहते हैं कि नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में तैनात जवान जो लगातार नक्सल विरोधी अभियान में रहते हैं उन्हें ज्यादा परेशानी का सामना करना पड़ता है। यह परेशानी पारिवारिक समस्याओं की जानकारी मिलने पर और बढ़ जाती है और आत्महत्या का कारण बन जाती है। मनो चिकित्सक कहते हैं कि इन घटनाओं को रोकने के लिए विभागीय तौर पर भी पहल करनी होगी। अधिकारियों की जवाबदारी है कि वह अपने मातहत कर्मचारियों के साथ बेहतर तालमेल बनाएं और उनकी परेशानी पूछें। कर्मचारियों का समूह बने जिससे वह अपनी समस्याएं साझा कर सकें। 

कई बार आत्मसम्मान को ठेस पहुंचने के कारण भी लोग आत्महत्या करते हैं। पुलिस विभाग में अक्सर देखा गया है कि कर्मी खुद को ‘पावरफुल’ मानते हैं ऐसे में जब किसी कारण से उनके आत्मसम्मान को ठेस लगती है तो भी वह आत्महत्या जैसे कदम उठाते हैं। कुछ मामलों में साथी कर्मचारियों पर जानलेवा हमले की घटनाएं भी सामने आई हैं। वह कहते हैं कि सुरक्षा बलों के प्रशिक्षण के दौरान उन्हें तनाव से निपटने के तरीके बताना चाहिए तथा म्यूजिक थैरेपी, योग, ध्यान, प्राणायाम जैसे उपायों को भी अपनाना चाहिए। 

राज्य के विशेष पुलिस महानिदेशक :नक्सल अभियानः डीएम अवस्थी कहते हैं कि नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सुरक्षा बलों की आत्महत्या की घटनाओं को रोकने के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। इन क्षेत्रों में तैनात पुलिस तथा अर्धसैनिक बलों के अधिकारियों से कहा गया है कि वह कर्मचारियों की समस्याएं सुनें तथा उसे सुलझाने का प्रयास करें। वहीं कंपनी कमांडरों से कहा गया है कि वह जवानों से बातचीत कर उनकी परेशानी दूर करें। 

अवस्थी बताते हैं कि सुरक्षा बलों को तनाव से दूर रखने के लिए योग अभ्यास की जानकारी दी जा रही है तथा म्यूजिक थैरेपी के लिए राज्य के वरिष्ठ मनो चिकित्सकों से भी परामर्श लिया जा रहा है। जल्द ही जवानों को इस थैरेपी की जानकारी दी जाएगी। वरिष्ठ पुलिस अधिकारी कहते हैं कि सुरक्षा बल के जवान आत्महत्या जैसे कदम नहीं उठाएं, इसे लेकर विभाग गंभीर है और इसे रोकने के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं।

लोकमत न्यूज के लेटेस्ट यूट्यूब वीडियो और स्पेशल पैकेज के लिए यहाँ क्लिक कर के सब्सक्राइब करें

Web Title: Why Suicide incidents increasing in security personnels ITBP, CRPF, Police

भारत से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे