2014 में सोशल मीडिया पर बीजेपी बनती थी शेर, 2019 से पहले इस तरह बनती जा रही है भीगी बिल्ली

By पल्लवी कुमारी | Published: September 6, 2018 07:18 AM2018-09-06T07:18:26+5:302018-09-06T07:36:42+5:30

सोशल मीडिया जहां बीजेपी के लिए 2014 में मददगार साबित हुई। जिसका काफी हद तक श्रेय विपक्षी पार्टी कांग्रेस को भी जाता है। उस वक्त विपक्षी पार्टियां सोशल मीडिया पर उतनी एक्टिव नहीं थी।

why Narendra Modi government afraid about social media, facebook, twitter and whatsapp? | 2014 में सोशल मीडिया पर बीजेपी बनती थी शेर, 2019 से पहले इस तरह बनती जा रही है भीगी बिल्ली

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ट्विटर पर सबसे ज्यादा फॉलो किये जाने वाले भारतीय हैं। (ग्राफिक्स- संदीप)

नई दिल्ली, 06 सितंबर:  भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने जब  2014 के आम चुनाव में सबसे बड़ी भूमिका सोशल मीडिया रही थी। देश के चुनाव में सोशल मीडिया अब एक जनादेश तैयार करने का साधन हो गया है। सोशल मीडिया को बीजेपी ने 2019 के लिए भी एक बड़ा हथियार बनाने की तैयारी पूरी शुरू कर दी है। लेकिन पिछले कुछ महीनों से देखा जा रहा है कि बीजेपी सोशल मीडिया को कंट्रोल करने की भी कोशिश कर रही है। 

अब यहां सवाल यह उठता है कि आखिर बीजेपी को इतनी बैचनी क्यों है? आखिर बीजेपी सोशल मीडिया को अपने बस में क्यों करना चाहती है। अब इसका सीधा सा जवाब ये हैं कि सोशल मीडिया अब सिर्फ एक डीजिटल प्लेटफार्म नहीं रह गया है बल्कि एक ताकत बन गई है। ताकत जनादेश बनाने का। बीजेपी इस बात से परेशान है कि सोशल मीडिया पर मोदी सरकार और बीजेपी के बारे में जमकर दुष्प्रचार हो रहा है। इसका सामना कैसे करना है, अब बीजेपी उसकी रणनीति तैयार करने में जुट गई है। 

तो आइए बताते हैं कि आखिर बीजेपी 2019 के चुनाव के पहले सोशल मीडिया पर क्यों नकेल कसना चाह रही है और इसके लिए मोदी सरकार क्या रणनीति बना रही है।

मॉब लिंचिंग 

मॉब लिंचिंग पिछले कुछ महीनों से देश में अहम मुद्दा बना हुआ है। मॉब लिंचिंग को बढ़ावा देने में जो अहम कारण सामने आए, वो सोशल मीडिया और खासकर व्हाट्सप्प रहा। व्हाट्सप्प पर कई ऐसे मैसेज वायरल हुए, जिससे कई दंगों को भी बढ़ावा मिला। 

रोकथाम- इस पर रोक लगाने के लिए सरकार ने  21 अगस्त, 2018 को  व्हाट्सप्प  के सीइओ क्रिस डेनियल से मुलाकात में आईटी मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने चेतावनी दी थी। सीइओ क्रिस डेनियल से इस डेटा को मांगने की भी कोशिश की थी, जिसमें पता चला कि किसी फॉरवर्डेड मैसेज का ओरिजिन क्या है? लेकिन व्हाट्सप्प ने सरकार की इस बात से साफ इनकार दिया। उनका कहना था कि इससे हम अपने यूर्जस के नीजता का हनन करेंगे। कंपनी ने कहा कि ‘एंड-टू-एंड एनक्रिप्शन’ के चलते वो ऐसा नहीं कर सकती। 

नेताओं के बयान हो रहे हैं वायरल 

सोशल मीडिया जहां बीजेपी के लिए 2014 में मददगार साबित हुई। जिसका काफी हद तक श्रेय विपक्षी पार्टी कांग्रेस को भी जाता है। उस वक्त विपक्षी पार्टियां सोशल मीडिया पर उतनी एक्टिव नहीं थी। लेकिन 2018 के मौजूदा हालत को देखें तो विपक्षी पार्टियां भी सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव हो गई हैं। जिसकी वजह से बीजेपी नेताओं के कई बयान सोशल मीडिया पर वायरल होते हैं।  

रोकथाम- यही वजह है कि पीएम मोदी और अमित शाह ने हाल ही में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) सांसदों, विधायकों और कार्यकर्ताओं को विवादित बयान देने से बचने के लिए कहा है। पीएम मोदी ने सांसदों और विधायकों को फटकार लगाते हुए कहा कि वे सोशल मीडिया पर कोई भी विवादित पोस्ट करने से बचे। उन्होंने पार्टी नेताओं से कहा कि आपको तथ्यहीन और बेतुके बयानों के कारण पार्टी की छवि खराब होने के साथ आपकी भी छवि खराब होती है।

पीएम मोदी हो या अमित शाह उनका मानना है कि डिजिटल जमाने में सोशल मीडिया का अपना बहुत महत्व है। यही कारण है कि पिछले तीन महीनों में पार्टी अध्यक्ष अमित शाह का सोशल मीडिया पर ब्लॉगर्स और एक्टिविस्ट के साथ तीन बार बैठक की थी और उन्हें सोशल मीडिया का कैसे इस्तेमाल किया जाए, इसपर चर्चा की है। 

आखिर व्हाट्सप्प ही क्यों है सबसे बड़ा रोड़ा

सीएसडीएस (Centre for the Study of Developing Societies) के एक सर्वे के मुताबिक 2017 में शहरी भारत में  व्हाट्सप्प की पहुंच 22% थी। जो जुलाई 2018 तक 38% हो चुकी है। ग्रामीण इलाकों में तो ये स्पीड और भी फास्ट है। 2017 में रूरल इंडिया में 10% लोग व्हाट्सप्प इस्तेमाल करते थे लेकिन जुलाई 2018 तक ये संख्या दोगुनी हो चुकी थी। यही वजह है कि बीजेपी ये कतई नहीं चाहती कि व्हाट्सप्प पर उनके खिलाफ गलत मौहोल बने। 

फेक न्यूज पर लगाम क्यों?

गृह सचिव राजीव गाबा की अध्यक्षता वाली अंतर-मंत्रालयी समिति ने हाह ही में अपनी एक रिपोर्ट गृहमंत्री राजनाथ सिंह को सौंपी है। जिसमें समिति में शामिल मंत्रिमंडल के अन्य सदस्यों ने अलग-अलग राज्यों में सामने आए लिंचिंग के मामलों में जांच के दौरान इंटरनेट प्लैटफॉर्म्स की भूमिका को महत्वपूर्ण पाया था। समिति से जुड़े सूत्रों के मुताबिक, सदस्य उन सभी आवश्यक विकल्पों पर विचार कर रहे थे जिन्हें सोशल मीडिया पर फेक न्यूज फैलने से रोकने के लिए इस्तेमाल किया जा सके। जिससे सोशल मीडिया व इंटरनेट प्लैटफॉर्म्स की मदद से ऐसी अफवाहें व फेक न्यूज फैलकर सामाजिक तनाव की स्थिति पैदा न कर सकें। नरेन्द्र मोदी सरकार ने हालांकि इसके लिए भी कोई ठोस एक्शन नहीं लिया है लेकिन इसके लिए केन्द्र काम कर रही है।  

मकसद सिर्फ 2019

खैर कंधा भले ही फेक न्यूज, अफवाह, मॉब लिंचिंग, दंगा भड़कना जैसी चीज हो लेकिन इसका सीधा एक ही मकसद है सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर शिकंजा कसना। ताकि बीजेपी 2019 में इसे अपने हिसाब से इस्तेमाल कर सके। 

Web Title: why Narendra Modi government afraid about social media, facebook, twitter and whatsapp?

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