आडवाणी प्रधानमंत्री बने होते तो राम मंदिर बन गया होता!
By प्रदीप द्विवेदी | Published: December 7, 2018 05:18 AM2018-12-07T05:18:03+5:302018-12-07T05:18:03+5:30
आज से छब्बीस साल पहले अयोध्या में जो भी हुआ वो लाखों की संख्या में मौजूद कारसेवकों के हाथों हुआ। इस दौरान मंच पर लालकृष्ण आडवाणी के अलावा मुरली मनोहर जोशी, अशोक सिंघल, गिरिराज किशोर, विष्णु हरि डालमिया, विनय कटियार, उमा भारती, साध्वी ऋतम्भरा आदि मौजूद थे।
भाजपा आज जिस ताकत के साथ हिन्दुस्तान में खड़ी है, उसे सबसे बड़ी पार्टी बनाने का श्रेय भाजपा के लौहपुरुष लालकृष्ण आडवाणी को है, जिनके दृढ़ इरादों के चलते राम मंदिर आंदोलन बुलंदियों पर पहुंचा, लेकिन 2014 के आम चुनाव के बाद आडवाणी प्रधानमंत्री नहीं बन पाए और भाजपा की सरकार आने के बाद राम मंदिर बनेगा, रामभक्तों का यह सपना, सपना ही रह गया।
रामभक्तों को आज भी वह आंदोलन याद है और उन्हें इस बात का अफसोस है कि आडवाणी प्रधानमंत्री नहीं बने। यदि आडवाणी प्रधानमंत्री बने होते तो राम मंदिर बन गया होता!
भाजपा की आज जो भी पहचान है, वह राम मंदिर आंदोलन की ही देन है। हालांकि, इसमें भाजपा के कई बड़े नेताओं की उल्लेखनीय भूमिका रही, लेकिन इनमें से पहली पंक्ति के ज्यादातर नेता सियासत की मुख्यधारा से दूर कर दिए गए हैं।
आज से छब्बीस साल पहले अयोध्या में जो भी हुआ वो लाखों की संख्या में मौजूद कारसेवकों के हाथों हुआ। इस दौरान मंच पर लालकृष्ण आडवाणी के अलावा मुरली मनोहर जोशी, अशोक सिंघल, गिरिराज किशोर, विष्णु हरि डालमिया, विनय कटियार, उमा भारती, साध्वी ऋतम्भरा आदि मौजूद थे।
इस आंदोलन में लालकृष्ण आडवाणी के साथ-साथ कल्याण सिंह की भी महत्वपूर्ण भूमिका थी, जिन्होंने राम मंदिर के लिए अपनी सत्ता त्याग दी। सिंह भाजपा के एकमात्र नेता है, जिन्होंने 6 दिसंबर 1992 में अयोध्या में ढांचा ढहाने के बाद राम मंदिर के लिए सत्ता ही नहीं गंवाई, वरन इस मामले में सजा भी पाई।
कल्याण सिंह सरकार का करीब एक साल हुआ था कि 6 दिसंबर, 1992 को अयोध्या में कारसेवकों ने विवादित ढांचा ढहा दिया, जबकि उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में शपथ पत्र देकर कहा था कि यूपी के सीएम के रूप में, वे विवादित ढांच को कोई नुकसान नहीं होने देंगे। बावजूद इसके, 6 दिसंबर 1992 को विवादित ढांचा ढहा दिया गया।
इसके लिए कल्याण सिंह को जिम्मेदार माना गया। उन्होंने इसकी नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए 6 दिसंबर, 1992 को ही मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया। राम मंदिर निर्माण को लेकर रामभक्तों को पीएम मोदी सरकार का नजरिया समझ में नहीं आ रहा है, इसीलिए विस चुनाव में यह भी एक प्रमुख मुद्दा बन गया है!