जब कारगिल युद्ध के बाद पहली बार मिले वाजपेयी और मुर्शरफ, मनमोहन सिंह नहीं थे मुलाकात के पक्ष में

By भाषा | Published: December 25, 2018 04:29 PM2018-12-25T16:29:20+5:302018-12-25T16:29:20+5:30

वाजपेयी के प्रधानमंत्रित्व काल में उनके मीडिया सलाहकार रहे अशोक कुमार टंडन ने अपने लेख में कहा है, ‘‘अटलजी जब दूसरी बार प्रधानमंत्री बने तब उनके कार्यालय में काम करने का अवसर मिला । अटलजी से परिचय पुराना था लेकिन निकट से काम करने का यह पहला अवसर था।’’

when Atal Bihari Vajpayee and parvej Musharraf first time met after kargil war | जब कारगिल युद्ध के बाद पहली बार मिले वाजपेयी और मुर्शरफ, मनमोहन सिंह नहीं थे मुलाकात के पक्ष में

जब कारगिल युद्ध के बाद पहली बार मिले वाजपेयी और मुर्शरफ, मनमोहन सिंह नहीं थे मुलाकात के पक्ष में

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के व्यक्तित्व, उनकी कार्यशैली के कायल केवल उनकी पार्टी के लोग, करीबी सहयोगी ही नहीं थे बल्कि विपक्षी दलों के नेताओं के साथ साथ विदेशी राष्ट्राध्यक्ष भी उनसे अभिभूत थे । यह कहना है वाजपेयी के तहत प्रधानमंत्री कार्यालय में विशेष कार्यस्थ अधिकारी रहे राजकुमार शर्मा का जिन्होंने ‘‘साहित्य अमृत’’ पत्रिका के अटल स्मृति अंक में पूर्व पाकिस्तानी राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ से जुड़ी घटना का उल्लेख किया है। मुशर्रफ वाजपेयी से बहुत प्रभावित थे ।

शर्मा ने अपने लेख में स्मृतियों को ताजा करते हुए कहा है कि अप्रैल 2005 में पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति मुर्शरफ भारत आए थे । वे वाजपेयी से मिलना चाहते थे परंतु तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार टालमटोल कर रही थी ।

उन्होंने लिखा कि कशमकश जारी थी लेकिन मुशर्रफ ने वाजपेयी से मिलने की ठान ली थी । अंतत: 18 अप्रैल 2005 को यह मुलाकात हुई । मुशर्रफ ने स्वदेश वापसी के लिये पालम हवाई अड्डा जाते समय अपना काफिला 6, कृष्ण मेनन मार्ग पर रूकवाया । 

शर्मा ने लिखा है, ‘‘मुशर्रफ अटल बिहारी वाजपेयी से मिले और कहा, ‘‘सर, यदि आप प्रधानमंत्री होते तो आज नजारा कुछ और होता । ’’ 

उन्होंने आगे लिखा कि अटलजी ने अपनी चिर परिचित शैली और मुस्कान से साथ मुर्शरफ को शुभकामनाएं दीं । 

शर्मा ने लिखा कि वाजपेयी को व्यक्तियों की खासी परख थी । अनेक नेताओं के बारे में उनकी टिप्पणियां सटीक बैठती थीं । वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को लेकर धारणा चाहे जो हो, मगर वाजपेयी उनके काम करने की शैली, उनकी मेहनत, शासन में नए नए प्रयोग की तारीफ करते थे । वाजपेयी ने उनके बारे में भी कभी कोई हल्की बात नहीं की जिनसे उनके मतभेद रहे । 

वाजपेयी के प्रधानमंत्रित्व काल में उनके मीडिया सलाहकार रहे अशोक कुमार टंडन ने अपने लेख में कहा है, ‘‘अटलजी जब दूसरी बार प्रधानमंत्री बने तब उनके कार्यालय में काम करने का अवसर मिला । अटलजी से परिचय पुराना था लेकिन निकट से काम करने का यह पहला अवसर था।’’ 

उन्होंने कहा कि आपसी बातचीत में नपे-तुले अंदाज में कम से कम शब्दों में किंतु प्रभावशाली शैली में अपना मंतव्य स्पष्ट करना अटलजी के व्यक्तित्व की अनूठी पहचान थी । अपने सहयोगी हों, या बैठक में भाग ले रहे अधिकारी या अतिथि।।। सभी को अपनी बात कहने का पूरा अवसर देना उनके स्वभाव का हिस्सा था । अधिकतर विपक्षी नेताओं के साथ उनके व्यक्तिगत मधुर संबंध थे । 

टंडन ने कहा कि पड़ोसी देशों के साथ संबंध मजबूत बनाने की पहल में उनके इन शब्दों को कौन भूल सकता है कि हम दोस्त बदल सकते हैं, लेकिन पड़ोसी नहीं। 

आईएएस अधिकारी एवं वाजपेयी के तहत काम करने वाले शक्ति सिन्हा ने अपने लेख में कहा कि यह चर्चा इस कहानी के बिना पूरी नहीं हो सकती कि वाजपेयी के व्यक्तित्व का भारत के लोकतांत्रिक और सामाजिक ढांचे को शक्तिशाली बनाने में कितना प्रभाव है । 

उन्होंने लिखा, ‘‘देवेगौड़ा सरकार के कार्यकाल के दौरान, तत्कालीन रक्षा मंत्री मुलायम सिंह यादव ने सुखोई करार सफलतापूर्वक होने पर जब लोकसभा में बयान दिया तब वाजपेयी ने खड़े हो कर करार की प्रशंसा कर उदाहरण पेश किया। ’’ 

सिन्हा ने लिखा कि मंत्री समेत अन्य सभी लोगों को आश्चर्य में डालने वाले उनके तरीके ने स्पष्ट रूप से दिखाया कि सच्चे लोकतंत्र में कुछ चीजें दलगत राजनीति से ऊपर होती हैं ।

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