जब आडवाणी ने बताया अटलजी की किस खूबी से हो गया था कॉम्पलेक्स, 'लौहपुरुष' पब्लिक में हो गए थे भावुक
By भारती द्विवेदी | Published: August 16, 2018 01:06 PM2018-08-16T13:06:56+5:302018-08-16T14:56:06+5:30
डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी, दीनदयाल उपाध्याय इनदोनों के बाद अगर किसी ने पार्टी को आज के स्थान पर पहुंचाने में, जनता के मन में ये छाप छोड़ने में कि हमें जो कहते हैं वो करके दिखाते हैं, वो अगर कोई है तो वो हमारे अटल जी हैं।
अटल बिहारी वाजपेयी। एक ऐसा नाम जिन्हें क्या पार्टी, क्या देश की जनता, विरोधी तक प्यार और सम्मान देते हैं। भारतीय राजनीति में हर दूसरे दिन नेता एक-दूसरे के दोस्त और दुश्मन बनते रहते हैं लेकिन अटल-आडवाणी की जोड़ी भारतीय राजनीति का वो नाम है, जिनकी दोस्ती मिसाल मानी जाती है। साल 2011 में भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष विनय सहस्त्रबुद्धे ने 'समग्र अटल जी' नाम से एक कार्यक्रम का आयोजन करवाया था। उस कार्यक्रम में बीजेपी के तमाम बड़े नेताओं ने भाग लिया था। उस समय देश के राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम भी वहां मौजूद थे।
उस कार्यक्रम में हर नेता ने अटल बिहारी वाजपेयी को लेकर अपने विचार व्यक्त किए थे। वहां लालकृष्ण आडवाणी भी मौजूद थे। अटल बिहारी वाजपेयी को लेकर वो क्या सोचते हैं, उनकी अनुपस्थिति आडवाणी को कितनी खलती थी और उन दोनों की दोस्ती के क्या मायने थे, उसे लेकर उनका दर्द झलक उठा था।
लालकृष्ण आडवाणी
लालकृष्ण आडवाणी और अटल बिहारी वाजपेयी ये दोनों ही नाम एक-दूसरे के पूरक हैं। राजनीति में इनदोनों की जोड़ी एक मिसाल है। 'समग्र अटल जी' कार्यक्रम में पहुंचे आडवाणी ने अटल बिहारी के लिए कहा था- 'डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी, दीनदयाल उपाध्याय इनदोनों के बाद अगर किसी ने पार्टी को आज के स्थान पर पहुंचाने में, जनता के मन में ये छाप छोड़ने में कि हमें जो कहते हैं वो करके दिखाते हैं, वो अगर कोई है तो वो हमारे अटल जी हैं। मैं 47 में कराची छोड़कर भारत आया। अटल जी मेरा परिचय 1948 में हुआ था। तब मैं 21 साल का था और अटल जी शायद 24 साल के होंगे। तब से लेकर आज तक जिस प्रकार का साथ रहा मैं अपना परम सौभाग्य मनाता हूं। मुझे ये बात बेहद खटकती है कि कार्यक्रम में मैं आया हूं लेकिन अटल जी मौजूद नहीं हैं। कुछ समय पहले मैंने अपनी किताब का विमोचन किया था, उस समय भी अटलजी की अनुपस्थिति बहुत खटकी थी।'
आडवाणी आगे कहते हैं- 'उनकी कविताओं से देशभक्ति टपकती है, प्रमाणिकता दिखती है। जो भी उऩको सुनता है, उनके संपर्क में आता है वो प्रेरित होता है। संपर्क में आने के बाद जब हम राजस्थान दौरा किया और उस दौरान जब मैंने पहली बार उनका व्याख्यन सुना था तो आप सबकी तरह मैं भी प्रेरित हुआ। लेकिन मेरे मन में एक कॉम्पलेक्स पैदा हो गया। मुझे लगा कि सार्वजनिक जीवन में राजनीति में बोलने की क्षमता ऐसी होनी जरूरी है तो मैं राजनीति के उपयुक्त बिल्कुल नहीं हूं।'