विशाखापट्टनम गैस लीक: 36 साल पहले भी हुआ था एक ऐसा ही हादसा, आज तक नहीं भरा जख्म
By निखिल वर्मा | Published: May 7, 2020 11:19 AM2020-05-07T11:19:44+5:302020-05-07T11:19:44+5:30
विशाखापट्टनम स्थित रासायनिक संयंत्र में गैस हादसे ने यूनियन कार्बाइड गैस लीक की याद दिला दी है. 36 साल पहले यूनियन कार्बाइड प्लांट से जहरीली गैस मिथाइल आइसोसाइनेट का रिसाव हुआ था, जिसके चलते हजारों लोगों की असमय ही मौत हो गई थी.
आंध्र प्रदेश के विशाखापट्टनम में गुरुवार (7 मई) तड़के एक रासायनिक संयंत्र से गैस का रिसाव हो जाने के कारण एक बच्चे समेत आठ लोगों की मौत हो गई और करीब 200 लोग इस हादसे से बीमार हुए हैं। सैकड़ों लोगों को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा है। इस इलाके के लोगों ने आंखों में जलन, सांस लेने में तकलीफ, जी मचलाना और शरीर पर लाल चकत्ते पड़ने की शिकायत की। टीवी चैनलों पर प्रसारित फुटेजो में लोग सड़कों पर बेहोश पड़े दिख रहे हैं। रिपोर्टों में बताया गया है कि गैस रिसाव को काबू कर लिया गया है।
विशाखापट्टनम की घटना ने भोपाल गैस त्रासदी की याद दिला दी। 36 साल पहले 2 दिसंबर 1984 की रात मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल स्थित कीटनाशक बनाने वाली यूनियन कार्बाइड प्लांट से मिथाइल आइसोसाइनेट (एमआईसी) गैस का रिसाव हुआ जिसकी वजह से कुछ ही घंटों के भीतर हजारों लोग मारे गए थे।
भोपाल गैस त्रासदी में हजारों बेगुनाह दम घुटने और हार्ट अटैक से मारे गये। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक 3787 लोगों को इस दर्दनाक त्रासदी में जान गंवानी पड़ी। इसके अलावा आज भी कई लोगों को सांस की बीमारी, अंधेपन और कैंसर की समस्या सामने आ रही है। भोपाल गैस त्रासदी के निशान आज भी देखे जा सकते हैं। भोपाल गैस पीड़ितों के पुनर्वास के लिए काम करने वाले भोपाल ग्रुप फॉर इन्फॉर्मेशन एंड एक्शन (बीजीआईए) ने दावा किया कि प्रदेश की राजधानी में कोरोना वायरस से हुई कुल 17 मौतों में से 15 लोग गैस पीड़ित थे।
क्या हुआ था भोपाल में उस रात
भोपाल के यूनियन कार्बाइड के कारखाने के 610 नंबर के टैंक में खतरनाक मिथाइल आइसोसाइनाइट रसायन रखा था। किसी चूक के चलते टैंक में पानी भर गया। इससे हुई रासायनिक प्रक्रिया की वजह से टैंक में दबाव पैदा हो गया और तापमान 200 डिग्री तक पहुंच गया। इसी वजह से जोरदार धमाका हुआ और टैंक का सेफ्टी वाल्व उड़ गया। यूनियन कार्बाइड की फैक्टरी से करीब 40 टन गैस का रिसाव हुआ था।
सरकारी आंकड़ों के उलट कई एनजीओ का दावा है कि मौत का आंकड़ा 10 से 15 हजार के बीच था। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक गैस से करीब 5,58,125 लोग प्रभावित हुए थे। इनमें से करीब 4000 लोग ऐसे थे जो गैस के प्रभाव से परमानेंट डिसेबल हो गए थे, जबकि 38,478 को सांस से जुड़ी दिक्कतों का सामना करना पड़ा था।