विकास दुबे मुठभेड मामला: सुप्रीम कोर्ट ने न्यायमूर्ति  बीएस चौहान जांच आयोग के खिलाफ याचिका खारिज की

By भाषा | Published: August 20, 2020 05:45 AM2020-08-20T05:45:05+5:302020-08-20T05:45:05+5:30

पीठ ने कहा कि आयोग के अध्यक्ष और एक सदस्य उच्च संवैधानिक पदों पर रह चुके हैं और याचिकाकर्ता ने आरोप लगाते समय सिर्फ एक अखबार की रिपोर्ट को आधार बनाया है जो अस्वीकार्य है। 

Vikas Dubey encounter: SC rejects plea against Justice Chauhan Inquiry Commission | विकास दुबे मुठभेड मामला: सुप्रीम कोर्ट ने न्यायमूर्ति  बीएस चौहान जांच आयोग के खिलाफ याचिका खारिज की

फाइल फोटो

नई दिल्लीः उच्चतम न्यायालय ने गैंगस्टर विकास दुबे की मुठभेड़ में मौत और कानपुर में पुलिसकर्मियों की शहादत की घटनाओं की जांच के लिये शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति बलबीर सिंह चौहान की अध्यक्षता वाले तीन सदस्यीय जांच आयोग को भंग करने के लिये दायर याचिका बुधवार को खारिज कर दी। 

प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमणियन की तीन सदस्यीय पीठ ने वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से अधिवक्ता घनश्याम उपाध्याय की याचिका खारिज करने का फैसला सुनाया और कहा कि आयोग के सदस्यों पर दुराग्रह के आरोप सिर्फ अखबारों की खबरों के आधार लगाये गये हैं और इन्हें अस्वीकार ही किया जाना चाहिए। 

पीठ ने अपने फैसले में कहा, ‘‘जांच सार्वजनिक रूप से होगी और याचिकाकर्ता को पहले ही इसमें शामिल होने की छूट प्रदान की जा चुकी है। जांच की रिपोर्ट इस न्यायालय में लंबित याचिका में ही दाखिल करने का आदेश दिया गया हे। इसलिए, इस मामले में पर्याप्त सुरक्षा उपाय हैं जिसकी जांच की जायेगी। हम पाते हैं कि याचिकाकर्ता अनावश्यक आशंकाओं को उठा रहा है और बार-बार आवेदन दायर करने से वास्तव में जांच की प्रक्रिया प्रभावित हो रही है।’’ 

पीठ ने कहा, ‘‘इन आरोपों को लगाने का याचिकाकर्ता का सारा आधार एक लेख है, जो एक अखबार में प्रकाशित हुआ था। हमारी राय में कतिपय समाचार पत्र की खबर के आधार पर ऐसी दलील को स्वीकार करते समय न्यायालय को बहुत ही ज्यादा चौकस रहना होगा।’’ पीठ ने कहा कि शीर्ष अदालत अनेक फैसलों में बार-बार दोहराती रही है कि बगैर किसी अन्य सबूत के समाचार पत्रों की खबर का साक्ष्य के रूप में कोई महत्व नहीं है। 

न्यायालय ने कहा कि इसमें प्रतिपादित सिद्धांत के बाद अनेक जनहित याचिकायें समाचार पत्रों की खबरों के आधार पर आरोप लगाने के कारण अस्वीकार की जा चुकी हैं। पीठ ने कहा कि आयोग के अध्यक्ष और एक सदस्य उच्च संवैधानिक पदों पर रह चुके हैं और याचिकाकर्ता ने आरोप लगाते समय सिर्फ एक अखबार की रिपोर्ट को आधार बनाया है जो अस्वीकार्य है। 

याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया था कि न्यायमूर्ति डा चौहान के भाई उत्तर प्रदेश में विधायक हैं जबकि उनकी पुत्री का विवाह एक सांसद से हुआ है। पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता पेशे से वकील है जो मुंबई में वकालत करते हैं और उन्होंने जनहित याचिका दायर की है जबकि उत्तर प्रदेश में हुयी घटना का उनसे कोई संबंध नहीं है। 

याचिकाकर्ता ने शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीश डा बलबीर सिंह चौहान, उच्च न्यायाय के पूर्व न्यायाधीश शशिकांत अग्रवाल और उत्तर प्रदेश के सेवानिवृत्त पुलिस महानिदेशक के एल गुप्ता की सदस्यता वाले जांच आयोग का पुनर्गठन करने का अनुरोध न्यायालय से किया था।

 इस जांच आयोग को कानपुर के चौबेपुर थाने के अंतर्गत बिकरू गांव में तीन जुलाई को आधी रात के बाद विकास दुबे को गिरफ्तार करने गयी पुलिस की टुकड़ी पर घात लगाकर किये गये हमले में पुलिस उपाधीक्षक देवेन्द्र मिश्रा सहित आठ पुलिसकर्मियों के मारे जाने की घटना की जांच करनी है। इसके अलावा आयोग को 10 जुलाई को विकास दुबे की मुठभेड़ में मौत की घटना और इससे पहले अलग-अलग मुठभेड़ में दुबे के पांच साथियों के मारे जाने की घटना की जांच करनी है। 

Web Title: Vikas Dubey encounter: SC rejects plea against Justice Chauhan Inquiry Commission

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