विजय दर्डा का ब्लॉग: हर किसी का वैक्सीनेशन सरकार मुफ्त कराए

By विजय दर्डा | Published: April 26, 2021 10:47 AM2021-04-26T10:47:53+5:302021-04-26T10:52:23+5:30

भारत में कोरोना के मामले जिस तरह बढ़ रहे हैं, उसे रोकने में वैक्सीन से बड़ी मदद मिल सकती है. ऐसे जरूरत के समय में अलग-अलग रेट क्यों तय किए गए हैं.

Vijay Darda blog: Corona crisis everyone should be vaccinated by govt free of cost | विजय दर्डा का ब्लॉग: हर किसी का वैक्सीनेशन सरकार मुफ्त कराए

कोरोना की वैक्सीन और रेट का खेल (फाइल फोटो)

हमारे लोकमत कार्यालय में लगातार लोगों के फोन आ रहे हैं कि कृपया किसी अस्पताल में एक बेड की व्यवस्था कर दीजिए, कहीं से भी ऑक्सीजन दिला दीजिए. अमुक दवाई नहीं मिल रही है, दिला दीजिए..! हाहाकार की स्थिति है. मैं विचलित हूं कि कब हालात सुधरेंगे? 

वैक्सीन एक उम्मीद जगा रही है लेकिन यह बात समझ से बिल्कुल परे है कि जब कोरोना की वैक्सीन कोविशील्ड केंद्र सरकार डेढ़ सौ रुपए में खरीद रही है तो कोविशील्ड की कीमत राज्यों के लिए 400 रुपए और निजी अस्पतालों के लिए 600 रु. निर्धारित करने का कारण क्या है? जो कोवैक्सीन भारतीय है और मुफ्त मिल रही थी उसे भी अब राज्यों को 600 रु. और अस्पतालों को 1200 रु. में दिया जाएगा. 

जब निजी अस्पतालों को भी वैक्सीनेशन केंद्र बनाया गया था तब प्रधानमंत्री की ओर से घोषणा की गई थी कि डेढ़ सौ रुपए के टीके के लिए निजी अस्पताल अधिकतम सौ रुपए का सर्विस चार्ज लगाएंगे. इस तरह से  250 रु. में टीका लगेगा.

मैंने अपने इसी कॉलम में लिखा था कि वैक्सीनेशन की प्रक्रिया तेज करने के लिए सरकार को वैक्सीन खुले बाजार में उपलब्ध करा देनी चाहिए. उसके बाद अन्य लोगों ने भी मांग की. पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह, कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भी पत्र लिखा था. अंतत: सरकार ने यह बात मानी लेकिन कीमत पर जो कैपिंग थी उसे भी खुला कर दिया. मैंने तभी अपने संपादक से चर्चा में कहा था कि अब रेट्स में गड़बड़ी शुरू होगी और वही हुआ भी!

सबसे बड़ा सवाल कि सरकार ने कंपनियों को ऐसा करने की इजाजत कैसे दे दी? जब एक रेट तय हो गया तो उसमें बदलाव क्यों किया?

बहुत से राज्य क्या इस हालत में हैं कि वे 400 रुपए या 600 रुपए प्रति वैक्सीन की दर से हर व्यक्ति के लिए दो डोज खरीद सकें? महाराष्ट्र तो सर्वाधिक पीड़ित राज्य है और कोरोना से जंग में केंद्र सरकार का पूरा साथ मिलना ही चाहिए. 
आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि राज्यों से केंद्र को मिलने वाले टैक्स में से 38 प्रतिशत हिस्सा अकेले महाराष्ट्र देता है. ऐसे में ज्यादा न्याय की उम्मीद करना स्वाभाविक ही है. वैसे न्याय तो सभी राज्यों को मिलना चाहिए. इस देश के प्रत्येक व्यक्ति का अधिकार है कि उसे कोरोना का टीका मिले. 

किसी के पास यदि पैसा है और वह निजी केंद्र पर जाकर सशुल्क टीका लगवाता है तो वह अलग बात है, वर्ना केंद्र सरकार को अपने खर्च से सबका टीकाकरण कराना चाहिए. यदि पैसे की आवश्कता हो तो टैक्स भी लगाया जा सकता है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब वैक्सीन उत्सव मनाने की बात की तो सभी ओर आनंद का वातावरण छा गया था लेकिन दुर्भाग्य से कई जगह उस वक्त वैक्सीन ही नहीं थी! साफ लगता है कि प्रधानमंत्री को अधिकारियों ने सही जानकारी नहीं दी और गुमराह किया. 

अधिकारियों को चौकसी करनी चाहिए थी कि पूरे देश में वैक्सीन पहुंचे क्योंकि पीएम के मुंह से जो बात निकलती है वह देश की बात होती है. किसी पार्टी की बात नहीं होती. लोग जानना चाह रहे हैं कि यह उत्सव फेल क्यों हो गया? मेरा सुझाव है कि वैक्सीनेशन को गति देने के लिए सेवानिवृत्त हो चुके पैरामेडिकल स्टाफ, पढ़ाई कर रहे मेडिकल स्टूडेंट और नर्सो की मदद लेनी चाहिए. आपदा की इस घड़ी में वे सहर्ष आगे आएंगे. इस जंग में उद्योग जगत आगे आया है लेकिन उसे और आगे लाने की जरूरत है.

और हां, जितने लोग बीमारी से मर रहे हैं, उससे भी ज्यादा प्रबंधन में त्रुटि के कारण मर रहे हैं. इस हालात के लिए अदूरदर्शिता बड़ा कारण है.  सरकार में बैठे आला अफसरों और विशेषज्ञों को पता था कि कोरोना से जंग में वैक्सीन के अलावा कोई विकल्प नहीं है लेकिन वैक्सीन का प्रोडक्शन बढ़ाने के लिए तत्परता से कदम नहीं उठाए. 

अमेरिका और यूरोपीय यूनियन ने वैक्सीन पर रिसर्च कर रही कंपनियों को एडवांस फंडिंग की जबकि भारत ने ऐसा कुछ नहीं किया. सीरम इंस्टीट्यूट ने खुद का 2000 करोड़ लगाया और बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन से उसे 2200 करोड़ रुपए मिले. यूएस ने वैक्सीन विकसित कर रही कंपनियों में 44700 करोड़ का इनवेस्टमेंट अगस्त में ही कर दिया था. 

उसने 40 करोड़ डोज अगस्त 2020 में ही बुक कर लिया था. यूरोपीय यूनियन ने नवंबर 2020 में 80 करोड़ डोज बुक किया जबकि भारत ने वैक्सीन का पहला ऑर्डर जनवरी 2021 में दिया और वह भी मात्र 1 करोड़ 60 लाख डोज का! अब सरकार सक्रिय हुई है लेकिन सच यही है कि भारत में वैक्सीन का मौजूदा उत्पादन हमारी जरूरतों को पूरा करने के लिए काफी नहीं है. 

विदेशी कंपनियां फुलीबुक्ड हैं. वे भी वैक्सीन कहां से देंगी? ..और देंगी भी तो बहुत ज्यादा कीमत पर!

कोरोना की दूसरी लहर की आशंका को ध्यान में रखते हुए दुनिया के कई देशों ने ऑक्सीजन की अच्छी खासी व्यवस्था कर ली थी लेकिन अधिकारियों की अदूरदर्शिता के कारण हम पिछड़ गए. अक्तूबर 2020 में सरकार ने 162 ऑक्सीजन प्रोडक्शन यूनिट के लिए ऑर्डर किया. आज इनमें से केवल 33 यूनिट्स स्थापित हो पाए हैं. 

आज ऑक्सीजन की कमी से लोग मर रहे हैं. वैसे जानकारी के लिए बताऊं कि देश में लिक्विड ऑक्सीजन की कोई कमी नहीं है. कमी है सिलेंडर की. इसकी व्यवस्था प्रशासन और अस्पताल के कर्ताधर्ताओं को करनी चाहिए थी. आज एक जगह से दूसरी जगह ऑक्सीजन भेजा जा रहा है तो बीच के राज्य रोक दे रहे हैं. 
मेडिकल इमर्जेसी जैसे हालात में सेना के तीनों अंगों और अर्धसैनिक बलों को उतारने में भी देरी हुई. मेरी राय में अब इनका ज्यादा से ज्यादा उपयोग किया जाना चाहिए ताकि व्यवस्था को सुचारु बनाया जा सके.

मेरा मानना है कि दवाइयों की कालाबाजारी पर जीरो टॉलरेंस की नीति अपनानी चाहिए. कुछ भ्रम भी फैले हुए हैं जिन्हें दूर करना बहुत जरूरी है. उदाहरण के लिए लोगों को लग रहा है कि रेमडेसिवीर कोरोना की माकूल दवाई है जबकि डॉक्टर लगातार कह रहे हैं यह एंटी वायरल ड्रग है जिसका उपयोग केवल योग्य चिकित्सकों की देखरेख में ही होना चाहिए. 

आज देश में 25 लाख से ज्यादा एक्टिव केसेज हैं. उनमें से यदि दस प्रतिशत लोगों को रेमडेसिवीर चाहिए तो इसका मतलब है कि प्रति व्यक्ति छह डोज के हिसाब से ढाई लाख लोगों के लिए 15 लाख डोज की जरूरत है. अब तो खबरें आ रही हैं कि इसकी जमाखोरी भी हो रही है.  

मेरी राय है कि रेमडेसिवीर का वितरण डिजास्टर मैनेजमेंट ग्रुप के आकलन के आधार पर हो. जरूरत के हिसाब से बंटवारा हो. स्थानीय स्तर पर माइक्रो प्लानिंग हो और हर जिले के लिए ऐसी साइट उपलब्ध हो जहां बेड से लेकर ऑक्सीजन, दवाई और वेंटिलेटर की पूरी जानकरी एक क्लिक पर उपलब्ध हो जाए. 

इस तरह के प्रबंधकीय कौशल से परिस्थितियों की भयावहता को कम किया जा सकता है. यह कितनी बड़ी विडंबना है कि कहीं ऑक्सीजन की कमी से लोग मर रहे हैं तो कहीं ऑक्सीजन की टंकी लीक होने से लोगों की जान चली गई. 

कहीं कोविड अस्पताल में आग से जान चली जा रही है. हमारा प्रशासन इतना खोखला क्यों हो गया है? प्रशासन का प्रबंधन देखने की जिम्मेदारी निश्चय ही अधिकारियों की है. उन्हें चेक करना चाहिए कि व्यवस्था ठीक है या नहीं. 
राजनीतिज्ञों को ही क्या दोषी ठहराते रहेंगे. ये तो उम्मीद नहीं की जा सकती कि हर जगह प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और मंत्री डंडा लेकर खड़े रहें. कायदे से सिस्टम को सुचारु रूप से काम करना चाहिए.

मैं चुनाव वाले राज्यों में हुई रैलियों और सभाओं को लेकर चिंतित हूं. वहां से निकले और कुंभ में डुबकी लगाकर गांवों और कस्बों में पहुंचे लोगों ने कोरोना का प्रसाद बांट दिया है. ये देश का क्या हाल करेंगे, इसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है. 

इसके लिए मैं चुनाव आयोग को जिम्मेदार मानता हूं क्योंकि जब रैलियां हो रही थीं तो आयोग क्या कर रहा था? सुप्रीम कोर्ट को भी सूओमोटो हस्तक्षेप करना चाहिए था. रैलियों, सभाओं को उसी वक्त रोक देना था. कुंभ को भी रोक देना था. वैसे कुंभ के आयोजन की इजाजत ही सरकार को नहीं देनी चाहिए थी.

आज जो हम देश का ये हाल देख रहे हैं वह ज्यादातर शहरों का है. गांवों की हालत भी कम बुरी नहीं है लेकिन मीडिया में उसका कहीं उल्लेख ही नहीं है! कई राज्य कोरोना के आंकड़े छुपा रहे हैं और इससे कोरोना के खिलाफ जंग में निश्चय ही दिक्कत हो रही है. वाकई वक्त बहुत खराब है. खुद को बचाइए. मास्क पहनिए, सुरक्षित दूरी रखिए और वैक्सीन जरूर लगवाइए क्योंकि इसी से हम कोरोना को परास्त कर सकते हैं.

Web Title: Vijay Darda blog: Corona crisis everyone should be vaccinated by govt free of cost

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