वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: भारतीय भाषाओं की विजय
By वेद प्रताप वैदिक | Published: July 18, 2019 03:33 AM2019-07-18T03:33:52+5:302019-07-18T04:20:39+5:30
तमिलनाडु में कोई आदमी पोस्ट ऑफिस का कर्मचारी बने और वह तमिल न जाने तो वह किस काम का है? यही बात देश के सभी प्रांतों पर लागू होती है. उन्हें एक अखिल भारतीय भाषा के साथ-साथ प्रांतीय भाषा भी आनी चाहिए.
तमिलनाडु के राज्यसभा सदस्यों को मैं हार्दिक बधाई देता हूं कि उन्होंने राज्यसभा का काम ठप करवाकर सारी भारतीय भाषाओं को मान्यता दिलवाई. कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद की सराहना करनी होगी कि उन्होंने तत्काल फैसला करके तमिल ही नहीं, सभी भाषाओं के द्वार खोल दिए. तमिलनाडु में 14 जुलाई को पोस्ट ऑफिसों में भर्ती के लिए कुछ परीक्षाएं हुईं. उनका माध्यम सिर्फ अंग्रेजी और हिंदी रखा गया. तमिलनाडु में कोई आदमी पोस्ट ऑफिस का कर्मचारी बने और वह तमिल न जाने तो वह किस काम का है? यही बात देश के सभी प्रांतों पर लागू होती है. उन्हें एक अखिल भारतीय भाषा के साथ-साथ प्रांतीय भाषा भी आनी चाहिए.
यानी अखिल भारतीय भाषा का कामचलाऊ ज्ञान हो और प्रांतीय भाषा इस लायक आए कि उसमें ही वे अपनी भर्ती परीक्षा दे सकें. इस नियम को तमिलनाडु में उलट दिया गया था. इसी बात पर द्रमुक और अन्नाद्रमुक ने राज्यसभा में हंगामा खड़ा कर दिया था. जब मैंने अब से 54 साल पहले इंडियन स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज में अपना पीएचडी का शोधग्रंथ हिंदी में लिखने की मांग की थी तो द्रमुक के नेता अन्नादुरई और के. मनोहरन ने लोकसभा ठप कर दी थी.
आज उनके शिष्यों ने पोस्ट ऑफिस की भर्ती परीक्षा में तमिल माध्यम की मांग करके समस्त भारतीय भाषाओं के दरवाजे खुलवा दिए हैं. 14 जुलाई को हुई भर्ती-परीक्षा को रद्द कर दिया गया है. बहुत पहले से हम मांग करते रहे हैं कि संसद में सभी भारतीय भाषाओं में बोलने और संघ लोकसेवा आयोग में परीक्षाएं देने की अनुमति होनी चाहिए.
राष्ट्रपति की पहल पर सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसलों का संक्षिप्त हिंदी अनुवाद करना शुरू कर दिया है, जो कि अच्छी शुरुआत है लेकिन यह काफी नहीं है. समस्त भारतीय भाषाओं को हर क्षेत्र में उनका उचित स्थान मिलने लगे तो हिंदी अपने आप सर्वभाषा बन जाएगी.