बांटे गए अशोक चक्र वाले स्मृति चिन्ह पर दिखी बीजेपी की झलक, बवाल बढ़ने पर दी सफाई
By ऐश्वर्य अवस्थी | Published: July 14, 2018 03:18 AM2018-07-14T03:18:23+5:302018-07-14T03:18:23+5:30
उत्तराखंड के काशीपुर में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) कार्यसमिति की बैठक में कथित तौर पर अशोक चक्र वाले स्मृति चिन्ह बांटे गए थे।
उत्तराखंड के काशीपुर में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) कार्यसमिति की बैठक में कथित तौर पर अशोक चक्र वाले स्मृति चिन्ह बांटे गए थे। लेकिन इस दौरान कुछ ऐसा हुआ है कि बीजेपी तो इस पर सफाई देनी पड़ी है।
दरअसल बीजेपी नेता वीरेंद्र रावत ने इस पर कहा है कि हमारी पार्टी ने हमेशा संविधान को माना है, हम इस मामले में जरूर पड़ताल करेंगे। 12 जुलाई को पार्टी ने प्रदेश कार्यकारिणी की एक बैठक बुलाई थी। खबर के अनुसार इस बैठक में बीजेपी कार्यकर्ताओं को जो स्मृति चिन्ह प्रदान किए गए थे, उनमें अशोक स्तंभ के साथ पार्टी का चुनाव चिन्ह कमल का फूल भी दिखाई दे रहा था।
इन स्मृति चिन्ह को खुद सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत, राज्य के पार्टी प्रभारी श्याम जाजू और महामंत्री (संगठन) शिव प्रकाश को भेंट किए गए। जबकि राष्ट्रीय प्रतीक चिन्हों का इस्तेमाल निजी कार्यक्रम में नहीं किया जा सकता है। ऐसे में खबरों की मानें तो इस घटना के बाद से बीजेपी विवादों में घिर गई है। विरोधी पक्ष की तरफ से इसको देश का अपमाना कहा गया है जबकि बीजेपी ने इस पूरे प्रकरण पर सफाई पेश करते हुए जांच की बात कई है।
इसी दौरान बैठक मेंसीएम रावत ने महिलाओं के खिलाफ अपराधों को गंभीरता से लेते हुए नाबालिग बच्चियों से रेप के दोषियों के लिए फांसी की सजा का प्रावधान लाने की बात कही थी। उन्होंने इस बारे में ट्वीट भी किया। सीएम रावत ने ट्वीट में लिखा, ”मेरी सरकार अवयस्क बालिकाओं के साथ बलात्कार के मामले में दोषियों को फांसी की सजा का प्रावधान करेगी और इसको सुनिश्चित करने हेतु जल्दी ही कानून बनाया जाएगा।
वहीं, इससे पहले उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने 'जनता मिलन' कार्यक्रम में एक प्राथमिक विद्यालय की शिक्षिका को निलंबित करने और उसे हिरासत में लेने के आदेश दिए थे। आवेश में आए मुख्यमंत्री रावत ने उत्तरकाशी जिले के नौगांव प्राथमिक विद्यालय में कार्यरत शिक्षिका उत्तरा बहुगुणा पंत के खिलाफ कार्रवाई के आदेश तब दिए जब उसने अपने तबादले के लिए गुहार लगाई थी।
उत्तरा ने कहा कि वह पिछले 25 साल से दुर्गम क्षेत्र में अपनी सेवाएं दे रही है और अब अपने बच्चों के साथ रहना चाहती है। उनके पति की मृत्यु हो चुकी है और अब वह देहरादून में अपने बच्चों को अनाथ नहीं छोड़ना चाहतीं। उत्तरा ने कहा कि मेरी स्थिति ऐसी है कि ना मैं बच्चों को अकेला छोड़ सकती हूं और ना ही नौकरी छोड़ सकती हूं।
मुख्यमंत्री द्वारा यह पूछे जाने पर कि नौकरी लेते वक्त उन्होंने क्या लिख कर दिया था? उत्तरा ने गुस्से में जवाब दिया कि उन्होंने यह लिखकर नहीं दिया था कि जीवन भर वनवास में रहेंगी। इससे मुख्यमंत्री भी आवेश में आ गए और उन्होंने शिक्षिका को सभ्यता से अपनी बात रखने को कहा, लेकिन जब उत्तरा नहीं मानीं तो उन्होंने संबंधित अधिकारियों को उन्हें तुरंत निलंबित करने और हिरासत में लेने के निर्देश दिए थे।