सामाजिक समरसताः संघ प्रमुख मोहन भागवत बोले-मंदिर, श्मशान और जलाशय पर सभी जातियों का समान अधिकार

By भाषा | Published: September 14, 2020 08:26 PM2020-09-14T20:26:53+5:302020-09-14T20:26:53+5:30

संघ प्रमुख ने कहा कि महापुरुष सिर्फ अपने श्रेष्ठ कार्यों की बदौलत ही महापुरुष हैं और उनको उसी दृष्टि से देखे जाने का भाव भी समाज में बनाये रखना बहुत जरूरी है। भागवत ने गौ आधारित तथा प्राकृतिक खेती के लिये भी समाज को जागृत तथा प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है।

uttar pradesh lucknow Social harmony Sangh chief Mohan Bhagwat equal rights of all castes on temple crematorium and reservoir | सामाजिक समरसताः संघ प्रमुख मोहन भागवत बोले-मंदिर, श्मशान और जलाशय पर सभी जातियों का समान अधिकार

भागवत ने कुटुंब प्रबोधन के बारे में कहा कि कुटुंब (परिवार) संरचना प्रकृति प्रदत्त है। (file photo)

Highlightsप्रवास के दूसरे दिन संघ पदाधिकारियों से कहा कि कोई भी ऐसी जाति नहीं है जिसमें श्रेष्ठ, महान तथा देशभक्त लोगों ने जन्म नहीं लिया हो। प्रकृति हित में किसी भी सामाजिक अथवा धार्मिक संगठन द्वारा किये जाने वाले कार्य में बढ़—चढ़कर सहयोग करना चाहिये।बैठक में कुटुंब प्रबोधन, सामाजिक समरसता, गौ सेवा, ग्राम विकास, पर्यावरण, धर्म जागरण और सामाजिक सद्भाव गतिविधियों से जुड़े हुये कार्यकर्ता मौजूद थे।

लखनऊः राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने सामाजिक समरसता पर जोर देते हुए सोमवार को कहा कि हर जाति में महान लोगों ने जन्म लिया है और मंदिर, श्मशान तथा जलाशयों पर सभी जातियों का बराबर का हक है।

संघ के अवध प्रान्त सह प्रचार प्रमुख दिवाकर अवस्थी ने बताया कि भागवत ने अवध प्रान्त के प्रवास के दूसरे दिन संघ पदाधिकारियों से कहा कि कोई भी ऐसी जाति नहीं है जिसमें श्रेष्ठ, महान तथा देशभक्त लोगों ने जन्म नहीं लिया हो। मंदिर, श्मशान और जलाशय पर सभी जातियों का समान अधिकार है।

संघ प्रमुख ने कहा कि महापुरुष सिर्फ अपने श्रेष्ठ कार्यों की बदौलत ही महापुरुष हैं और उनको उसी दृष्टि से देखे जाने का भाव भी समाज में बनाये रखना बहुत जरूरी है। भागवत ने गौ आधारित तथा प्राकृतिक खेती के लिये भी समाज को जागृत तथा प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है।

कार्य में बढ़—चढ़कर सहयोग करना चाहिये

उन्होंने कहा कि संघ के स्वयंसेवकों को समाज में देशहित, प्रकृति हित में किसी भी सामाजिक अथवा धार्मिक संगठन द्वारा किये जाने वाले कार्य में बढ़—चढ़कर सहयोग करना चाहिये। बैठक में कुटुंब प्रबोधन, सामाजिक समरसता, गौ सेवा, ग्राम विकास, पर्यावरण, धर्म जागरण और सामाजिक सद्भाव गतिविधियों से जुड़े हुये कार्यकर्ता मौजूद थे।

भागवत ने कुटुंब प्रबोधन के बारे में कहा कि कुटुंब (परिवार) संरचना प्रकृति प्रदत्त है। इसलिये उसकी देखभाल करना भी हमारी जिम्मेदारी है। हमारे समाज में परिवार की एक विस्तृत कल्पना है, इसमें केवल पति, पत्नी और बच्चे ही परिवार नहीं है बल्कि बुआ, काका, काकी, चाचा, चाची, दादी, दादा भी प्राचीन काल से हमारी परिवार संकल्पना में रहे हैं।

स्वदेशी जागरण मंच ने प्रधानमंत्री से बीटी बैंगन के परीक्षण पर रोक लगाने का आग्रह किया

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) से संबद्ध स्वदेशी जागरण मंच ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर बीटी बैंगन के खेतों में परीक्षण पर तत्काल रोक लगाने का आग्रह किया है। संगठन का कहना है कि इसे अगर नहीं रोका गया तो इसका केंद्र के आत्मनिर्भर अभियान पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। स्वदेशी जागरण मंच (एसजेएम) के सह-संयोजक अश्विनी महाजन ने पत्र में लिखा है कि पर्यावरण मंत्रालय के अधीन आने वाले जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (जीईएसी) ने अंतिम परीक्षण से पहले के चरण के खेतों में परीक्षण की अनुमति दे दी।

इसे बीटी बैंगन के लिये बीआरएल दो परीक्षण कहा गया है। समिति ने छह राज्यों से इस विवादास्पद प्रौद्योगिकी के परीक्षण का रास्ता साफ करने को कहा है। उन्होंने लिखा है, ‘‘हम आपसे इन परीक्षणों पर यथाशीघ्र रोक लगाने के लिये व्यक्तिगत तौर पर हस्तक्षेप का आग्रह करते हैं।’’

महाजन ने कहा, ‘‘यह मंजूरी आपके द्वारा विदेशी कंपनियों पर निर्भरता कम करने के साथ घरेलू खपत और निर्यात के लिये बेहतर उत्पाद विकसित करने को लेकर एक वैश्विक परिवेश बनाने के लिये शुरू आत्मनिर्भर अभियान को असफल करने के लिये गलत इरादे से दी गयी।’’ मंच ने दावा किया कि बीटी बैंगन प्रौद्योगिकी की कोई जरूरत नहीं है। कीट प्रबंधन बिना बीटी या सिंथेटिक कीटनाशकों के उपयोग के संभव है और इस संदर्भ में वैज्ञानिक साक्ष्य मौजूद हैं।

देश में इस सब्जी का उत्पादन और उसकी उत्पादकता बढ़ी

महाजन ने कहा कि बीटी बैंगन पर रोक के बाद देश में इस सब्जी का उत्पादन और उसकी उत्पादकता बढ़ी है। यह साफ बताता है कि प्रौद्योगिकी की जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा, ‘‘..हमारे पास न तो बैंगन की कोई कमी है। न तो गुणवत्ता का मामला है और न ही मात्रा का कोई मसला है। चूंकि यह इस उप-महाद्वीप का स्वदेशी फसल है, इसकी ज्यादातर किस्में यहां उपलब्ध हैं।’’

जीन संवर्धित (जीएम) प्रौद्योगिकी का कृषि निर्यात पर प्रभाव के बारे में महाजन ने कहा कि जब दुनिया के कई देश इस तरह की फसलों को नकार रहे हैं, तो भारत जीएम तकनीक अपनाकर अपनी व्यापार सुरक्षा को खतरे में नहीं डाल सकता है।

उन्होंने पत्र में लिखा है, ‘‘वास्तविकता यह है कि कई देशों ने शुरू में जीएम फसलों को अपनाया था लेकिन बाद में उन्होंने उसे त्याग दिया। अगर भारत गैर-जीएम खेती के क्षेत्र में अपनी मजबूत स्थिति का लाभ नहीं उठाता है और गैर-जीएम खेती की जो एक पहचान है, उसे खोता है तो निर्यात पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।’’ 

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