उपेन्द्र कुशवाहा को बिहार के काराकाट सीट पर मिल सकती है कड़ी चुनौती, राजग ने बनाया है खास प्लान
By एस पी सिन्हा | Published: February 25, 2019 11:44 PM2019-02-25T23:44:47+5:302019-02-25T23:44:47+5:30
2014 के आम चुनाव में राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा ने अपने निकटम प्रतिद्वंदी राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के कांति सिंह को लगभग एक लाख मतों से हराया था.
बिहार के काराकाट लोकसभा सीट से राजग प्रत्याशी के तौर पर परचम लहराने वाले रालोसपा प्रमुख उपेन्द्र कुशवाहा पर इस बार सभी की निगाहें टिकी रहेंगी. कारण कि इस बार राजग से नाता तोड़कर वह महागठबंधन का झंडा बुलंद करने निकले हैं. लेकिन अभी तक सीटों की तस्वीर साफ नही होने से असमंजस की स्थिती बरकरार है. 2014 के आम चुनाव में राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा ने अपने निकटम प्रतिद्वंदी राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के कांति सिंह को लगभग एक लाख मतों से हराया था.
इस चुनाव में रालोसपा, भाजपा और लोजपा के साथ राजग के तौर पर लोकसभा चुनाव लड रही थी. लेकिन इस वर्ष परिस्थिति बदली हुई है. कुशवाहा ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) से अलग राह अपना ली है. अब वह राजद नीत महागठबंधन के साथी बन चुके हैं. कुशवाहा के कद को देखते हुए संभावना जताई जा रही है कि काराकाट सीट रालोसपा के खाते में ही जाएगी.
काराकाट सीट पर किसकी दावेदारी मजबूत
नए परिसीमन में बिक्रमगंज लोकसभा सीट का नाम बदलकर काराकाट कर दिया गया था. इस सीट के अंतर्गत छह विधानसभा क्षेत्र आते हैं. 2009 के लोकसभा चुनाव में पूरे बिहार में नीतीश कुमार की लहर थी. इस सीट पर भी सत्तारूढ जनता दल यूनाइटेड (जदयू) ने कब्जा जमाया था और महाबलि सिंह सांसद बने थे. लेकिन 2014 के चुनाव में यहां पर रालोसपा प्रमुख को तीन लाख 38 हजार 892 लोगों का समर्थन प्राप्त हुआ. वहीं, राजद कांति सिंह के खाते में कुल दो लाख 33 हजार 651 वोट पड़े. जबकि जदयू उम्मीदवार महाबलि सिंह को महज 76 हजार मतों से संतोष करने पडा था. इस सीट पर बसपा चौथे नंबर पर रही थी.
इस चुनाव में कुल सात लाख 89 हजार 927 मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया था. दस हजार से अधिक लोगों ने नेटा का उपयोग किया था. जबकि काराकाट सीट पर कुल 15 लाख 80 हजार 558 मतदाता थे. वहीं, इस बार भाजपा के साथ जदयू भी खडा है. ऐसे में एनडीए की ताकत बढ़ने का दावा किया जा रहा है.
महागठबंधन से कैसे निपटेंगे नीतीश कुमार
वहीं, राजद और कांग्रेस के गठजोड़ की स्थिति में महागठबंधन भी मजबूत स्थिति में है. इस बार उपेंद्र कुशवाहा के एनडीए से बाहर होने के कारण नरेंद्र मोदी का करिश्मा और नीतीश कुमार की छवि से उनकी टक्कर होगी. इधर, हाल के दिनों में भाकपा-माले के राजाराम सिंह ने दाउदनगर की रैली में महागठबंधन में शामिल होने के लिए पहली शर्त काराकाट लोकसभा क्षेत्र देने की बात कह कर उपेंद्र की परेशानी बढ़ा दी है. विधानसभावार देखा जाये तो नोखा, डेहरी, ओबरा व काराकाट विधानसभा क्षेत्र पर राजद का कब्जा है, जो महागठबंधन के लिए लाभदायक है. शेष गोह पर भाजपा व नवीनगर पर जदयू का कब्जा है.
मुकाबला होगा दिलचस्प
वर्तमान समय में रालोसपा के टिकट पर डेहरी विधानसभा से चुनाव लडे जितेंद्र कुमार उर्फ रिंकू सोनी पार्टी छोड चुके हैं, जिनका असर भी लोकसभा चुनाव में दिख सकता है. रोहतास जिले के नोखा, डेहरी व काराकाट तथा औरंगाबाद जिले के गोह, ओबरा व नवीनगर विधानसभा क्षेत्रों को मिलाकर काराकाट लोकसभा सीट बनी है. ऐसे में इस बार भी यहां मुकाबला दिलचस्प होने की उम्मीद जताई जा रही है. वैसे राजद के लिए मुश्किल यह है कि वह कांति सिंह को कैसे मना पाती है. अगर उनकी नाराजगी रही तो राजद समर्थित संभावित उम्मीदवार उपेन्द्र कुशवाहा के लिए मुश्किल खड़ी हो जायेगी.