कारगिल युद्ध के बाद नागरिकों के लिए जीवन का हिस्सा बन चुके हैं भूमिगत बंकर

By सुरेश एस डुग्गर | Published: September 20, 2020 05:10 PM2020-09-20T17:10:50+5:302020-09-20T17:22:20+5:30

पाक सेना की ओर से गोलाबारी के बाद एलओसी के इलाकों में बार बार अपना घर छोड़ने के लिये मजबूर होने वाले लोगों ने अब सरकार से अपने घरों पर व्यक्तिगत बंकर बनाये जाने की मांग की है

Underground bunkers have become part of life for civilians after Kargil war | कारगिल युद्ध के बाद नागरिकों के लिए जीवन का हिस्सा बन चुके हैं भूमिगत बंकर

सड़क, बिजली, पानी नहीं बस बंकर चाहिए एलओसी पर रहने वालों को

Highlightsपाकिस्तानी सैनिक नागरिक ठिकानों को निशाना बना गोलों की बरसात करते हैं। सरकार ने एलओसी तथा इंटरनेशनल बार्डर के इलाकों में सामुदायिक तथा कुछ व्यक्तिगत बंकरों का निर्माण आरंभ करवाया हुआ ह

जम्मू: यह है तो हैरान करने वाली बात पर पूरी तरह से सच है कि पाकिस्तान से सटी 814 किमी लंबी एलओसी अर्थात लाइन आफ कंट्रोल से सटे गांवों में रहने वाले लाखों परिवारों को भोजन, सड़क, बिजली और पानी से अधिक जरूरत उन भूमिगत बंकरों की है जिनमें छुप कर वे उस समय अपनी जानें बचाना चाहते हैं जब पाकिस्तानी सैनिक नागरिक ठिकानों को निशाना बना गोलों की बरसात करते हैं। जानकारी के लिए 1999 में करगिल युद्ध के बाद से तो भूमिगत बंकर सीमांत नागरिकों के जीवन का अभिन्न अंग बन चुके हैं।

दरअसल पाक सेना की ओर से गोलाबारी के बाद एलओसी के इलाकों में बार बार अपना घर छोड़ने के लिये मजबूर होने वाले लोगों ने अब सरकार से अपने घरों पर व्यक्तिगत बंकर बनाये जाने की मांग की है। पाकिस्तान की तरफ से की जाने वाली भारी गोलाबारी की वजह से एलओसी के गांवों से लोगों का पलायन अब आम बात हो गई है।

जनगढ़ निवासी प्रशोतम कुमार ने कहा कि हमारी पहली और सबसे महत्वपूर्ण मांग यह है कि अगर हमें एलओसी पर रहना है तो सरकार को सीमा पर बसे प्रत्येक घर में बंकर बनाना चाहिए। यह एलओसी पर रहने वाले लोगों की सबसे अहम मांग है। सीमा शरणार्थी समन्वय समिति के अध्यक्ष कुमार ने अपनी मांग से कई बार केंद्र सरकार को अवगत कराया और कहा कि हमें भोजन से ज्यादा बंकर की जरूरत है।

यह हमारे और हमारे परिवार के लिए बुलेट प्रूफ जैकेट की तरह है। सीमावर्ती गांव कलसियां के सरपंच बहादुर चौधरी ने कहा कि अगर सभी निवासियों को उनके घरों पर बंकर मिलते हैं तो कोई भी एलओसी पर बसे गांवों को नहीं छोड़ेगा चाहे पाकिस्तान कितनी भारी गोलाबारी क्यों ना करें।

नौशहरा सेक्टर में जीरो लाइन पर शेर मकरी गांव की निवासी सर्वेश्वरी देवी ने कहा कि ऐसे में हम कैसे वापस लौट सकते हैं जब पाक सेना हमारे घरों पर गोलाबारी कर रही है? हम दशकों से पाकिस्तान की आक्रामकता का सामना कर रहे हैं। पाकिस्तान की ओर से बिना उकसावे की गोलीबारी के लिए आसान निशाना बनने के बजाय हम अपने घरों से दूर रहने को तरजीह देते हैं।

हालांकि सरकार ने एलओसी तथा इंटरनेशनल बार्डर के इलाकों में सामुदायिक तथा कुछ व्यक्तिगत बंकरों का निर्माण आरंभ करवाया हुआ है पर वे नाकाफी बताए जा रहे हैं। इंटरनेशनल बार्डर पर पर तो बनाए गए सामुदायिक बंकरों में पानी घुसने, सांपों के मिलने के कारण वे बेकार साबित हो रहे है जिस कारण पाक गोलाबारी के कारण लोगों को बार-बार सुरक्षित स्थानों पर शरण लेनी पड़ रही है।

Web Title: Underground bunkers have become part of life for civilians after Kargil war

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