उमा भारती ने वचन लेकर बनवाया था बाबूलाल गौर को मुख्यमंत्री, जानें जीवन से जुड़ी ये दिलचस्प बातें 

By राजेंद्र पाराशर | Published: August 22, 2019 05:45 AM2019-08-22T05:45:30+5:302019-08-22T05:45:30+5:30

दरअसल उमा भारती के मुख्यमंत्री बनने के साल भर बाद ही कर्नाटक में हुबली की एक अदालत ने दंगा भड़काने के 10 साल पुराने एक मामले में उनके खिलाफ वारंट जारी कर दिया था.

Uma Bharti made Babulal Gaur the chief minister with the promise, know these interesting things related to life | उमा भारती ने वचन लेकर बनवाया था बाबूलाल गौर को मुख्यमंत्री, जानें जीवन से जुड़ी ये दिलचस्प बातें 

उमा भारती ने वचन लेकर बनवाया था बाबूलाल गौर को मुख्यमंत्री, जानें जीवन से जुड़ी ये दिलचस्प बातें 

Highlightsबाबूलाल गौर बचपन से ही भोपाल में रहे. इनके पिता का नाम रामप्रसाद था. गौर पहली बार 1974 में भोपाल दक्षिण विधानसभा क्षेत्र के उपचुनाव में जनता समर्थित उम्मीदवार के रूप में निर्दलीय विधायक चुने गए थे. वे 4 सितंबर, 2002 से 7 दिसम्बर, 2003 तक मध्य प्रदेश विधान सभा में नेता प्रतिपक्ष भी रहे.

2003 के विधानसभा चुनाव में भारी बहुमत के साथ जब उमा भारती के नेतृत्व में भाजपा ने सरकार बनाई थी, उसके बाद एक समय ऐसा भी आया जब उमा भारती ने मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ने से पहले अपने उत्तराधिकारी के रुप में बाबूलाल गौर के हाथ में गंगाजल देकर बाबूलाल गौर से वचन लिया था कि वे जब कहेंगी गौर मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ देंगे.

दरअसल उमा भारती के मुख्यमंत्री बनने के साल भर बाद ही कर्नाटक में हुबली की एक अदालत ने दंगा भड़काने के 10 साल पुराने एक मामले में उनके खिलाफ वारंट जारी कर दिया था.

इसके बाद भाजपा नेतृत्व ने उमा भारती पर नैतिकता के आधार पर इस्तीफा देने को कहा और उन्होंने पद छोड़ दिया. मगर कुर्सी छोड़ने से पहले राज्य के गृहमंत्री बाबूलाल गौर का नाम उन्होंने मुख्यमंत्री पद के लिए बढ़ाया. उमा भारती का बाबूलाल पर इतना भरोसा था कि जब भी वे कहेंगी तो उनके लिए बाद में कुर्सी खाली कर देंगे. क्लीन चिट मिलने पर जब उमा ने उनसे इस्तीफा मांगा तो गौर ने साफ मना कर दिया था.

उमा भारती बागी हो गई. इसके बाद भाजपा ने बीच का रास्ता निकालते हुए दोबारा उमा भारती को मौका देने की जगह शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री बनाने का फैसला किया, तब शिवराज सिंह चौहान पार्टी के महासचिव थे. आखिरकार 2005 में शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री बने.

बचपन से ही भोपाल में रहे

बाबूलाल गौर बचपन से ही भोपाल में रहे. इनके पिता का नाम रामप्रसाद था. बाबूलाल गौर ने अपनी शैक्षणिक योग्यताओं में बी.ए. और एल.एल.बी. की डिग्रियाँ प्राप्त की हैं. गौर पहली बार 1974 में भोपाल दक्षिण विधानसभा क्षेत्र के उपचुनाव में जनता समर्थित उम्मीदवार के रूप में निर्दलीय विधायक चुने गए थे. वे 7 मार्च, 1990 से 15 दिसम्बर, 1992 तक मध्य प्रदेश के स्थानीय शासन, विधि एवं विधायी कार्य, संसदीय कार्य, जनसम्पर्क, नगरीय कल्याण, शहरी आवास तथा पुनर्वास एवं भोपाल गैस त्रासदी राहत मंत्री रहे.

वे 4 सितंबर, 2002 से 7 दिसम्बर, 2003 तक मध्य प्रदेश विधान सभा में नेता प्रतिपक्ष भी रहे. सामाजिक तथा सार्वजनिक जीवन में किये गये विभिन्न महत्त्वपूर्ण कार्यों के लिए गौर को कई सम्मान तथा पुरस्कार प्राप्त होते रहे हैं. ग्यारहवीं विधान सभा 1999-2003 में बाबूलाल गौर नेता प्रतिपक्ष बनने के पूर्व भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष रहे. गौर को 8 दिसम्बर, 2003 को नगरीय प्रशासन एवं विकास, विधि एवं विधायी कार्य, आवास एवं पर्यावरण, श्रम एवं भोपाल गैस त्रासदी राहत मंत्री बनाया गया.

उन्हें 2 जून, 2004 को गृह, विधि एवं विधायी कार्य तथा भोपाल गैस त्रासदी राहत एवं पुनर्वास मंत्री बनाया गया था. बाबूलाल गौर 23 अगस्त, 2004 से 29 नवंबर, 2005 तक मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे. उन्हें 4 दिसम्बर, 2005 को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के मंत्रिमंडल में वाणिज्य, उद्योग, वाणिज्यिक कर रोजगार, सार्वजनिक उपक्रम तथा भोपाल गैस त्रासदी राहत एवं पुनर्वास विभाग के मंत्री के रूप में शामिल किया गया था और 20 दिसंबर, 2008 को उन्हें मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के मंत्रिमंडल में मंत्री के रूप में फिर से सम्मिलित किया गया.

कपड़ा मिल में मजदूरी कर चलाई थी आजीविका

राजनीति में आने से पहले बाबूलाल गौर ने भोपाल की कपड़ा मिल में मजदूरी की थी और श्रमिकों के हित में अनेक आंदोलनों में भाग लिया था. वे भारतीय मजदूर संघ के संस्थापक सदस्य थे. उत्तरप्रदेश से मध्यप्रदेश आकर बसने का सफर भी उनका बड़ा रोचक रहा है. इसका खुलासा उन्होंने एक समाचार पत्र को दिए साक्षात्कार में किया था. गौर ने बताया था कि अंग्रेजों के समय में उनके ग्राम नागौरी में दंगल हुआ था.

इस दंगल में उनके पिता रामप्रसाद गौर जीते थे. इससे प्रभावित होकर उन्हें शराब कंपनी ने भोपाल में नौकरी दे दी थी. इसके बाद उनका परिवार यहां आकर बस गया था. उस वक्त उनकी उम्र करीब 8 वर्ष थी. इसके बाद यहां पर शराब कंपनी ने उनके पिता को शराब की एक दुकान भी दी.

इस दुकान से उस वक्त 35 रुपए की आमदनी हुआ करती थी. जब गौर ने संघ की शाखाओं में जाना शुरु किया तो संघ पदाधिकारियों ने कुछ समय बाद उन्हें शराब दुकान बंद करने और शराब का विक्रय करना बंद करने को कहा. इस पर गौर ने शराब दुकान बंद कर दी और वापस अपने गांव चले गए थे. बाद में वहां भी वे ठीक से खेती नहीं कर पाए तो वापस भोपाल आए और कपड़ा मिल में मजदूरी की.
 

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