राष्ट्रपति ने किए तीन तलाक को दंडनीय अपराध बनाने वाले अध्यादेश पर हस्ताक्षर
By भाषा | Published: September 20, 2018 05:50 AM2018-09-20T05:50:07+5:302018-09-20T05:50:07+5:30
कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा था कि उच्चतम न्यायालय की ओर से तीन तलाक की कुप्रथा पर पाबंदी लगाए जाने के बाद भी यह जारी है, जिसके कारण अध्यादेश लागू करने की ‘‘आवश्यकता’’ महसूस हुई।
नई दिल्ली, 20 सितंबर: राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने एक बार में तीन तलाक के चलन पर प्रतिबंध लगाने वाले अध्यादेश पर बुधवार की रात हस्ताक्षर कर दिए। कानून मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने यह जानकारी दी। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार की सुबह एक साथ तीन तलाक को प्रतिबंधित करने और इसे दंडनीय अपराध बनाने वाले अध्यादेश को अपनी मंजूरी दी थी।
पदाधिकारी ने कहा, “हां, राष्ट्रपति ने अध्यादेश पर हस्ताक्षर कर दिए हैं।” कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा था कि उच्चतम न्यायालय की ओर से तीन तलाक की कुप्रथा पर पाबंदी लगाए जाने के बाद भी यह जारी है, जिसके कारण अध्यादेश लागू करने की ‘‘आवश्यकता’’ महसूस हुई।
प्रस्तावित अध्यादेश के तहत एक साथ तीन तलाक देना अवैध एवं निष्प्रभावी होगा और इसमें दोषी पाए जाने पर पति को तीन साल जेल की सजा का प्रावधान है। प्रस्तावित कानून के दुरुपयोग की आशंकाएं दूर करते हुए सरकार ने इसमें कुछ सुरक्षा उपाय भी शामिल किए हैं, जैसे मुकदमे से पहले आरोपी के लिए जमानत का प्रावधान किया गया है।
इन संशोधनों को कैबिनेट ने 29 अगस्त को मंजूरी दी थी। प्रसाद ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘‘अध्यादेश लाने की अत्यधिक अनिवार्यता थी क्योंकि पिछले साल उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद भी यह कुप्रथा धड़ल्ले से जारी है।’’ प्रस्तावित कानून में अपराध को ‘‘गैर-जमानती’’ बनाया गया है, लेकिन आरोपी मुकदमे से पहले भी मजिस्ट्रेट की अदालत में जमानत की गुहार लगा सकता है।
गैर-जमानती अपराध में आरोपी को पुलिस थाने से जमानत नहीं दी जाती। इसके लिए अदालत का रुख करना होता है। प्रसाद ने कहा कि मजिस्ट्रेट आरोपी की पत्नी का पक्ष सुनने के बाद जमानत मंजूर कर सकते हैं। बहरहाल, सूत्रों ने बताया कि मजिस्ट्रेट को सुनिश्चित करना होगा कि जमानत तभी दी जाए जब पति विधेयक के प्रावधानों के मुताबिक पत्नी को मुआवजा देने पर सहमत हो जाए। मुआवजे की राशि मजिस्ट्रेट को तय करनी होगी।
पुलिस तीन तलाक के मामलों में प्राथमिकी तभी दर्ज करेगी जब पीड़िता, उसके सगे-संबंधी या उसकी शादी की वजह से रिश्तेदार बन चुके लोग पुलिस का रुख करें। प्रस्तावित कानून के मुताबिक पड़ोसी एवं अन्य शिकायत दाखिल नहीं कर सकते। प्रसाद ने कहा कि ऐसे अपराध के मामलों में किसी मजिस्ट्रेट के समक्ष समझौता भी हो सकता है, बशर्ते प्रभावित महिला इसके लिए रजामंद हो। एक बार में तीन तलाक अब “समाधेय” होगा।
समाधेय अपराध के तहत दोनों पक्षों के पास मामला वापस लेने की स्वतंत्रता होती है। प्रस्तावित कानून केवल एक बार में तीन तलाक या तलाक-ए-बिद्दत पर लागू होगा और यह पीड़िता को अपने लिए एवं अपने नाबालिग बच्चे के लिए “गुजारा भत्ता” मांगने के लिए मजिस्ट्रेट के पास जाने की शक्ति देता है।
कोई महिला मजिस्ट्रेट से अपने नाबालिग बच्चे के संरक्षण का अधिकार भी मांग सकती है जिस पर अंतिम फैसला वही लेंगे। तीन तलाक की प्रथा को ‘‘बर्बर और अमानवीय’’ करार देते हुए उन्होंने कहा कि करीब 22 देशों ने तीन तलाक का नियमन किया है लेकिन वोट बैंक की राजनीति के कारण भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश में लैंगिक न्याय की पूरी अनदेखी की गई।
उच्चतम न्यायालय ने पिछले साल तीन तलाक की कुप्रथा पर पाबंदी लगा दी थी। लेकिन यह कुप्रथा अब भी जारी रहने के कारण इसे दंडनीय अपराध बनाने के लिए एक विधेयक लाया गया था। कानून मंत्री ने इस अवसर का इस्तेमाल कांग्रेस पर हमला करने के लिए करते हुए कहा कि वह ‘‘वोट बैंक के दबाव’’ के कारण राज्यसभा में लंबित विधेयक का समर्थन नहीं कर रही।
उन्होंने कहा, ‘‘यह मेरा गंभीर आरोप है कि सोनिया गांधी जी ने इस मुद्दे पर चुप्पी साध रखी है। वह चुप हैं....राजनीति से इसका कोई लेना-देना नहीं है, यह लैंगिक न्याय और गरिमा से जुड़ा है।’’ प्रसाद ने ‘‘लैंगिक न्याय, लैंगिक समानता और लैंगिक गरिमा की खातिर’’ संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी, बसपा सुप्रीमो मायावती और तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी से अपील की कि वे संसद के अगले सत्र में विधेयक का समर्थन करें।