कई मुस्लिम देशों में भी बैन है ट्रिपल तलाक, फिर भारत में क्यों हो रहा है कानून का विरोध?
By आदित्य द्विवेदी | Published: June 21, 2019 04:29 PM2019-06-21T16:29:56+5:302019-06-21T16:29:56+5:30
Triple Talaq Debate: इंस्टैंट ट्रिपल तलाक को कई मुस्लिम देशों ने बैन कर रखा है। इन देशों का जिक्र सुप्रीम कोर्ट में ट्रिपल तलाक पर बने पैनल ने भी किया था।
मुस्लिम समाज में एक बार में तीन तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) की प्रथा पर रोक लगाने के मकसद से जुड़ा नया विधेयक सरकार आज लोकसभा में पेश कर दिया गया है। पिछले महीने 16वीं लोकसभा का कार्यकाल पूरा होने के बाद पिछला विधेयक निष्प्रभावी हो गया था क्योंकि यह राज्यसभा में लंबित था। बता दें 17वीं लोकसभा के गठन के बाद नरेंद्र मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का यह पहला बिल है, जिसे केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद संसद में पेश किया। इस बिल के पेश होते ही सदन में हंगामा शुरू हो गया।
मुस्लिम संगठनों से विचार विमर्श नहीं
सरकार ने साफ किया है कि ट्रिपल तलाक बिल का मसौदा बनाते वक्त मुस्लिम संगठनों से विमर्श करने की कोई आवश्यकता नहीं है। सरकार की तरफ से कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद का कहना है कि यह मुद्दा लैंगिग न्याय और महिलाओं के सम्मान से जुड़ा हुआ है। इससे किसी के धर्म और आस्था का कोई लेना-देना नहीं है।
इन देशों में इंस्टैंट ट्रिपल तलाक पर है बैन
इंस्टैंट ट्रिपल तलाक को कई मुस्लिम देशों ने बैन कर रखा है। इन देशों का जिक्र सुप्रीम कोर्ट में ट्रिपल तलाक पर बने पैनल ने भी किया था। पैनल ने ताहिर महमूद और सैफ महमूद की किताब मुस्लिम लॉ इन इंडिया का जिक्र किया। इसमें अरब के देशों में तीन तलाक को समाप्त किए जाने की बात कही है। इसके अलावा इंस्टैंट ट्रिपल तलाक को अल्जीरिया, मिस्र, इराक, जॉर्डन, कुवैत, लेबनान, लीबिया, मोरक्को, सूडान, सीरिया, ट्यूनीशिया, संयुक्त अरब अमीरात और यमन में भी कोई जगह नहीं है। इसके अलावा इंडोनेशिया, मलेशिया और फिलीपींस जैसे दक्षिण-पूर्व एशियाई देश तलाक के लिए सख्त कानून रखते हैं। भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान, बांग्लादेश और श्रीलंका में भी इंस्टैंट ट्रिपल तलाक के लिए कोई जगह नहीं है।
17वें लोकसभा के पहले सत्र की हंगामेदार शुरुआत
17वीं लोकसभा के बजट सत्र का आज पांचवां दिन है। शुरुआती दिन परिचय और शपथ ग्रहण में गुजर गए। इस सत्र का पहला बिल ट्रिपल तलाक है। इस बिल के टेबल होते ही हंगामा शुरू हो गया। विपक्ष ने ध्वनि मत की बजाए वोटिंग की बात कही जिसे स्वीकार कर लिया गया।
...फिर भारत में क्यों हो रहा है कानून का विरोध?
ट्रिपल तलाक पर सबसे बड़ी आपत्ति इसको क्रिमिनल एक्ट बनाने को लेकर है। अभी तक तलाक का मामला सिविल एक्ट के तहत आता है जिसे मौजूदा बिल पेश होने के बाद क्रिमिनल एक्ट बना दिया जाएगा। इसके तहत किसी भी तरह से दिया गया इंसटैंट ट्रिपल तलाक (बोलकर या लिखकर या ईमेल, एसएमएस, वॉट्सऐप आदि के जरिए) 'गैरकानूनी और अमान्य' होगा और पति को 3 साल तक जेल की सजा हो सकती है।
असदुद्दीन ओवैसी का कहना है कि इस्लाम में तलाक-ए-बिद्दत और देश में घरेलू हिंसा कानून पहले से लागू है। ऐसे में देश को नए कानून की क्या जरूरत है? औवेसी ने नरेंद्र मोदी सरकार पर हमला करते हुए कहा कि केंद्र सरकार तीन तलाक पर जो बिल ला रही है, वह सविंधान में दिए गए मूल अधिकारों का हनन है। इसमें कई ऐसे प्रावधान हैं, जो कानूनसंगत नहीं हैं।
सदन में ओवैसी ने एक बंदर और मछली की कहानी भी सुनाई, कहा कि बचपन में हम एक कहानी सुनते थे कि एक नदी में बहुत सारी मछलियां तैर रही हैं और मजे कर रही हैं। किनारे पर एक बंदर बैठा है और वो इन मछलियों को एक-एक कर नदी से निकालता है और किनारे रखता है। किनारे आने से ये मछलियां पानी के लिए तड़प-तड़पकर मर गईं। जब बंदर से पूछा गया कि उसने इन मछलियों को क्यों बाहर निकाला तो उसने जवाब दिया कि वो इन मछलियों को पानी में डूबने से बचा रहा था। ओवैसी ने कहा कि सरकार के मुस्लिम महिलाओं को लेकर किया जा रहा ये प्रयास उस बंदर जैसा ही है।
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य जफरयाब जिलानी ने कहा कि यह बिल मौलिक अधिकारों का हनन है। सरकार को मुस्लिम औरतों से कोई लेना देना नहीं है, सियासी फायदे के लिए इस बिल को पास कराया गया है। कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद ने कहा, 'सरकार यह बिल संकीर्ण राजनीतिक फायदे के लिए लेकर आई है। इससे मुस्लिम महिलाओं को फायदा नहीं होगा।
आम मुसलमानों की आवाज नहीं है मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड
शिया वक्फ बोर्ड के चेयरमैन वसीम रिज़वी का कहना है कि ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड देश के आम मुसलमान की आवाज नहीं है। ये हमेशा सरकार के फैसलों के खिलाफ रहते हैं चाहे वो फैसला मुसलमानों के हित में ही क्यों ना हो। उन्होंने लोकमत से बात करते हुए कहा कि इंस्टैंट ट्रिपल तलाक का किसी मजहब या कुरान से कोई वास्ता नहीं है। यह महिलाओं पर पितृसत्तात्मक सोच ने लादा था जिसे खत्म करना जरूरी था। रिज़वी का मानना है कि विधेयक में सिर्फ तीन साल की सजा का प्रावधान है जबकि कम से कम 10 साल की सजा दी जानी चाहिए।
ऐसा है प्रस्तावित बिल
- तीन बार तलाक चाहे बोलकर, लिखकर या ईमेल, एसएमएस और व्हाट्सएप जैसे इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से कहना गैरकानूनी होगा।
- अगर किसी पति ने ऐसा किया तो तीन साल की जेल की सजा हो सकती है। यह गैर-जमानती अपराध होगा।
- यह कानून सिर्फ 'तलाक ए बिद्दत' यानी एक साथ तीन बार तलाक बोलने पर लागू होगा।
- तलाक की पीड़िता अपने और नाबालिग बच्चों के लिए गुजारा भत्ता मांगने के लिए मजिस्ट्रेट से अपील कर सकेगी।
- पीड़ित महिला मजिस्ट्रेट से नाबालिग बच्चों के रक्षण का भी अनुरोध कर सकती है। मजिस्ट्रेट इस मुद्दे पर अंतिम फैसला करेंगे।
- यह प्रस्तावित कानून जम्मू-कश्मीर को छोड़कर पूरे देश में लागू होगा है।
विपक्षी दलों ने गिनाई खामियां
- इस प्रस्तावित विधेयक में मुस्लिम महिला को गुजारा भत्ता देने की बात पेश की गई है, लेकिन उस गुजारे भत्ते के निर्धारण का तौर तरीका नहीं बताया गया है। 1986 के मुस्लिम महिला संबंधी एक कानून के तहत तलाक पाने वाली महिलाओं को गुजारा भत्ता मिल रहा है। इस कानून के आ जाने से पुराने कानून के जरिए मिलने वाला भत्ता बंद हो सकता है।
- इस कानून के लागू होने के बाद इसका दुरुपयोग मुस्लिम पुरुषों के खिलाफ होने की आशंका भी है। क्योंकि विधेयक में ट्रिपल तलाक साबित करने की जिम्मेदारी केवल महिला पर है। महिलाएं के साथ अगर पुरुषों को भी इसको साबित करने की जिम्मेदारी दी जाती है तो कानून ज्यादा सख्त होगा ।
- सरकार ने अभी तक इस विधेयक में कोई विशेष निधि नहीं बनाई है। इसमें केवल महिला सशक्तिकरण को पेश किया गया है, लेकिन अभी तक महिला आरक्षण बिल सरकार नहीं लाई।