बिहार में विधानसभा को लेकर गहमागहमी जारी, लेकिन लालू प्रसाद यादव व रामविलास पासवान की लोगों को खलेगी कमी

By एस पी सिन्हा | Published: October 11, 2020 04:08 PM2020-10-11T16:08:17+5:302020-10-11T16:27:38+5:30

कोरोना काल में पहली बार बिहार में विधानसभा की 243 सीटों पर चुनाव होने जा रहा है. चुनाव आयोग द्वारा वर्चुअल रैली और जनसभा करने और कुछ शर्तों के साथ वर्चुअल रैलियां और जनसभाएं करनी की इजाजत दी गई है.

The furore over the assembly in Bihar continues, but Lalu Prasad Yadav and Ram Vilas Paswan will miss the people | बिहार में विधानसभा को लेकर गहमागहमी जारी, लेकिन लालू प्रसाद यादव व रामविलास पासवान की लोगों को खलेगी कमी

राम विलास पासवान (फाइल फोटो)

Highlightsपिछली बार विधानसभा चुनाव में तकरीबन 1,363 जनसभाओं का आयोजन दिग्गज नेताओं द्वारा किया गया था.इस बार दिग्गज नेताओं के जनसभाओं के मामले में कोरोना संकट की वजह से पिछली बार का रिकॉर्ड टूटना नामुमकिन हो गया है।डीएसपी की नौकरी छोड़कर राजनीति में आए रामविलास पासवान के राजनीतिक करियर 1977 के बाद ऊंचाइयों पर पहुंचने लगा.

पटना: बिहार विधानसभा के चुनाव में इस बार जेपी आंदोलन के दो दिग्गज नेताओं के नहीं दिखने की कमी खलेगी. इनमें से एक लोजपा के संस्थापक रहे रामविलास पासवान और दूसरा राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव के बगैर चुनाव अधूरा दिखेगा.

एक ओर जहां रामविलास पासवान का गुरुवार को निधन हो गया, वहीं, राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव चारा घोटाले में रांची के जेल में बंद है. 45 साल में ऐसा पहली बार होगा, जब बिहार राजनीतिक के ये दो दिग्गज नेता जनता के बीच नहीं रहेंगे. 

कोरोना काल में पहली बार बिहार में विधानसभा की 243 सीटों पर चुनाव होने जा रहा है. चुनाव आयोग द्वारा वर्चुअल रैली और जनसभा करने और कुछ शर्तों के साथ वर्चुअल रैलियां और जनसभाएं करनी की इजाजत दी गई है. सभी पार्टियों के रणनीतिकार अपने-अपने उम्मीदवारों की एक-एक सीट पर जीत तय करने के लिए दिग्गज नेताओं का कार्यक्रम तय करने में जुटे हैं.

हालांकि, अभी यह तय नहीं हुआ है कि रैली कहां-कहां होगी और कब होगी. कोविड के दौर में सोशल डिस्टेंसिंग की वजह से चुनावी सभाओं से बडी पार्टियां परहेज कर रही हैं. हालांकि सत्ताधारी दलों को छोडकर राजद समेत सभी छोटी और क्षेत्रीय पार्टियां चुनावी सभाओं पर ही खास जोर देने जा रही हैं.

यदि हम इस बार के विधानसभा चुनाव की तुलना 2015 के विधासनभा चुनाव से करें तो पिछली बार तकरीबन 1,363 जनसभाओं का आयोजन दिग्गज नेताओं द्वारा किया गया था. लेकिन इस बार कोरोना संकट की वजह से पिछली बार का रिकॉर्ड टूटना नामुमकिन हो गया है, क्योंकि चुनाव में अब कुछ ही दिन शेष रह गए हैं. 

बिहार की राजनीति में लालू प्रसाद यादव और रामविलास पासवान जेपी आंदोलन से उभरे थे, लेकिन दोनों के बीच कई बार तल्खियां भी आई तो कई बार दोनों साथ रहे. रामविलास पासवान पहली बार 1969 में सोशलिस्ट पार्टी से चुनाव जीतकर विधायक बने थे, वहीं लालू प्रसाद यादव 1977 में सीधे लोकसभा पहुंचे.

डीएसपी की नौकरी छोड़कर राजनीति में आए रामविलास पासवान के राजनीतिक करियर 1977 के बाद ऊंचाइयों पर पहुंचने लगा. 1977 में रामविलास पासवान हाजीपुर से लोकसभा चुनाव के लिए मैदान में उतरे. जेपी ने उन्हें खुद उतारा था. उसी समय जनता पार्टी ने वरिष्ठ नेता रामसुंदर दास को उम्मीदवार बना दिया.

जनता पार्टी के इस फैसले से जेपी इस कदर नाराज हो गए कि उन्होंने एक पर्चे पर लिखवा भेजा कि 'जनता पार्टी का उम्मीदवार कौन है? ये मुझे नहीं पता, लेकिन जेपी का उम्मीदवार रामविलास पासवान है.' जेपी के इस पर्चे के बाद जनता पार्टी ने रामसुंदर दास का टिकठ वापस ले लिया. रामविलास पासवान की राजनीतिक कैरियर इसके बाद आगे ही बढता गया. हालांकि 2009 का चुनाव अपवाद है, जब उनकी पार्टी लोजपा न तो लोकसभा और न ही विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज की.

वहीं, लालू प्रसाद यादव पिछले 45 सालों से बिहार की राजनीति में सक्रिय हैं, चारा घोटाले के जुर्म में पिछले करीब ढाई साल से ज्यादा समय से जेल में रहते हुए भी वे बिहार की राजनीति के केन्द्र में हैं. लालू प्रसाद यादव का राजनीति में प्रवेश 1960 में हुआ, शिवानन्द तिवारी ने उन्हें राजनीति में आने का मौका दिया. उसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड के नहीं देखा और 1977 में छपरा से सांसद बने और मार्च 1990 में उन्होंने पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लिया.

लालू प्रसाद यादव 1990 से 1997 तक बिहार के मुख्यमंत्री रहे हैं. कभी इंदिरा गांधी का विरोध कर शिखर तक का सफर तय करने वाले लालू प्रसाद यादव कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए 1 में देश के रेल मंत्री भी रहे. रेलमंत्री रहने के दौरान उन्होंने भारतीय रेलवे को घाटे से उबारा. 

इस तरह से इस बार अपनी भाषण शैली से जनता का रुख मोड देने वाले वक्ताओं की भी इस बार के चुनाव में कमी दिखेगी. जदयू में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की चुनाव प्रचार में मौजूदगी रहेगी. वे लोगों के बीच भी जायेंगे और वर्चुअल तरीके से भी अपनी बात मतदाताओं के सामने रखेंगे. दूसरी ओर, राजद प्रमुख लालू प्रसाद को जमानत तो मिल गई है, लेकिन उनके जेल से रिहा होने की बात 9 नवंबर की अगली सुनवाई के बाद ही सामने आयेगी.

जिस वजह से इस बार लालू भी जनता के बीच जाकर प्रचार-प्रसार नहीं कर पाएंगे. इधर ठीक चुनाव के पहले लोजपा प्रमुख रामविलास पासवान और राजद नेता डा. रघुवंश प्रसाद सिंह इस दुनिया में नहीं रहे, जिस वजह से इनकी कमी भी अब जनसभाओं में खलेगी. राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव के जेल में रहने और स्थानीय बोली से ग्रामीण महिलाओं के बीच आवाज बुलंद करने वाली राबडी देवी के अस्वस्थ होने की वजह से इस बार सभाओं की पूरी जिम्मेदारी अकेले तेजस्वी यादव के कंधों पर हैं. 

हालांकि, महागठबंधन के तहत वाम मोर्चे में उनके कैडर के वरिष्ठ नेताओं से परे कन्हैया कुमार की भाषण शैली मतदाताओं को अपनी ओर खींच सकती है. वहीं जदयू की तरफ से पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार और हम प्रमुख जीतन राम मांझी पर पूरी जिम्मेदारी है. भाजपा की तरफ से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वर्चुअल मीटिंग तक ही सीमित रहेने की संभावना व्यक्त की जा रही है.

वहीं, गृह मंत्री अमित शाह, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा, गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय, उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी चुनाव प्रचार में मुख्य वक्ता होंगे. इधर रामविलास पासवान के निधन के बाद लोजपा का सारा दारोमदार उनके बेटे और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान के कंधों पर रहेगी.

Web Title: The furore over the assembly in Bihar continues, but Lalu Prasad Yadav and Ram Vilas Paswan will miss the people

भारत से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे